जे.एन.एन.यू.आर.एम योजना के तहत कानपुर शहर के इनर ओल्ड एरिया में पेयजल व्यवस्था दुरूस्त करने की गरज से तत्कालीन मायावती सरकार के कार्यकाल में 340 करोड़ की योजना को मंजूरी दी गयी थी। इसे सम्बन्धित अधिकारियों की लापरवाही कहें अथवा रिश्वतखोरी के लिए उपयुक्त ठेकेदार का चयन, काम देर से शुरू होने के कारण इस योजना की धनराशि भी बढ़कर 363 करोड़ हो गयी। विडम्बना यह कि इसके बावजूद उक्त योजना का कार्य वर्तमान समय तक पूरा नहीं हो सका।
अपने पिछले अंक में ‘दृष्टांत’ समाचार पत्रिका ने योजना में लूट का खुलासा किया तो आनन-फानन में मौखिक आदेश देकर शेष काम को पूरा करवाए जाने की कवायद शुरू हो चुकी है। मुश्किल इस बात की है कि आनन-फानन में काम करवाए जाने से पूरा कानपुर शहर अस्त-व्यस्त है। जहां तक गुणवत्ता परक कार्य की बात है तो इसका प्रमाण इसी कुछ स्थानों पर खुली पाइप लाइनों को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। मानक के विपरीत पाइप लाइन डालने के कारण पानी का प्रवाह शुरू होने से पहले ही जगह-जगह पाइप लाइने क्षत-विक्षत नजर आ रही हैं। इलाकाई निवासियों के साथ ही इलाके के प्रतिष्ठि व्यक्तियों में शुमार पार्षद और वार्ड अध्यक्ष गुणवत्ताविहीन कार्य को लेकर अपनी शिकायतें सम्बन्धित विभाग को दर्ज करा चुके हैं।
पेयजल योजना के कार्य को आनन-फानन में पूरा करने के कारण कानपुर शहर की हालत इतनी दयनीय हो चुकी है कि पेयजल की बात तो दूर राह पर चलना दुश्वार हो गया है। मुख्य मार्गों पर खुदे गड्ढे आए-दिन दुर्घटनाओं का सबब बन रहे हैं। इलाकाई निवासियों में सम्बन्धित अधिकारियों को लेकर व्यापक आक्रोश बना हुआ है। पिछले दिनों कानपुर शहर के कई इलाकों से लोगों ने इस समाचार-पत्रिका के पास ढेरों खत भेजे। खत का मजमून पेयजल व्यवस्था को दुरूस्त करने को लेकर है।
इधर, अरबों की योजना में करोड़ों डकार जाने वाले कथित जिम्मेदार अधिकारियों ने योजना का काम गुणवत्ता युक्त पूरा करने के बजाए समाचार-पत्रिका को ही खुलासा करने के एवज में धमकाने का प्रयास शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं समाचार-पत्रिका का प्रकाशन रोकने के लिए बकायदा विभिन्न हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं। हाल ही में इस समाचार-पत्रिका को लीगल नोटिस भेजकर भी दबाव बनाने का प्रयास किया गया। वर्तमान स्थिति यह है कि जहां एक ओर कानपुर शहर की जनता में तथाकथित लुटेरे अधिकारियों के खिलाफ आक्रोश है, वहीं दूसरी ओर अरबों की योजना में करोड़ों डकारने वाले सम्बन्धित अधिकारी मस्त हैं और लूट का पर्दाफाश किए जाने वाले पत्रकार के खिलाफ षडयंत्र का ताना-बाना बुन रहे हैं।
शहरवासियों के लिए सफेद हाथी बना पेयजल योजना
लखनऊ। उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जहां एक ओर कानपुर शहर और उसके आस-पास के इलाकों को समग्र विकास की योजना के तहत अमली जामा पहनाकर हाईटेक सिटी के रूप में देखना चाह रहे हैं वहीं दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में प्रस्तावित 100 स्मार्ट सिटी में कानपुर महानगर को भी शामिल करने के इच्छुक हैं। इधर सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों की खाऊ-कमाऊ नीति के चलते हकीकत बिलकुल इसके उलट है। स्थानीय लोगों की मानें तो जब तक तथाकथित भ्रष्ट अधिकारियों पर शिकंजा नहीं कसा जाता तब तक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के सपनों को साकार नहीं किया जा सकता।
