Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

यूक्रेन पर रूस का अगला हमला सिर पर खड़ा है, कहीं विश्व युद्ध न हो जाए!

चंद्रभूषण-

पूतिन को विलेन बनाकर नहीं सुलझेगी यूक्रेन की गुत्थी

Advertisement. Scroll to continue reading.

मध्य यूरोप में यूक्रेन के इर्दगिर्द अभी जिस तरह का तनाव देखने को मिल रहा है, वह यही बताता है कि दो विश्वयुद्धों की मुख्यभूमि होने के बावजूद यूरोप के राजनेता अपने प्रभाव क्षेत्र में आने वाले देशों के भीतरी झगड़ों को समय से सुलझा लेने का एक भी सबक नहीं सीख पाए हैं। यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में पिछले आठ वर्षों से रूसीभाषी बनाम यूक्रेनीभाषी का गृहयुद्ध चल रहा है। सवाल यह है कि भारत में पंद्रह राष्ट्रभाषाएं जब मजे से एक साथ रह सकती हैं तो यूक्रेन में रूसी को उप-राष्ट्रभाषा बनाने की भी गुंजाइश क्यों नहीं खोजी जा सकती? खासकर तब, जब पूर्वी यूक्रेन के गृहयुद्ध वाले क्षेत्र दोनबास के दो-तिहाई लोग सरकारी कागजों में अपनी भाषा रूसी ही दर्ज करते हैं।

लेकिन न सिर्फ यूक्रेन बल्कि समूचे यूरोप में भाषाई या क्षेत्रीय स्वायत्तता को इतने खौफ से देखा जाता है कि स्पेन से लेकर ब्रिटेन तक जहां भी ऐसे सवाल उठते हैं, हर जगह बात अलग होने की हद तक ही जाती है। अभी हालत यह है कि रूस की फौजें यूक्रेन के साथ लगने वाली सीमा पर ही नहीं, युद्धाभ्यास के नाम पर यूक्रेन और रूस के पड़ोसी देश बेलारूस में भी बहुत बड़ी तादाद में लगी हुई हैं और किसी भी क्षण उनके यूक्रेन पर चढ़ जाने की सनसनी पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है। अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों की ओर से ऐसे बयान जारी किए जा रहे हैं कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने अगर यूक्रेन में कोई सैनिक दुस्साहस दिखाया तो उन्हें इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह और बात है कि ऐसे न जाने कितने बयान तब भी सुनने में आए थे जब रूसी फौजों ने यूक्रेन का ही हिस्सा समझे जाने वाले क्रीमिया द्वीप पर घेरा डाला था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस घेरेबंदी के बीच ही 2014 की शुरुआत में क्रीमिया वालों ने एक जनमत संग्रह के जरिये क्रीमिया से अलग होने का फैसला किया और अगले दिन क्रीमिया के हर नागरिक और सैन्य ठिकाने पर रूस का झंडा लहराने लगा था। उस समय इस कब्जे के विरोध के नाम पर काला सागर (ब्लैक सी) में नाटो के जंगी जहाजों की हमलावर गश्त भर देखने को मिली थी। क्रीमिया पर रूस का कब्जा रोकने के लिए इनकी तरफ से एक भी गोली चलाने की नौबत नहीं आई थी। अभी पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में रूस के कुछेक निर्यातों पर प्रतिबंध जरूर लागू हैं, लेकिन उनका कुल असर इतना ही हो पाया है कि यूक्रेन पर रूस का अगला हमला सिर पर खड़ा है!

एकतरफा सूचना युद्ध

Advertisement. Scroll to continue reading.

पिछले महीने भारत-रूस 2+2 वार्ता के ही आसपास भारत स्थित रूसी दूतावास की ओर से एक लंबा बयान आया था कि यूक्रेन के मामले में रूस की एक भ्रामक छवि भारतीय नागरिकों के सामने प्रस्तुत की जा रही है। कुछ मामलों में उसका यह ऐतराज बिल्कुल वाजिब है। ग्लोबल सूचनाओं के लिए भारतीय मीडिया जिन कथित इंटरनैशनल न्यूज एजेंसियों पर निर्भर करता है, वे अमेरिकी और पश्चिमी यूरोपीय निहित स्वार्थों से बुरी तरह बंधी हुई हैं। रूस जैसा ताकतवर देश अपने छोटे पड़ोसी देशों के साथ धौंस-धमकी वाले रिश्ते बनाए, इसका समर्थन दुनिया का कोई भी न्यायप्रिय व्यक्ति नहीं करेगा, लेकिन यूक्रेन को लेकर मौजूदा तनाव का मामला इतना सीधा नहीं है।

