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साहित्य

सम्मान को कबाड़ में बेचने वाले पत्रकार प्रेम कुमार गौतम का पहला काव्य संग्रह है ‘उन दिनों के लिए’

लक्ष्मी नारायण शर्मा

झाँसी : विद्रोही स्वर के जनपक्षधर कवि, पत्रकार और लेखक प्रेम कुमार गौतम का पहला काव्य संग्रह छपकर आ गया है। लगभग चार दशकों से पत्रकारिता और रचनाधर्मिता से जुड़े गौतम का यह पहला काव्य संग्रह है। वे हमेशा से किसी तरह के संग्रह के प्रकाशन को लेकर इंकार करते रहे लेकिन इस बार मित्रों और परिचितों के कहने पर वे इसे प्रकाशित कराने को तैयार हो गए और इस तरह ‘उन दिनों के लिए’ नाम से काव्य संग्रह पाठकों के हाथ में आ चुका है।

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प्रेम और लक्ष्मी!

भोपाल के पहले पहल प्रकाशन ने इस कविता संग्रह को प्रकाशित किया है, जिसमें अलग-अलग स्वरों और तेवरों की 67 कविताएं हैं। संग्रह की भूमिका में कवि स्वप्निल श्रीवास्तव लिखते हैं – ‘ प्रेम कुमार गौतम की कविताएं, हमारे रोजमर्रा के जीवन और आसपास घट रही घटनाओं को अपना काव्य विषय बनाती हैं। इन कविताओं में जीवन के अनेक दृश्य और विचार साथ-साथ आते हैं। उनकी कविताओं में भावुकता भी है और चीजों को नए सिरे से पहचानने का हुनर भी है। ये बलात लिखी गई कविताएं नहीं लगती हैं बल्कि वे कवि के अर्जित अनुभव से घटित होती हैं। उनकी कविताओं में जीवन का सूक्ष्म अवलोकन दिखाई देता है। ‘

इस काव्य संग्रह की अधिकांश कविताएं देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हो चुकी हैं। हंस, साक्षात्कार, उद्भावना, वसुधा, वर्तमान साहित्य, कथाक्रम, परिवेश, आकंठ, साहित्य सरस्वती, युद्धरत आम आदमी, राग भोपाली, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रबोध सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित गौतम की कविताएं संग्रह रूप में ‘उन दिनों के लिए’ नाम से प्रकाशित हुई हैं।

संग्रह की शीर्षक कविता ‘उन दिनों के लिए’ की कुछ पंक्तियां उनके रचनाधर्म की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती हैं –

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उन दिनों के लिए 

बचाये रखनी है तमाम चीजें

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मुट्ठी भर धूप, अंजुरी भर जल

फेफड़ों में जीवन की क्रिया

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पलकों में थोड़ी सी हया

काव्य संग्रह की एक अन्य कविता है – नहीं हूँ तो नहीं हूँ। इस कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं –

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मैं तुम्हारे जमाने का आदमी नहीं हूँ भाई

क्या करूँ/ अब नहीं हूँ/ तो नहीं हूँ

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किसी कारखाने में चला जाऊं/सांचे में ढल जाऊं

कैसे/भला कैसे ?

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मैं तुम्हारे समाज का चलन नहीं हूँ भाई

वे नहीं आएंगे शीर्षक से लिखी एक कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं –

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वे नहीं देखेंगे तुम्हें

नहीं सुनेंगे तुम्हारी आवाज

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उन्हें नहीं है खबर

किस हाल में हो तुम

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उन्हें नहीं है फिक्र

तुम भूखे हो कि प्यासे

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ये भी अजीब बात है कि

तुम्हें अकीदा है बहुत

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उन पर

पुस्तक के पिछले हिस्से में कवर पेज पर कवि के बारे में लिखे गए परिचय से कवि के फक्कड़ स्वभाव और उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता की जानकारी मिलती है। पता कालम में वे लिखते हैं – ‘ झाँसी में फिलहाल किराए के मकानों में कभी यहां, कभी वहां निवास, कोई स्थाई पता नहीं।’ सम्मान और पुरस्कार कालम में लिखा है – ‘ सम्मान, पुरस्कार प्रतियोगिता आदि में विश्वास नहीं। आजीवन सम्मान पुरस्कार न ग्रहण करने का संकल्प। जो थे उनका कबाड़ में विक्रय। ‘

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झांसी से पत्रकार लक्ष्मी नारायण शर्मा की रिपोर्ट.

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