Anu Shakti Singh-
मुझे नहीं लगता कि किसी को भी आलोचना से ऊपर होना चाहिए। निधि सत्ता के विरोध में एक मुखर आवाज़ रही हैं, उसके लिए उनकी तारीफ़।
किंतु यह फ़िशिंग मसअला केवल किसी आम इंसान के किसी फ़्रॉड का शिकार हो जाने भर से सम्बद्ध नहीं है। ग़ौर से देखें तो निधि राजदान भी झूठ बोलती या फिर अत्यधिक उतावली नज़र आ रही हैं पूरे मसअले में।
हॉर्वर्ड सरीख़े तमाम बड़े संस्थान यूँ ही किसी को अपने यहाँ काम करने का प्रमाणपत्र नहीं ज़ारी कर देते। एक फ़ॉर्मल इंडक्शन होता है (तेरह सालों में लगभग छः देसी-विदेशी कम्पनियों के साथ के अनुभव के अनुसार), जिसमें डिपार्टमेंट के हेड से लेकर, संस्थान के हेड तक से बाक़ायदा मुलाक़ात तय की जाती है।
कई तरह के काग़ज़ात जमा करते हैं, कुछ वे वेरिफ़ाय करते हैं, कुछ हम करते हैं।
करोना काल में भी कई दोस्तों ने नयी कम्पनियाँ जॉइन की और उनका इंडक्शन विडीओ कॉल के ज़रिए हुआ। कम्पनी के वरिष्ठ, ह्यूमन रीसॉर्स डिपार्टमेंट और आगत कर्मचारी सबलोग एक दूसरे से भली भाँति अवगत हुए, फिर कहीं नियुक्ति का आधिकारिक पत्र ज़ारी किया गया।
यह प्रक्रिया इतनी सघन होती है कि कहीं भी कुछ भी गड़बड़ हो, खट से अंदाज़ा लग सकता है। इतने विकसित डिजिटल युग में, जब नर्सरी की क्लास भी विडीओ पर होती है, निधि क्यों सिर्फ़ मेल पर भरोसा कर रही थीं?
और बिना कुछ दरयाफ़्त के अपनी प्रोफ़ायल पर हॉर्वर्ड का नाम लगा लेना? उस पर वेबिनार करना, अमेरिका का चुनाव कवर करना। यह सब भी धोखाधड़ी है, वह भी गम्भीर प्रकृति की।
निधि पर पहला ऐक्शन तो हॉर्वर्ड को ही लेना चाहिए। दुर्घटना लापरवाही में ही क्यों ना हुई हो, दुर्घटना होती है।
Awesh Tiwari-
आप एक जर्नलिस्ट होकर इस कदर बेवकूफी कैसे कर सकते हैं? एनडीटीवी की मशहूर एंकर निधि राजदान कहती है मेरे साथ फिशिंग ( इंटरनेट ठगी) हुई है । मुझे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से फर्जी तौर पर प्रोफेसरशिप दी गई और मैंने इसके लिए एनडीटीवी की नौकरी भी छोड़ दी।एक बड़े चैनल की बड़ी पत्रकार से ऐसी बेवकूफियों की उम्मीद नही रहती लेकिन अफसोस आज की मीडिया का सच यही है।
मुझे निधि की कहानी पर तनिक भी विश्वास नही होता। आप बिना किसी पत्र के बिना फोन पर बातचीत किये बिना इंटरव्यू के कैसे किसी ऑफर को लेकर इतना संजीदा हो सकते हैं? उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि एनडीटीवी समेत देश के कई मीडिया प्लेटफार्म लगातार निधि को हार्वर्ड की प्रोफेसर बताकर अपने कार्यक्रमों में बुलाते रहे हैं।
Sanjay Singh-
कानूनी रूप से निधि राजदान ने फ्रॉड किया है …इन्हें 420 के केस में गिरफ्तार करना चाहिए
जब आप हावर्ड यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर थी ही नहीं तब आप खुद को हावर्ड यूनिवर्सिटी का एसोसिएट प्रोफेसर बताकर भारत के कई प्राइवेट विश्वविद्यालयों में पैसे लेकर एसोसिएट डायरेक्टर बनी कई सेमिनार में हावर्ड यूनिवर्सिटी का एसोसिएट प्रोफेसर बताकर पैसे लेकर लेक्चर दिया
आपने इस फ्रॉड से जितना पैसा कमाया है वह साबित करता है कि आप एक 420 की मुलजिम है
Sarvapriya Sangwan-