1992 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था और 15 देशों के इस समूह से निकलकर रूस और यूक्रेन भी स्वतंत्र राष्ट्र बने थे, तब अमेरिका और रूस के बीच यह अघोषित सहमति मौजूद थी कि सैन्य संगठन नाटो को रूस की सीमा तक नहीं लाया जाएगा। लेकिन इस घटना को पांच साल भी नहीं बीते थे और पूर्व सोवियत संघ के सभी पश्चिमी सदस्यों- तीनों बाल्टिक देशों लाटविया, लिथुआनिया, एस्तोनिया के अलावा यूक्रेन, बेलारूस, मोल्दोवा और जॉर्जिया को भी नाटो के दायरे में खींचने की कोशिश शुरू हो गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दरअसल, एक मिलिट्री ब्लॉक के पास किसी से शत्रुता करने या किसी संभावित शत्रु को कमजोर करने के अलावा और कोई काम ही नहीं होता। एक दौर में प्रस्ताव आया था कि सोवियत प्रभाव वाले वारसा संधि संगठन के समाप्त होने के साथ ही नाटो का भी बिस्तरा बांध दिया जाना चाहिए। लेकिन उस समय इसे एक धर्म-विरुद्ध प्रस्ताव मानकर खारिज कर दिया गया था। नतीजा यह है कि आज यूक्रेन की गुत्थी हमारे सामने है, और किसी तरह यह शांतिपूर्वक सुलझा भी ली गई तो दो-चार साल में कोई और गुत्थी खड़ी कर दी जाएगी।

मेल्टिंग पॉट

Advertisement. Scroll to continue reading.

यूक्रेन को यूरोप का एक छोटा-मोटा ‘मेल्टिंग पॉट’ माना जाता रहा है। यह घास के मैदानों (स्तेपी) वाला इलाका रहा है और पिछले सात सौ वर्षों में यहां दक्षिण से मंगोलों और तुर्कों का, पश्चिम से पोलैंड और ऑस्ट्रिया का, जबकि पूरब और उत्तर से रूस का प्रभाव बढ़ता-घटता रहा है। ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च और स्लाविक भाषा यूक्रेन को लंबे अर्से से रूसी सभ्यता का जोड़ीदार बनाए हुए है, हालांकि बीसवीं सदी में रूसी प्रभाव से मुक्त होकर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिशें भी यहां जोर मारती रही हैं।

रूस-समर्थक शासक विक्तोर यानुकोविच के खिलाफ तकरीबन चार महीने चली और भारी रक्तपात के साथ समाप्त हुई ‘यूरोमैदान की बगावत’ यहां 2014 में संपन्न हुई। उस समय यानुकोविच को सत्ता से हटा दिए जाने के बाद यूक्रेन को आर्थिक और सामरिक, दोनों रूपों में पश्चिमी खेमे का हिस्सा बना दिए जाने- यानी यूरोपियन यूनियन और नाटो दोनों में शामिल कर लिए जाने का रास्ता साफ मान लिया गया था। लेकिन ठीक इसी बिंदु पर विक्तोर यानुकोविच के आधार-क्षेत्र, रूसी प्रभाव वाले क्रीमिया द्वीप और पूर्वी यूक्रेन के दोनबास इलाके का यूक्रेन से अलग होना भी लगभग तय हो गया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

क्रीमिया के मामले को यहां थोड़ा अलग माना जा सकता है, क्योंकि यह पारंपरिक रूप से यूक्रेन का हिस्सा नहीं रहा। निकिता ख्रुश्चेव सोवियत यूनियन का शीर्ष पद संभालने से पहले सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से क्रीमिया के प्रभारी हुआ करते थे। इस पद पर आने के बाद उनकी पहल पर ही क्रीमिया को वहां की लगभग पूरी की पूरी रूसी आबादी के बावजूद यूक्रेन का हिस्सा बना दिया गया था। लेकिन दोनबास के साथ ऐसा कुछ नहीं है।

उन्नीसवीं सदी में दोनेत्स नदी के बेसिन में कोयले की खदानें मिलने के साथ ही इस अति विरल आबादी वाले इलाके की बसावट बढ़नी शुरू हुई थी और जल्द ही इसकी पहचान रूसियों की चहल-पहल वाले एक औद्योगिक क्षेत्र की बन गई थी। दोनबास दरअसल दोनेत्स रिवर बेसिन का संक्षिप्त रूप है। इसमें यूक्रेन के दो प्रांत- दक्षिण में दोनेत्स्क और उत्तर में लूहान्स्क शामिल हैं। शहरी आबादी ज्यादातर रूसियों की है जबकि गांवों में यूक्रेनी किसानों की बहुतायत है। आपस के नजदीकी रिश्तों की वजह से दोनबास के ज्यादातर लोगों की भाषा पिछले डेढ़-दो सौ वर्षों में रूसी ही होती गई है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हाई टेक बगावत

