यशवंत सिंह-
कभी कभी थक जाता हूँ। ख़ासकर जिस दिन पता हो जो कर रहा हूँ वो बेहद निरर्थक उबाऊ और रसहीन है। सुबह से कोर्ट कोर्ट खेलता रहा। नोएडा कोर्ट, फिर दिल्ली हाईकोर्ट, फिर नए केसेज के लिए नए वकीलों से मुलाक़ात मीटिंग। अभी वापसी करते हुए घड़ी देखा तो पता चला मैं सुबह नौ से शाम चार बजे तक बेहद प्रतिबद्ध तरीक़े से सिर्फ़ कोर्ट कचहरी के चक्रव्यूह में विचरण करता रहा।
ऐसे में कल एक नए बने मित्र के साथ उनके ओशो ध्यान केंद्र के कुछ साँस प्रयोग फिर संगीत प्रयोग याद आया। अहा, कल का दिन इतना कितना अच्छा था! आह, आज का दिन कितना बुरा!
तभी समझ आया, यही अच्छा बुरा का पैकेज ही तो ज़िंदगी है। जब एक है तभी तो दूसरे का अस्तित्व है!
तभी महसूस हुआ। कुछ भी निष्प्रयोज्य नहीं!
देखें कल का ये संगीतम… धम धमम धम धम…
वीडियो लिंक ये रहा-