निधि राजदान ने अपने साथ हुए फ़्रॉड पर एक लेख लिख कर जानकारी दी है। चूँकि लेख अंग्रेज़ी में है तो उसकी कुछ महत्वपूर्ण बातें हिंदी में लिख रही हूँ-
1) निधि राजदान ने हॉर्वर्ड के एक इवेंट में लेक्चर दिया था। वहाँ किसी organiser ने उन्हें vacancy के बारे में बताया और उन्होंने सीवी भेजा।
2) जैसा कहा जा रहा है कि कोई जर्नलिज़म कोर्स नहीं है वहाँ, उसका भी जवाब दिया है कि एक extension school है जिसमें जर्नलिज़म डिग्री प्रोग्राम है और उसकी फ़ैकल्टी भी है।
3) उनका 90 मिनट का ऑनलाइन इंटर्व्यू भी हुआ।
4) जो ऑफ़र लेटर उन्हें मिला उसमें उन अधिकारियों के फ़ेक साइन थे, जो आज भी हॉर्वर्ड में काम करते हैं। ये जनवरी 2020 की बात है।
5) वर्क वीज़ा को लेकर भी details ली गयी। orientation program भेजा गया, syllabus, class schedule भेजा गया।
6) एकदम से लॉक्डाउन और पूरी दुनिया में महामारी के चलते फ़्रॉड लोगों की तरफ़ से बताया जाने लगा कि क्लास postpone कर रहे हैं। पहले सितम्बर से शुरू होनी थी लेकिन उसे अक्तूबर के लिए पोस्टपोन किया गया। फिर अक्तूबर में जनवरी 2021 के लिए। निधि लिखती हैं कि उन्हें ज़्यादा ध्यान देना चाहिए था लेकिन ये सब इतना असल लग रहा था कि शक़ नहीं हुआ। क्योंकि उनसे किसी ने पैसे भी नहीं माँगे। ऊपर से कोरोना की वजह से समझ आ रहा था कि schedule टाले जा सकते हैं।
7) उन्हें ही शक़ हुआ, उन्होंने ही किसी और से हॉर्वर्ड में बात की, फिर उनको असलियत पता चली।
जब हमको ख़ुद ही ज्ञान नहीं है किसी चीज़ का तो इतनी जल्दी क्यों होती है पोस्ट लिखने की, मज़ाक़ बनाने की, कुछ भी लिख देने की? ये किसी दिन आपके साथ भी हो सकता है। धोखा भी आपके साथ होगा और मज़ाक़ भी आप ही बनेंगे।🙏🏻
पूरा लेख कॉमेंट में।
Deepankar Patel-
सॉरी “प्रोफेसर”… क्लास तो लेनी चाहिए थी, स्टूडेंट्स से इंटरैक्ट करती, अनुभव साझा करती… फिर प्रोफ़ेसर बनने का शौक भी पाल लेती, वरना केजी सुरेश नाम के एक “सरकारी चाटुकार हुए”, वो बिना पीएचडी किए, बिना प्रोफेसर बने ही, प्रोफेसर एमिरेट्स बन गये, अभी कहीं के कुलपति भी हैं. बनने का क्या है.. और जो “प्रगतिशील लोग” कह रहे निधी जी का मज़ाक नहीं उड़ना चाहिए, वो ये समझें कि ऐसे मुद्दे पर कुछ भी लिखना अपने आप मज़ाक की श्रेणी में आ ही जाएगा, कुछ नहीं कर सकते.. दो चार संवेदनशील लाइनों, मसलन, “कोई बात नहीं, किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है, मैं भी फ्राड का शिकार होते होते बचा हूं” ……..के अलावा इस मुद्दे पर कुछ भी लिखा जाएगा तो मज़ाक की श्रेणी में फिट बैठ जाएगा….. इसलिए इस बहाने फैल रही जागरूकता समझिए…..बाकी फ्राड का देख रहे हैं…ऐसे-ऐसे ऐप आ गये हैं, लोन देकर आत्महत्या करवा रहे हैं…..
Samar Anarya–
निधि राजदान ने धोखा दिया या उनके साथ हुआ, ये मसला नहीं है। इस देश के बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे ‘लिबरल’ पहले भी राडिया टेप्स में पकड़े जाते रहे हैं! मसला है अर्नब गोस्वामी का बालाकोट जैसे जुमलों का भी दिनों पहले जानना, अरुण जेटली की मौत का इंतज़ार करना, दूसरे दलाल रजत शर्मा को सेट करने के लिए, वग़ैरह। ये देश को ख़तरे में डालना है! चुनाव जीतने के लिए देश को बेच देना है!