देश के प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री ने कानपुर जनपद में जो विकास का सपना संजो रखा है उसे कुछ तथाकथित भ्रष्ट नौकरशाहों, बिगडै़ल अधिकारी और बेलगाम ठेकेदारों के काकस की वजह से थम सा गया है। विगत कई वर्षों से अपने बेहतरी के सपनों के बीच नारकीय जीवन भोगने को मजबूर शहरवासियों को अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी एक बानगी कानपुर नगर का जल-निगम विभाग है, जिसकके नकारा अधिकारियों ने कानपुर के नागरिकों के सामान्य जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर रखा है। कानपुर के ‘इनर ओल्ड एरिया’ में जे.एन.एन.यू.आर.एम. के अन्तर्गत शुद्ध पेयजल पहुंचाने का जिम्मा नगर विकास मंत्रालय के अधीन जल-निगम को दिया गया है। इसी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए जल-निगम द्वारा पिछले कई वर्षों से जगह-जगह पाइप लाइन डालने का काम विभिन्न अंतरालों में कराया जा रहा है।
शहरवासी इसे जल-निगम की लापरवाही बता रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि अरबों की योजना को कागजों में काफी पहले पूर्ण दिखाया जा चुका है। बकायदा सभी के भुगतान भी किए जा चुके हैं। विडम्बना यह है कि सम्पूर्ण भुगतान के बावजूद काम पूरा नहीं हो सका। जब इस समाचार-पत्रिका ने योजना में घोटाले का पर्दाफाश किया तो आनन-फानन में मौखिक आदेशों पर किसी तरह से काम पूरा करवाया जा रहा है। बताया जाता है कि जब कभी पैसा आ जाता है तो काम शुरू हो जाता है। पैसा समाप्त होते ही काम भी रूक जाता है। ये पैसा किसकी जेब से जा रहा है या किसके कमीशन से निकाला जा रहा है ? यह तो जांच का विषय हो सकता है लेकिन कानपुर शहर में रूक-रूक कर काम किए जाने से स्थानीय जनता बेहाल है।
अपनी लापरवाह कार्यशैली के लिए प्रसिद्ध जल-निगम ने शहर की प्रमुख सड़कों और कई अन्य मार्गों को पाईप लाईन बिछाने के नाम पर बेहद अव्यवस्था के साथ जगह-जगह खोद दिया है। जिसके कारण शहर की तस्वीर बद से बदरंग होती चली जा रही है। जल-निगम के अधिकारियों/अभियंताओं और दबंग ठेकेदारों के गठजोड़ के कारण शहर की धूल-धूसरित सड़काकें पर राहगीर गिरते-पड़ते किसी तरह अपने गंतव्य को पहुंच रहे हैं। किसी बाहरी व्यक्ति के कानपुर आगमन पर उसको हर तरफ खुदाई के कारण सिर्फ धूल ही धूल उड़ती नजर आती है। जगह-जगह खुदाई के कारण हर तरफ जाम की स्थिति बनी रहती है। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि बाहरी व्यक्ति एकबारगी कानपुर को शहर कहने पर भी आश्चर्य व्यक्त करने लगा है।
शहर की प्रमुख सड़क मॉल रोड पर तीन जगहों पर एक साथ खुदाई के कारण आवा-गमन कई स्थानों पर बाधित है। रास्ता रूका होने के कारण राहगीरों को मार्ग बदलकर जाना पड़ता है। खुदाई के कारण खतरनाक सड़कें ठण्ड के मौसम में कोहरे के कारण जानलेवा साबित हो रही हैं। उंगलियों पर गिनी जाने वाली कुछ ही सड़कें ऐसी होंगी जहां खुदाई नहीं हो रही है। जिन स्थानों पर सड़कें खुदी हुई हैं, या फिर काम चल रहा है, वहां के ठेकेदारों की दबंगई भी स्थानीय जनता को भुगतनी पड़ रही है। उस पर तुर्रा यह कि ठेकेदार सरकारी काम कर रहे हैं। यदि उनके कार्य में बाधा पहुंचायी गयी तो विभिन्न मामलों में मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जा सकता हैं। शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की रूपरेखा बनाने में जुट अफसरों से आम जनता सैकड़ों बार गुहार लगा चुकी है।
