सड़क पर बिकने वाली चाय-पानी और तरकारी की दुकानों की तरह न्यूज चैनल खुल रहे हैं. नजदीक के कुछ वर्षों में स्थिति और भी बदतर होती जा रही है. न्यूज संस्थान खुलने के बाद बंद भी ऐसे किया जाता है जैसे सड़क को अतिक्रमण मुक्त कराया जा रहा हो.
पहले चैनल खोलने का मकसद जनसरोकार से जुड़ा होता था, पर अब चैनल खोलने का मकसद महज बिजनेसमैन/ प्रमोटर एवं इन्वेस्टर से पैसा लाने और मोटा कमीशन खाकर दुकान (चैनल) समेट लेने तक सीमित रह गया है. इसमें फायदा कौन लोग उठाते हैं, यह अब छिपी हुई बात नहीं रह गई है. लेकिन जब इस नकली साम्राज्य के बैलून से हवा निकलती है तो सैकड़ो परिवार बर्बाद भी होते हैं. बेरोजगारी बढ़ती है सो अलग.
यही कुछ हाल 10 साल से एक पूर्व मुख्यमंत्री की बेनामी संपत्ति में चल रहे राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल न्यूज़ नेशन का है जो पिछले कुछ महीनों से टीआरपी और छँटनी दोनों में एबीपी न्यूज़ को टक्कर दे रहा है. अभी 1 साल पहले न्यूज़ नेशन ग्रुप ने दो क्षेत्रीय चैनल न्यूज़ स्टेट बिहार-झारखंड और न्यूज़ स्टेट महाराष्ट्र-गोवा लेकर आए थे. साल पूरा होते-होते दोनों चैनलों को बंद कर दिया गया. इसके बाद धीरे-धीरे उन चैनलों में काम करने वाले कर्मियों को दिवाली की धनतेरस से पूर्व अलग-अलग कारण- जैसे आपको काम नहीं आता, अनुशासनहीनता, कॉलम-14 इत्यादि का हवाला देकर बिना नोटिस और अतिरिक्त सैलरी दिए छँटनी की जा रही है.
इस छँटनी सम्मेलन के बीच एक रोचक जानकारी यह भी है कि जिन चैनलों को बंद किया गया है उनमें काम करने वाले कम सैलरी वालों को नेशनल एवं यूपी/यूके में शिफ्ट किया जा रहा है, जबकि नेशनल और यूपी/यूके चैनल में ज्यादा सैलरी वालों को उनके पद से निकाला जा रहा है. कई डिपार्टमेंट जिसमें 10 साल से बैठे मठाधीश जो कंपनी हित की जगह अपना हित सोचते हैं, जिन कामचोरों के कारण न्यूज़ नेशन टीआरपी में सदैव 7वें नंबर से नीचें बना रहता है उन सभी मठाधीश के बीच जबरदस्त कंपटीशन चल रहा है कि कौन कितना छँटनी कर सकता है. इसी तरह के एक सेठ ने तो एक हफ्ते के अंदर गलत आरोप लगा कर 7 से अधिक कैमरामैनों को निकाल कर उनकी दिवाली खराब कर दी है.
न्यूज नेशन के टेक्निकल विभाग से छँटनी के शिकार एक पीड़ित कर्मचारी द्वारा भेजे गये मेल पर आधारित.