
बद्री प्रसाद सिंह-
प्रदेश को माफिया मुक्त करने एवं शांति-व्यवस्था को सुधारने का उत्तरदायित्व निभानेवाली पुलिस व्यवस्था में नित नए प्रयोग कर मुख्यमंत्री जी सभी को चौंका रहे हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व डीजीपी मुकुल गोयल को हटा कर डीजी अभिसूचना देवेन्द्र चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बना कर निदेशक सतर्कता (डीजी विजिलेंस) का अतिरिक्त प्रभार दे दिया। चौहान वरिष्ठता क्रम में नीचे थे इसलिए उनका नाम डीजीपी के पैनल में अनुमोदित नहीं हो सका और वह कार्यवाहक डीजीपी के पद से ही कल सेवानिवृत्त हो गए । इतने लंबे समय तक उ.प्र. के कार्यवाहक पुलिस प्रमुख रहने तथा डीजीपी,डीजी विजिलेंस,डीजी अभिसूचना का पद एक साथ धारण करने का कीर्तिमान भी उन्होंने बनाया।
डीजी विजिलेंस और डीजीपी का चार्ज कभी भी एक व्यक्ति को नहीं दिया जाता। दोनों पद दो अधिकारी के पास रहते हैं।इसका सीधा कारण है कि डीजीपी या उनके चहेते पुलिस अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण की जांच डीजी विजिलेंस कराकर सीधे शासन को अपनी आख्या भेजता है क्योंकि वह सीधे शासन के प्रति उत्तरदाई है, डीजीपी के प्रति नहीं।यह व्यवस्था शासन द्वारा पुलिस विभाग के भ्रष्टाचार की जानकारी तथा नियंत्रण के लिए की गई है। एक ही अधिकारी के पास यदि उक्त दोनों विभाग होंगे तो वह अत्यधिक शक्तिशाली होगा और बेहिचक भ्रष्टाचार कर सकेगा। लगभग एक वर्ष तक पुलिस विभाग के यह दोनों सर्वोच्च पद हेतु कोई भी योग्य पुलिस अधिकारी मुख्यमंत्री जी को नहीं मिला,यह दुर्भाग्य पूर्ण है। रामचरितमानस में राजा जनक के शब्दों में “वीर विहीन मही मैं जानी’।
देवेन्द्र चौहान के कल सेवानिवृत्ति के पश्चात डा. राजकुमार विश्वकर्मा को पुलिस महानिदेशक बनाया गया, लेकिन यह भी कार्यवाहक ही हैं।वह दो माह बाद सेवानिवृत्त होंगे। इन्हें क्यों पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बनाया गया,यह समझ से परे है।यदि यह योग्य हैं तो इन्हें सेवा-विस्तार दिया भी जा सकता है। कार्यवाहक अधिकारी को अधीनस्थ अधिक भाव नहीं देते और वह भी बहुत उत्साहित होकर कार्य नहीं करता है।चार छः दिन का कार्यवाहक तो चल जाता है लेकिन इससे अधिक समय तक का कार्यवाहक अनुचित है।विश्व की सबसे बड़ी पुलिस (उ. प्र. पुलिस)का कार्यवाहक मुखिया होना पुलिस और प्रदेश के लिए दुर्भाग्य पूर्ण है।कुछ लोग इसे राजनैतिक चश्में से देखते हुए पिछड़ा वर्ग के तुष्टिकरण के रूप में देख रहे हैं, सत्यता क्या है, मुख्यमंत्री जी ही जानें।
इसी के साथ पुलिस विभाग के शीर्ष पदों पर अन्य स्थानांतरण भी हुए हैं।१- प्रशांत कुमार को स्पेशल डीजी कानून व्यवस्था के साथ अपराध और आर्थिक अपराध शाखा का भी प्रभार दिया गया है। शांति-व्यवस्था तथा अपराध तो ठीक है लेकिन आर्थिक अपराध अलग शाखा है। शान्ति व्यवस्था और अपराध देखने के बाद उन्हें आर्थिक अपराध के पर्यवेक्षण के लिए समय नहीं बचेगा और यह शाखा उपेक्षित रहेगी।
विजय कुमार डीजी सीबी, सीआईडी थे उन्हें डीजी विजिलेंस का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।सीबी सीआईडी डीजीपी के अधीन है जबकि विजिलेंस सीधे शासन के प्रति उत्तरदाई है। इसमें भी उपरोक्त बात लागू होगी।
इसी तरह की विसंगति शासन के कई अन्य विभागों में भी हैं, सुचारू रूप से प्रशासन चलाने हेतु इन पर मां. मुख्यमंत्री जी को ध्यान देना उचित होगा। इन वरिष्ठ अधिकारियों की ही बात क्या की जाय, हमारे मुख्य सचिव जी को भी उनके सेवानिवृत्ति के दिन दो वर्ष का सेवा विस्तार देकर उन्हें प्रदेश का मुख्य सचिव बनाकर दिल्ली से लखनऊ भेज दिया गया। उ.प्र. के इतने बड़े आईएएस काडर में मुख्य सचिव पद हेतु क्या कोई आईएएस आर्ह्य नहीं था जो सेवानिवृत्त अधिकारी को सेवा विस्तार देकर यहां भेजा गया? लगता है कि देश में घूम घूम कर चुनाव प्रचार करने तथा धार्मिक हिंदू स्थलों की परिक्रमा करने के कारण योगी जी प्रदेश प्रशासन पर अपेक्षित समय नहीं दे पा रहे हैं, इसीलिए अफसरशाही बेलगाम हो रही है। योगी जैसा इमानदार, निष्पक्ष और परिश्रमी मुख्यमंत्री से प्रदेश की जनता को बड़ी अपेक्षाएं हैं , इसीलिए उसने योगी जी को दोबारा चुना है। योगी जी को जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना ही होगा।
लेखक रिटायर आईपीएस अधिकारी हैं।