जनता का कहना है कि ठण्ड के मौसम में कोहरे के प्रकोप को देखते हुए खुदाई का कार्य शीघ्र पूरा कर लिया जाना चाहिए ताकि दुर्घटना में लोग अपनी जानें न गवाएं। माल रोड पर आर.बी.आई. के सामने बड़ा चौराहा और परेड के अलावा साकेत नगर, किदवई नगर, रावतपुर क्रॉसिंग से लेकर काकादेव, विजय नगर और श्याम नगर क्षेत्रों में भी जल-निगम ठेकेदारों द्वारा शहर की प्रमुख सड़कों को अव्यवस्थित खुदाई के कारण बाधित कर दिया गया है। जिसके कारण शहर में यातायात समस्या अपने चरम पर है। इसी तरह से लेनिन पार्क पी रोड से भदौरिया चौराहा, जवाहर नगर तक खोदी गयी सड़क को मोटेरेबुल करने के नाम पर जल-निगम ने पिछले पांच महीनों से सिर्फ पत्थर की गिट्टियां डालकर छोड़ दिया है। अत्यधिक कोहरे के कारण रात में गिट्टी न दिखने के कारण वाहन चालक गिरकर चोटिल हो रहे हैं। पिछले दिनों क्षेत्रीय पार्षद अतुल त्रिपाठी ने नगर-निगम की सदन बैठक में इस समस्या से अवगत कराया था। कुछ पार्षदों ने बकायदा धरना-प्रदर्शन तक किया लेकिन जल-निगम अभियंताओं पर कोई असर नहीं पड़ा।
फूलबाग स्थित बाल-भवन मार्ग रोड, जो कि शुक्लागंज उन्नाव जाने वाले पुराने गंगा पुल को जोड़ता है, जल निगम के अफसरों की ढिलाई के कारण अपनी बदहाली पर रो रहा है। फूलबाग बाल-भवन के सामने वाली प्रमुख सड़क पर आज से चार वर्षों पूर्व पेयजल की पाईप लाइन डालने का कार्य जल-निगत द्वारा शुरू करवाया गया था। शहर की अन्य सड़कों की भांति बाल-भवन रोड की पाईप लाइन डालने के समय से लेकर आज तक क्षेत्रीय लोगों के साथ-साथ राहगीरों को भी बदहाली व अव्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है। अचरज का विषय है कि कम्पनी के कारिंदों ने मुख्य रोड पर तो पाइप लाइन डाल दी लेकिन दोनों चौराहों पर पाइप लाइन को जोड़ने की जहमत तक नहीं उठायी। साथ ही कम्पनी के लोगों ने उल्टे-सीधे तरीकों को अपनाते हुए खुदी सड़क को जैसे तैसे पाटकर इतिश्री कर ली थी। बाद में पता चला कि कम्पनी काम छोड़कर ही भाग गयी है। परिणामस्वरूप स्थिति जस की तस बनी हुई है। उक्त कार्य को छोड़कर भाग जाने वाली दोशियान कम्पनी के बाद जल-निगम ने जिस कम्पनी को दोनों ओर की पाइप लाइन जोड़ने का काम आवंटित किया है वह भी कार्य नहीं कर रही है।
ध्यान रहे इस रोड पर पिछले चार वर्षों से राहगीरों को गड्ढों और सड़क पर फैली बजरी के बीच से होकर गुजरना पड़ रहा है। ‘दृष्टांत’ समाचार-पत्रिका ने पाइप लाइन की इस कार्य योजना में हुए घोटाले तथा जनता को हो रही परेशानी के बाबत विस्तृत उल्लेख अपने पिछले अंक में प्रमुखता से किया था। सड़कों की इस दुर्दशा का संज्ञान लेते हुए बाल भवन रोड पर कार्य करने वाली कम्पनी के विरूद्ध मुकदमा दर्ज करवाए जाने की चेतावनी कानपुर की जिलाधिकारी डॉ. रोशन जैकब ने दी थी। जिलाधिकारी की चेतावनी के बाबत जब इस संवाददाता और दृष्टांत की कानपुर की टीम ने मौके का जायजा लिया तो स्थिति जस की तस मिली। चौराहे पर किसी गांव की बदहाल-बदसूरत सड़क का नजारा देखने को मिला। रोड पर हिचकोले खाते वाहन और परेशानी के साथ निकलते मोटर साइकिल सवार नजर आए। मौके पर न तो कोई ठेकेदार था और न ही पाइप लाइन डालने वाला कोई मजदूर। इन परिस्थितियों में सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मौजूदगी की कल्पना करना भी व्यर्थ है। नजारा देखकर ऐसा लगा जैसे भविष्य में कोई काम भी नहीं किया जाना है।
गौरतलब है कि जिलाधिकारी द्वारा कम्पनी संचालक को दी गयी चेतावनी की अवधि पूरी हो जाने के बाद कम्पनी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किए जाने के आदेश जारी किए थे। विडम्बना यह है कि जिलाधिकारी के आदेश के बावजूद न तो काम शुरू हो सका और न ही कम्पनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर वैधानिक कार्यवाई ही की गयी। साफ जाहिर है कि अरबों की योजना में करोड़ों की लूट को अंजाम देने वाले अधिकारियों को पल-पल की जानकारी मुहैया करवायी जा रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इन्हीं अधिकारियों के दबाव के चलते जिलाधिकारी की चेतावनी और आदेश भी रद्दी की टोकरी के हवाले किए जा रहे हैं।
