Abhishek shrivastava : आज एक मित्र से विचित्र सूचना मिली। वे अपनी पत्रिका के लिए कोई स्टोरी लिख रहे थे और संदर्भ के लिए MediaVigil में लिखी मेरी एक स्टोरी का लिंक लगाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने बताया कि मेरी रिपोर्ट वहां से गायब है। यह मेरे लिए अप्रत्याशित था, हालांकि अनपेक्षित नहीं।
दरअसल, मीडियाविजिल से रिश्ता तोड़ने के बाद मैंने एकाध बार जब अपने लिखे को पलट कर देखने की कोशिश की तो पता चला कि न केवल मेरी, बल्कि दर्जनों लेखकों/पत्रकारों की बाइलाइन उड़ा दी गयी है। इनमें अपने मित्र Nityanand Gayen और वरिष्ठ पत्रकार Anand Swaroop Verma भी शामिल हैं।
हम सब ने मीडियाविजिल के मालिक पंकज श्रीवास्तव को मेल लिखा और इसकी सूचना देते हुए अपनी बाइलाइन बहाल करने की गुजारिश की। इस पर उनका जवाब आया कि कोई तकनीकी दिक्कत हुई होगी, जल्द ठीक हो जाएगा। एकाध रिमाइंडर के बाद मैं खुद भूल गया इस मसले को, लेकिन आज जब पता चला कि पूरा का पूरा लेख ही गायब है तो लगा कि मसला गंभीर है। अभी हाल ही में कारवां पत्रिका ने तहलका में गायब आर्काइव के मसले पर एक स्टोरी की है।
मैंने अब तक मीडियाविजिल के प्रसंग पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी कहीं नहीं की है लेकिन मामला जब दूसरे संस्थान के माध्यम से मेरे पास आया है, तो लिखना जरूरी लगा आज। फिलहाल स्थिति यह है कि तकनीकी रूप से मैं मीडियाविजिल ट्रस्ट का ट्रस्टी हूं, मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ है, लेकिन मीडियाविजिल के सारे संसाधनों का एक्सेस मुझसे छीन लिया गया है। यहां तक कि मालिक पंकज जी ने मुझे यहां अमित्र भी कर दिया है तीन महीने पहले। अब मेरे पास अपने लिखे को पाने का कोई तरीका नहीं है। जिस दौर में किया गया सबसे जरूरी लेखन संग्रह के लायक था, उससे मेरे जैसे जाने कितने लोग हाथ धो बैठे हैं।
यह घोर अनैतिक है। इसकी वजह भी समझ नहीं आ रही। आखिर हमारे लिखे से मीडियाविजिल के धंधे की राह में कौन सा रोड़ा अटक रहा था कि अनुरोधों के बावजूद हमारा लिखा बहाल नहीं किया जा रहा। सूचना देने वाले मित्र का कहना है कि इस मामले में एफआईआर करायी जानी चाहिए। मैं मानता हूं कि ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि मीडियाविजिल आखिर अपना ही तो था और है, भले मैं अब सक्रिय भूमिका में नहीं हूं वहां। रास्ते बदल गए हैं, उद्गम तो एक ही था! उन्हें धंधा करना है तो खुशी से करें, लेकिन पत्रकारों की बौद्धिक मेहनत पर डाका डालने से क्या हासिल होने वाला है?
कारवां की एक ताज़ा स्टोरी जिसमें MediaVigil पर लिखी मेरी स्टोरी का लिंक नौवें पैरा में लगा है लेकिन वह लिंक अब 404 error दिखा रहा है। यह स्टोरी बनारस में मुसहरों के घास खाने पर पत्रकार Vijay Vineet के ऊपर हुए मुकदमे से जुड़ी थी, जिसे मीडियाविजिल ने अब उड़ा दिया है।
Mediavigil के मालिक पंकज श्रीवास्तव ने बिलकुल यूपी के मुख्यमंत्री की तरह मेरी मंशा पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। उन्हें यही नहीं समझ आ रहा कि स्टोरी में बाइलाइन कैसी होती है जबकि उन्हें बार बार बताया जा चुका है कि मेरी लिखी स्टोरी पर अब मेरे नाम की जगह मीडियाविजिल लिखा आता है जो अनैतिक है। यही कुछ और लेखकों के साथ भी किया गया है।
यह तकनीकी है, तो ठीक होना चाहिए। चार महीना हो गया, दो रिमाइंडर, उसके बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं। उस पर से स्टोरी अब गायब भी हो रही है। मेरा और भी लेखकों पत्रकारों से अनुरोध है कि वे अपनी अपनी बाइलाइन mediavigil पर जाँचें और देखें कि उनके साथ भी तो ये हादसा नहीं घटा है।
मित्रवत शक्तियों की बेमानी, अनैतिकता और पाखंड से कैसे लड़ा जाये, समझ नहीं आता।
पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से।
संबंधित खबर-