राकेश कायस्थ-
भारतीय राजनीति पप्पू बनाम पप्पा शैली के विमर्श को पीछे छोड़ने को तैयार है। वॉशिंगटन में लगभग एक घंटे की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी एक बहुत बड़ी लकीर खींच चुके हैं।

एक स्टेट्समैन को वैश्विक मीडिया के प्रश्नों के उत्तर किस तरह देने चाहिए ये समझने के लिए हर किसी को राहुल की प्रेस कांफ्रेंस ज़रूर देखनी चाहिए। वे ना तो अमेरिका बैठकर भारतीय मतदाताओं को संबोधित कर रहे थे और ना ही पश्चिम पर अपनी समझ का रौब झाड़ रहे थे। बस सवालों का जवाब दे रहे थे।
किसी भी राजनेता का आकलन इसी आधार पर होना चाहिए कि क्या वो मुश्किल सवालों का जवाब देता है अथवा सिर्फ प्रवचन देता है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के साथ कूटनीतिक संबंधों को लेकर पूछे गये सवाल पर उन्होंने कहा कि इस मामले में मेरा उत्तर वही होगा जो भारतीय जनता पार्टी का होगा।
प्रेस कांफ्रेंस में कोई भी ऐसा सवाल नहीं पूछा गया जो आम लोगों के मन में ना हो। खास बात ये है कि राहुल इस वार्ता के दौरान सिर्फ अपनी पार्टी नहीं बल्कि समूचे विपक्ष या फिर लोकतांत्रिक भारत का प्रतिनिधित्व करते देखे गये।
इस प्रेस कांफ्रेंस से सबसे ज्यादा निराशा गोदी मीडिया और आईटी सेल को होगी। कोई एक वाक्य काटकर वायरल करवाने और हेडलाइन बनाने की संभावनाएं नगण्य हैं। मेरे के लिए जो सबसे बड़ी हेडलाइन है वो ये है कि एक लाइन में ही सही लेकिन राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय का जिक्र एक बार फिर किया और यही कांग्रेस की राजनीति में पिछले चार-पांच दशक का सबसे बड़ा बदलाव है।