इस सम्बन्ध में नगर-निगम के पर्यावरण अधिशासी अभियंता पंकज भूषण ने जिलाधिकारी के पत्र का उत्तर भेजे जाने की जानकारी देते हुए बताया कि कम्पनी और जल-निगम अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा रही है। जब इस संवाददाता ने जल-निगम कानपुर में मौजूद अपने सूत्रों से जानकारी हासिल की तो ज्ञात हुआ कि उक्त अधिकारी का न तो ऐसा कोई आदेश आया है और न ही वह आदेश देने में सक्षम हैं। जाहिर है कि इस मामले को दबाने के लिए निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक के अधिकारी जी-जान से जुटे हुए हैं। इधर कानपुर नगर को देश में प्रस्तावित सौ स्मार्ट सिटी में शामिल करने की संभावनाएं तलाशने और केन्द्रीय योजनाओं की दुर्गति न हो, इसके लिए केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के जिम्मेदार अधिकारी फिक्रमंद हैं। इतना ही नहीं कानपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए केन्द्र ने सीधी निगरानी के साथ ही उत्तर-प्रदेश के सम्बन्धित अधिकारियों व जन-प्रतिनिधियों के साथ मिलकर विकास की योजनाओं और नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं को उन तक पहुंचाने के लिए मंथन भी कर रहा है।
कानपुर शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पिछले वर्ष 27 दिसम्बर 2014 को सर्किट हाउस में सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी की पहल पर स्थानीय व केन्द्रीय अधिकारियों ने जनप्रतिनिधियों, उद्यमी, व्यापारी और सामाजिक संगठनों के लोगों के साथ मिलकर एक बैठक आयोजित की। बैठक में बकायदा कानपुर शहर को स्मार्ट सिटी बनाने का खाका खींचा गया था। केन्द्र सरकार की ओर से आए शहरी विकास मंत्रालय के अपर सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने यह माना कि कानपुर महानगर में संसाधनों की कमी नहीं है लेकिन आपसी विभागीय सामंजस्य व समन्वय के अभाव में विकास का पहिया व नागरिकों तक पहुंचने वाली सरकारी सुविधाएं ठीक ढंग से और गतिशील नहीं हैं।
बताते चलें कि इस बैठक में भी कुछ सामाजिक संगठन के लोगों ने शहर में पेयजल योजना के बाबत पाइप लाइन डालने की आड़ में हो रही अव्यवस्था और नागरिकों की परेशानी के मुद्दे को उठाया था लेकिन जल-निगम के अधिकारियों ने कागजों पर काम-काज दिखाते हुए शीघ्र घरों तक पानी पहुंचाने का आश्वासन देकर मुद्दे को ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया। इस सम्बन्ध में मुद्दा उठाने वाले सामाजिक संगठन के लोगों का कहना है कि जल-निगम की गतिशीलता, सड़कों की बेहतरी और आम लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने के लिए उत्तर-प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री को स्वयं कार्यों की सतत निगरानी रखनी होगी। साथ ही दोषी अधिकारियों से लेकर जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों को कार्य के प्रति लापरवाही बरतने के मामले में दण्डित करना होगा तभी उनके सपनों को पंख लग पायेंगे।