विक्तोर यानुकोविच के समर्थन और विरोध से शुरू हुई लंबी जातिगत लड़ाई के बावजूद दोनबास के 65 फीसदी लोग कागजों में अपनी भाषा रूसी ही दर्ज करते हैं, हालांकि यहां की कुल आबादी में रूसियों का हिस्सा 37 प्रतिशत से जरा कम ही है। ध्यान रहे, दोनबास इलाके में बगावत पर उतारू रूसियों और उन्हें ठंडा करने में जुटी यूक्रेनी फौजों के बीच की लड़ाई दोनों पक्षों के जनबल के लिहाज से ज्यादा मायने नहीं रखती। एशिया और अफ्रीका में इससे कहीं ज्यादा बड़ी आबादियां लंबे समय तक गृहयुद्धों में लिप्त देखी गई हैं। यूक्रेन की खासियत यह है कि यहां का गृहयुद्ध तकनीक और संसाधनों की दृष्टि से बहुत आगे बढ़ा हुआ है। इनके समर्थन में दुनिया की दो महाशक्तियां हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अकेले अमेरिका ने यूक्रेन सरकार को इस मद में ढाई अरब डॉलर की मदद दी है और 30 करोड़ डॉलर अमेरिकी संसद ने हाल ही में पारित किए हैं। ऐसे में सामान्य तुलना के जरिये इसके खतरों का अंदाजा लगाना हमारे लिए काफी मुश्किल है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन को यूक्रेन के मामले में एक स्थायी खलनायक की तरह पेश करने की कोशिशें पश्चिमी मीडिया की तरफ से लगातार जारी हैं। लेकिन टकराव को टालने का कोई आग्रह उसकी ओर से नहीं दिखाई पड़ रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कुछ दिन पहले अपने एक वक्तव्य में कहा कि छोटे-मोटे टकराव को जरूरत से ज्यादा तवज्जो अमेरिका की तरफ से नहीं दी जाएगी तो माहौल कुछ ऐसा बनाया गया जैसे उन्होंने अमेरिकी हितों को और पूरी दुनिया की नागरिक स्वतंत्रता को पूतिन के हाथों गिरवी रख दिया हो। नतीजा यह कि न सिर्फ खुद बाइडेन बल्कि घरेलू मोर्चे पर बुरी तरह घिरे हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी दिन-रात यूक्रेन को नए-नए हथियार पहुंचाने और पूतिन को किसी मुगालते में न रहने देने जैसे गीत गा रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खलनायक दोनों ओर

भारत इस मामले में मौन है, जो कि ठीक ही है। हमारी तरफ से शांति की अपील की जा सकती है और ज्यादा से ज्यादा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस आशय की एक हाई प्रोफाइल बैठक का आग्रह किया जा सकता है। एक बात तय है कि पूतिन आसानी से पश्चिम की धमकियों में आने वाले राजनेता नहीं हैं। जरूरत पड़ने पर वे बड़े हथियारों के इस्तेमाल में भी कोताही नहीं बरतते। खाड़ी क्षेत्र में आईएसआईएस के खिलाफ हवाई हमलों की शुरुआत उन्होंने न की होती तो अमेरिका की मेहरबानी से आज शायद इराक और सीरिया पर उसका कब्जा होता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक महाशक्ति का पड़ोसी होना यूक्रेन के लिए परेशानी का सबब है और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वाभिमान के साथ जीना उसका अधिकार है। लेकिन उसके स्वाभिमान का रास्ता अनिवार्य रूप से एक विरोधी सैनिक खेमेबंदी से होकर जाए, इसे विश्व राजनय की विफलता ही माना जाना चाहिए। यूक्रेन के रूसीभाषी नागरिक सीमित स्वायत्तता का उपभोग करें और रूस भी बात-बात पर हथियार भांजने के बजाय एक अच्छा पड़ोसी बनकर उसके साथ रहे, इसके लिए सारे उपाय किए जाने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र का गठन ऐसे उपायों के लिए ही किया गया था, लेकिन दुनिया का चौधरी बनने के लिए मरे जा रहे ताकतवर मुल्कों ने उसके लिए कुछ करने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement