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सुख-दुख

एक अनोखा थानाध्यक्ष

बद्री प्रसाद सिंह-

वर्ष 1999 में मैं मीरजापुर से स्थानांतरित होकर पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ नगर बना। वहां मेरे पेशकार उप निरीक्षक रामदास यादव थे। वह कम सुनते थे सो कान में सुनने के सहायक यंत्र लगाते थे।सामान्यतया पुलिस अधीक्षक के पेशकार, स्टैनों पुलिस अधीक्षक को इधरउधर की बातें बताकर बरगलाते हैं लेकिन वह इनसे भिन्न थे।

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एक दिन एक नेता ने बताया कि कुछ माह पूर्व रामदास भवानीपुर थाने का प्रभारी था,एक दिन भाजपा के पूर्व विधायक किसी सिफारिश में थाने आए थे।बातोंबातों में वह तत्कालीन यसपी के विषय में अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर दिया।रामदास तत्काल उन्हें गाली देता हुआ थाने से भगा दिया।नेताजी पुलिस अधीक्षक से उसकी झूठी शिकायत कर उसे थानाध्यक्ष पद से हटवा दिया और वह तब से पेशकर था।

मैनें इस घटना की सत्यता पता की तो बात सही मिली।यह भी पता चला कि वह ईमानदार थानाध्यक्ष था तथा जनता से सीधे बात कर समस्या सुलझता था।उसकी छवि अच्छी थी।उसने अपने वरिष्ठ अधिकारी के सम्मान के लिए शासक दल के प्रभावशाली नेता की भी परवाह नहीं की,लेकिन परिणाम सामने था।

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एक दिन मैनें उक्त घटना उससे जाननी चाही तो वह टाल गया।उसने न तो नेता की बुराई की न उस यसपी की।मुझे उसका यह दृष्टिकोण बहुत पसंद आया।उसे मैने उसका बाजार थाने का थानाध्यक्ष बना दिया और बता दिया कि निश्चिंत होकर वह अपना कार्य इमानदारी से करे। उसके कार्य से प्रभावित होकर उसे कुछ माह बाद सिद्धार्थ नगर कोतवाली का थानाध्यक्ष बना दिया।

कोतवाली में उसके आने के बाद जनता में तो उसकी प्रशंसा होने लगी लेकिन नेता बिरादरी में उसकी शिकायतें बढ़ गई।वह फरियादी से नेता के माध्यम से बात न कर सीधे बात करता था तथा यदि कोई नेता कोई गलत सिफारिश करने थाने जाय तो वह कान में से अपनी मशीन निकाल कर बहरा बन जाता था।नेता के बार बार कहने पर भी उनकी बात न सुनने का भाव प्रकट करता अंत में नेता ऊब कर चला जाता और मुझसे उसकी शिकायत करता।उसकी इस अदा का मैं कायल हो गया।मैं नेताओं को उसकी निष्पक्षता तथा ईमानदारी के गुण बताकर उन्हें चलता करता।

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कोतवाली क्षेत्र के विधायक मा. धनराज यादव उसके सजातीय तथा कैबिनेट मंत्री थे।वह ईमानदार तथा निःसंतान थे और अपने भतीजे की परवरिश की थी।वह अपने भतीजे की शादी रामदास यादव की लड़की से करना चाहते थे परंतु रामदास ने इस संबंध से इनकार कर दिया। इधर उधर के प्रयास के बाद मा.मंत्री जी ने मुझसे यह संबंध कराने के लिए कहा तो मुझे आश्चर्य हुआ।मैनें रामदास से बात कर बताने को कहा। मैनें रामदास को बुलाकर इस संबंध में जब बात की तो उसने बताया कि उसकी लड़की गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. कर रही है तथा पढ़ने में अच्छी है जबकि मंत्री का भतीजा नकल कर मुश्किल से बी.ए.किया है। मंत्री कल हट जाएगा तब भतीजे को कौन पूछेगा?

इस उत्तर से मैं स्तब्ध रह गया और उससे और कोई बात नहीं की।मंत्री जी के बारबार अनुरोध करने पर कुछ दिन बाद मैं उसको बुलाकर समझाया कि वह ईमानदार है, पैसा है नहीं, अच्छी शादी शायद न कर पाए, मंत्री का भतीजा अधिक पढ़ा नही है लेकिन आवारा, शराबी नहीं है। उसके पास संपत्ति है,शादी बाद बेटी को कष्ट नहीं होगा।

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मेरे समझाने पर वह मान गया। विवाह गोरखपुर से किया जिसमें मैं भी सम्मिलित होकर वर-बधू को आशीर्वाद दिया। शादी बाद उसने गैर जिला स्थानांतरण का आवेदन दिया। पूछने पर बताया कि मंत्री जी से संबंध होने के कारण लोग उसकी तथा मंत्री की झूठी सच्ची शिकायतें करेगें, वह यहां नौकरी नहीं करना चाहता।

मैनें उसे समझाया कि जब तक मैं हूँ तब तक वह यहीं रहे।

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सोचता हूँ कि कैसे कैसे अधीनस्थों के साथ काम करने का मुझे अवसर मिला जो निष्ठा एवं सत्यनिष्ठा के साथ अपने शर्तों पर पुलिस में सेवा की।मैं नहीं जानता अब वह कहाँ है,जीवित भी है या नहीं, ईश्वर ऐसे चरित्रवान व्यक्ति पर अपनी कृपा बनाए रखे।

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