Rajesh Agrawal : ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित दस्तावेजों पर विचार करने का सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की तरफ से आम सहमति से दिया गया फैसला मीडिया के लिए जश्न मनाने का मौका देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि ‘लीक’ दस्तावेज सही हैं तो वह उनको स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई करेगी।
मुझे ‘द हिन्दू’ के सम्पादक एन. राम का कुछ दिन पहले दिया गया साक्षात्कार याद आ रहा है जिसमें उन्होंने सीना फुला देने वाला बयान दिया था कि मुझ से कोई नहीं उगलवा सकता कि ये पेपर्स मैंने कहां से हासिल किये। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 24 के अनुसार मानवाधिकार उल्लंघन और भ्रष्टाचार के मामले हों तो सुरक्षा संगठनों से भी सूचनाएं हासिल करना हमारा अधिकार है।
कई बार अख़बारों में पढ़ने को मिला कि सरकारों ने आरटीआई से निकाले गये दस्तावेजों को कार्रवाई करने का आधार नहीं माना और अदालतों ने सुनवाई का। राफेल सौदे में क्या हुआ क्या नहीं, किसने चौकीदारी की, किसने चोरी यह बाद का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला पत्रकारिता के लिए बेहद ख़ास है। आप सूचनाएं आरटीआई से, आरटीआई से परे जाकर या फिर चोरी करके भी हासिल करिये। दस्तावेजों को खंगालकर सार्वजनिक कर दीजिये। कोई सवाल करे तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आपके लिये कवच बनकर खड़ा है।
बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल का विश्लेषण.
पूरे मामले को समझने के लिए इन्हें भी पढ़ें….