Nadim S. Akhter-
NDTV की पूर्व पत्रकार/एंकर निधि राज़दान का दावा है कि वह एक बड़े साइबर फ्रॉड यानी phishing attack का शिकार हो गई हैं। उनका कहना है कि harvard university में Associate Professor के रूप में जॉइन करने का उनको मिला ऑफर झूठा था। अब निधि ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
इस बारे में निधि ने tweet कर जानकारी दी है। उनके मुताबिक प्रोफेसर पद के ऑफर के बाद उन्होंने जून 2020 में ही #एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया और #हार्वर्ड जॉइन करने की बाट जोहने लगीं। पर मुए #pandemic ने उनकी जॉइनिंग इस साल जनवरी तक टरका दी। फिर उनको शक हुआ कि कहीं कुछ गड़बड़ है। तब जाकर मोहतरमा ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के आला अफसरों से बात की और पता चला कि हार्वर्ड की तरफ से उनको कोई ऑफर था ही नहीं। ये सब एक छलावा था, मृगमरीचिका थी, दिवास्वप्न था, दुःस्वप्न से सामना था।
ये थी निधि की कहानी, ट्विटर पर उनके लिखे की जुबानी। निधि से मुझे व्यक्तिगत तौर पर सहानुभूति है। पर एक गंभीर सवाल मेरे मन में है। 21 साल तक तेज़-तर्रार पत्रकारिता करने वाली अंग्रेज़ी की पत्रकार इतनीं आसानी से जाल में फंस कैसे गईं? फिशिंग का शिकार कैसे हो गईं? उनकी बताई कहानी कई सवाल खड़े करती है। क्या किसी से फोन-मेल आदि पर बात हो जाने भर से और ऑफर लेटर मिल जाने से ही (अगर निधि को मिला हो तो) आप विश्वास कर लेंगे कि आपकी फलां जगह नौकरी पक्की हो गई है? वह भी विदेश में! और उस आधार पर आप 21 साल वाली अपनी जमी-जमाई नौकरी से इस्तीफा दे देंगे? बिना ये जांचे-परखे कि आपके ऑफर की प्रामाणिकता क्या है और जो आदमी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के behalf में आपसे बात कर रहा है, वह जेनुइन है भी या नहीं!
अरे एक गांव का आदमी 10 जगह छानबीन करता है, करवाता है, तब जाकर विदेश की नौकरी पक्की समझता है। और निधि तो कुलीन अंग्रेज़ी की पत्रकार हैं। जनता को जागरूक करती हैं, फिर उनको बुड़बक किसने बना दिया? और वह आसानी से ठगी भी गईं! कमाल है। मुझे ये बात हज़म नहीं हो रही।
एक आम स्टूडेंट को भी अगर हार्वर्ड में पढ़ने का ऑफर मिलेगा तो हवाई जहाज़ का टिकट कटाने से पहले वह हार्वर्ड की वेबसाइट पर जाकर 50 नम्बर निकालेगा, वहां के कई अधिकारियों से बात करेगा, अपने एडमिशन के ऑफर की सत्यता जांचेगा, तब जाकर वहां पढ़ने के पैसे जुटाएगा। पर निधि ने तो कुछ संदिग्ध लोगों पर विश्वास करके अपनी नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया और दुनियाभर में हल्ला मचा दिया कि वह एसोसिएट प्रोफेसर बनकर हार्वर्ड जा रही हैं। क्या उनमें इतना भी कॉमन सेंस नहीं था कि वह डंका पीटने से पहले हार्वर्ड के पदाधिकारियों से बात करतीं, रिसेप्शन पर फोन करके वहां के एडमिनिस्ट्रेशन और मास कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के लोगों से बात करके उनको मिले प्रोफेसरी के ऑफर की सच्चाई जानतीं? एक जागरूक अंग्रेज़ीदां पत्रकार क्या इतना मूर्ख हो सकता है?
अगर ऐसा है तो ये बहुतों के लिए आंखें खोल देने वाला है। हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, ये कहावत है। हमें उम्मीद है कि निधि को ठगने वाले जल्द धरे जाएंगे, उनको न्याय मिलेगा।
एक कहावत और है- बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की।
बुद्धिजीवी/पत्रकार होने और कहलाने में बहुत फर्क है।