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पत्रिका के उज्जैन संस्करण की हालत खराब, कर्मी दुखी, कइयों ने दिया इस्तीफा

राजस्थान पत्रिका के उज्जैन संस्करण के इन दिनों हालात खराब चल रहे हैं। यहां डेस्क पर काम करने वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही है। लगता है प्रबंधन को इस बड़े संस्करण की फिक्र ही नहीं है। पिछले दिनों अवकाश ना मिलने के कारण परिवार को समय नहीं दे पा रहे डेस्क के राकेश बैंडवाल और सूरजभान चंदेल ने अखबार को टाटा कह दिया। वहीं आईटी विभाग के शम्मी जोशी भी इंदौर के आईटी हेड महेंद्र खींची के व्यवहार के कारण अखबार छोड़ गए। जोनल एडिटर के एक आदेश के बाद संपादकीय कार्य बखूबी अंजाम देने वाले महेश बागवान को आईटी का काम सौंप दिया गया जो किसी को हजम नहीं हो रहा।

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राजस्थान पत्रिका के उज्जैन संस्करण के इन दिनों हालात खराब चल रहे हैं। यहां डेस्क पर काम करने वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही है। लगता है प्रबंधन को इस बड़े संस्करण की फिक्र ही नहीं है। पिछले दिनों अवकाश ना मिलने के कारण परिवार को समय नहीं दे पा रहे डेस्क के राकेश बैंडवाल और सूरजभान चंदेल ने अखबार को टाटा कह दिया। वहीं आईटी विभाग के शम्मी जोशी भी इंदौर के आईटी हेड महेंद्र खींची के व्यवहार के कारण अखबार छोड़ गए। जोनल एडिटर के एक आदेश के बाद संपादकीय कार्य बखूबी अंजाम देने वाले महेश बागवान को आईटी का काम सौंप दिया गया जो किसी को हजम नहीं हो रहा।

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अब डेस्क पर सिर्फ पांच लोग बचे हैं। उज्जैन से तीन संस्करण निकलते हैं और डेस्ककर्मी सिर्फ पांच। इसमें से एक कर्मचारी का साप्ताहिक अवकाश होता है। ऐसे में चार लोग मिलकर अखबार निकाल रहे हैं। इनमें से किसी साथी को यदि आवश्यक पारिवारिक कार्य भी हो तो वह ऑफिस छोड़कर नहीं जा सकता। उसे 10 घंटे से ज्यादा काम करना ही है। चाहे उसके  परिवार के काम बिगड़ जाएं, लेकिन अखबार अच्छा और समय पर निकालना जरूरी है।

सिंहस्थ के दौरान भी प्रबंधन ने दो माह तक रिपोर्टर और डेस्ककर्मियों के साप्ताहिक अवकाश और अन्य अवकाशों पर प्रतिबंध लगा दिया था। रिपोर्टर तो फील्ड के काम के साथ ही सिंहस्थ में परिवार को घुमा भी लाए, लेकिन डेस्ककर्मियों को यह मौका नहीं मिल सका। उन्हें अवकाश नहीं दिया गया। ऐसे में उन्हें जीवनभर इस बात का संताप रहेगा कि 12 साल में एक बार होने वाला महापर्व वे अपने परिवार को नहीं दिखा पाए। सिंहस्थ के बाद अब तक डेस्क के साथियों के उन दिनों के अवकाश की क्षतिपूर्ति के लिए ना तो अवकाश दिए जा रहे हैं और ना ही भुगतान।

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ये उज्जैन पत्रिका के कर्मचारियों की निष्ठा ही है कि माहौल बनने के बाद भी किसी ने भी पत्रिका के खिलाफ मजीठिया मामले में कोई केस नहीं किया। फिर भी उनके साथ ऐसा किया जा रहा है। कई साथियों के परिवार में कोई मांगलिक कार्य हो तो भी उसे अवकाश नहीं मिल पाता। साप्ताहिक अवकाश मिलेगा ही, यह भी निश्चित नहीं है। कार्य की अधिकता बताकर हर कभी साप्ताहिक बंद कर दिए जाते हैं। इसके चलते डेस्ककर्मी खुद को प्रताड़ित महसूस कर रहे हैं। इस कारण ही राकेश बैंडवाल को नौकरी छोडऩे का फैसला लेना पड़ा। उसने संपादक से अवकाश की मांग की तो संपादक ने उसे डेस्क पर साथियों की कमी होने की मजबूरी बताई। अवकाश स्वीकृत नहीं होने पर उसने परिवार को तवज्जो देते हुए नौकरी छोडऩा ही बेहतर समझा।

खुद संपादक राजीव जैन भी अगस्त 2015 में न्यूज एडिटर अभिषेक श्रीवास्तव के तबादले के बाद से लगातार तीन माह तक बिना अवकाश कार्य करते रहे। इसका कारण यह रहा कि श्रीवास्तव की जगह कोई नया न्यूज एडिटर नहीं भेजा गया। नतीजा उन्हें चिकन पाक्स हो गया। इसके बाद भी सेकंड मैन की क्षतिपूर्ति नहीं की गई। फिर डेस्क इंचार्ज अनिल मुकाती को ही सेकंडमैन की जिम्मेदारी दे दी गई। इसके बाद संपादक जैन ने साप्ताहिक अवकाश लेना शुरू किया।

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एक पत्रिका कर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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0 Comments

  1. Prem

    July 18, 2016 at 5:53 am

    जबलपुर पत्रिका की भी हालत खराब है यहां गोविंद ठाकरे पंकज श्रीवास्तव मनीष कर गर्ग वीरेंद्र रजक न****** मचाए हुए है

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