यहां यह बताना भी बहुत जरूरी है कि कानपुर की प्रमुख सड़कों पर पेयजल लाइन बिछाने के लिए नियम व कायदों को दर-किनार रखा गया है। खास बात यह है कि एक ही काम के लिए उसी जगह को कई-कई बार खोदा गया। इस कारण सरकारी धन का तो दुरूपयोग हुआ ही साथ ही समय से कार्य पूरा न होने के कारण कार्य की लागत भी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है। जे.एन.एन.आर.यू.एम योजना के तहत शहर में कई वर्षों से चल रही अव्यवस्थित खुदाई में गुणवत्ता व मानकों का अनुपालन न करने के साथ ही खुदाई के दौरान सुरक्षा मानकों के साथ भी खिलवाड़ किया गया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक खुदाई के दौरान कई मजदूर घायल हो चुके हैं। चूंकि दबंग ठेकेदार को उच्च पदस्थ अधिकारियों का वरदहस्त प्राप्त रहा है लिहाजा कोई भी मामला अब थाने नहीं पहुंच सका। फिलहाल 340 करोड़ की योजना में करोड़ों कमाने वाले अधिकारी मौज में हैं जबकि कानपुर शहर की वह जनता पस्त है जो अपने ही पैसों से मूलभूत सुविधाओं की हकदार है।
‘मुझे इस बात की जानकारी है कि जिलाधिकारी महोदया ने जल-निगम के सम्बन्धित अधिकारी व लापरवाह ठेकेदारों के विरूद्ध समयबद्ध तरीके से कार्यों को न निपटाए जाने के कारण उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किए जाने का आदेश नगर आयुक्त को दिया है। अब तक जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गयी इसकी जानकारी नगर आयुक्त ही दे सकते हैं’। – अविनाश सिंह, ए.डी.एम. सिटी, कानपुर
‘‘जिलाधिकारी महोदया ने जल-निगम के अफसरों व लापरवाह ठेकेदारों के विरूद्ध समय से कार्य न पूरा करने के कारण नगर आयुक्त महोदय को आदेश दिया था कि वे उन लोगों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत करवाएं। इस सम्बन्ध ने नगर आयुक्त ने जिलाधिकारी महोदया को उनके पत्र का उत्तर भेज दिया है। साथ ही सम्बन्धित लोगों के खिलाफ निगम द्वारा आवश्यक विभागीय कार्रवाई की जा रही हैं। पंकज भूषण, अधिशाषी अभियंता, पर्यावरण, नगर-निगम, कानपुर
‘आपकी बात सही, खुदाई के कारण आम जनता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बचा हुआ कार्य हम लोग तेजी के साथ निपटा रहे हैं। मैं आपको उम्मीद दिलाता हूं कि बहुत जल्द कानपुर महानगर मे पेयजल पाइप लाइन डालने का कार्य पूरा कर लिया जायेगा। तत्पश्चात समस्त समस्याओं का निदान भी हो जायेगा। एस.के. गुप्ता परियोजना प्रबंधक, जल-निगम, कानपुर
सुरक्षा के मानक
अगर बीच सड़क पर खुदाई की जा रही है तो टीन शेड लगाकर रास्ते को चारो ओर से बंद कर दिया जाए। खुदाई स्थल पर बेरीकेटिंग लगाइ जानी चाहिए। सर्दी के दिनों में कोहरे को देखते हुए खुदाई स्थल से 10 मीटर की दूरी पर लाल रंग की रेडियम पट्टी से चेतावनी लिखी होनी चाहिए। अव्यवस्थित ढंग से फैली मिट्टी और बालू के पास झंडी भी लगायी जानी चाहिए। खुदाई के दौरान उपयोग में लायी जाने वाली सरिया और गॉटर आदि पर भी लाल रंग का रेडियम चिपका होना चाहिए ताकि वाहनों के हेडलाइट की रोशनी से वह साफ नजर आए। खुदाई के दौरान सभी मजदूरों के सिर पर हेलमेट होना चाहिए। इसके अतिरिक्त खुदाई स्थल पर अन्य समुचित व्यवस्थाए होना जरूरी हैं। सच्चाई यह है कि सम्बन्धित ठेकेदार कभी भी इन नियमों का अक्षरशः पालन नहीं करता।
विश्वासपात्रों ने भी चाटी मलाई
प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार बसपा सरकार के कार्यकाल में उक्त योजना के तहत हुई तथाकथित लूट में उन लोगों ने भी जमकर मलाई चाटी जो पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के करीबी लोगों में शुमार थे। यहां तक कि सुरक्षा में तैनात अधिकारियों के पुत्रों ने भी जे.एन.एन.यू. आर.एम. योजना में फर्जी तरीके से नियुक्ति हासिल कर अपनी हैसियत सुधार ली। बसपा शासनकाल में अरबों की इस योजना में करोड़ों की लूट मामले में अधिकारी से लेकर नेता तक और संतरी से लेकर मंत्री तक ने जमकर बहती गंगा में हाथ धोए। सरकारी धन की लूट में शामिल एक ऐसे शख्स अमित सिंह का नाम हाल ही में सामने आया है जिसने उक्त योजना में प्रथम तो नियम विरूद्ध तरीके से नियुक्ति पाई, इसके बाद जमकर अपने अधिकारों का दुरूपयोग भी किया।
आरोप है कि अमित सिंह की उक्त योजना में बिचौलिए की भूमिका रही थी। आरोप तो यहां तक लगाए जा रहे हैं कि अमित सिंह की जेएनएनयूआरएम योजना में तैनाती ही इसी मकसद से करवाई गयी थी, जबकि अमित सिंह उक्त पद के लिए अर्हता ही नहीं रखते थे। इसके बाद उनकी नियुक्ति के लिए तत्कालीन बसपा सरकार ने बकायदा एक नया पद सृजित करके अमित को लोक सेवा आयोग के पद पर बतौर सहायक नगर आयुक्त तैनात कर दिया था। बताया जाता है कि बसपा सरकार के कार्यकाल से ही उनकी नियुक्ति को चुनौती दी जाने लगी थी। बसपा सरकार में तो शिकायत दर्ज करवायी ही गयी थी साथ ही वर्तमान अखिलेश सरकार के कार्यकाल में भी उनकी नियुक्ति को चैलेंज किया गया था। अंततः शासन ने लगभग ढाई वर्ष का कार्यकाल बीत जाने के बाद 29 दिसम्बर 2014 को अमित सिंह की नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए सहायक नगर आयुक्त के पद से बर्खास्त कर दिया।
बताया जाता है कि अमित सिंह पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के बेहद करीबी माने जाते थे। वे मायावती के विशेष सुरक्षा अधिकारी पदम सिंह के पुत्र हैं। अमित सिंह पर आरोप है कि तैनाती के समय से ही विभाग में उनकी तूती बोलती थी, साथ ही ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में भी उनकी गहरी दखल थी। उनकी हनक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब तक सूबे में बसपा की सरकार रही अमित सिंह अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर हावी रहे।
कानपुर जल-निगम के एक कर्मचारी ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि जेएनएनयूआरएम योजना में अमित सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अमित ने न सिर्फ इस योजना में अथाह कमाई की बल्कि सम्बन्धित विभाग के तत्कालीन मंत्री और जिम्मेदार अधिकारियों संग ठेकेदारों के मेल-मिलाप में भी अहम भूमिका निभायी। हालांकि अमित सिंह ज्यादा समय तक उक्त योजना में शामिल नहीं रहे लेकिन अल्प समय में ही वे अरबों की योजना में करोड़ों के घोटाले की पृष्ठभूमि जरूर तैयार कर गए। इनके करीबी लोगों का दावा है कि सपा सरकार के कार्यकाल में उन्हें परेशान किए जाने की गरज से इस तरह के हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं। बसपा के दोबारा सत्ता में आते ही अमित सिंह एक बार फिर से पॉवरफुल अधिकारियों में शुमार होंगे।
फिलहाल जानकार सूत्रों के मुताबिक अमित सिंह को लेकर सत्ता में बैठे कुछ दिग्गजों ने जांच की मांग भी उठायी है, ताकि भ्रष्ट तरीके से कमाई गयी रकम का पूरा खुलासा हो सके। कुछ अधिकारियों का तो यहां तक मानना है कि यदि अमित सिंह के मामले में सरकार ने सख्त कदम उठाए तो निश्चित तौर पर ऐसे कई बडे़ अधिकारियों के भ्रष्टाचार का खुलासा होगा जिन्होंने जेएनएनयूआरएम योजना के तहत करोड़ों रूपए डकार लिए।
यह आर्टकिल लखनऊ से प्रकाशित दृष्टांत मैग्जीन से साभार लेकर भड़ास पर प्रकाशित किया गया है. इसके लेखक तेजतर्रार पत्रकार अनूप गुप्ता हैं जो मीडिया और इससे जुड़े मसलों पर बेबाक लेखन करते रहते हैं. वे लखनऊ में रहकर पिछले काफी समय से पत्रकारिता एवं ब्यूरोक्रेसी के भीतर मौजूद भ्रष्टाचार की पोल खोलते आ रहे हैं.
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