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राजदीप हाथापाई प्रकरण को पत्रकारिता या फ्री स्पीच पर संकट मानते हैं तो आप इसकी आड़ में गिरोहबाजी कर रहे हैं

Abhishek Parashar: राजदीप सरदेसाई ने गाली दी और जब पलट कर गाली मिली तो उन्होंने धक्का मुक्की की शुरुआत की. प्रेस क्लब में भी सरदेसाई के साथ पत्रकारों ने धक्का मुक्की की थी तब राजदीप या सागरिका, मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा, पर इन दोनों में किसी एक ने कहा था कि पत्रकारों में ‘हैव्स’ और ‘हैव्स नॉट’ की एक जमात है और ‘हैव्स नॉट’ ही उन्हें टारगेट करते हैं. सरदेसाई दंपति ने इस मामले को बेहद शातिराना तरीके से एक गलत मोड़ दे दिया था. अमेरिका में जिसने भी राजदीप को पलट कर गाली दी वह ‘हैव्स नॉट’ की श्रेणी में तो कतई नहीं आता है. तो मैडम सागरिका या राजदीप सरदेसाई या फिर उनके समर्थकों को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि थप्पड़ मारने वाला या आलोचना करने वाले हमेशा ‘हैव्स नॉट’ नहीं होता है.

<p>Abhishek Parashar: राजदीप सरदेसाई ने गाली दी और जब पलट कर गाली मिली तो उन्होंने धक्का मुक्की की शुरुआत की. प्रेस क्लब में भी सरदेसाई के साथ पत्रकारों ने धक्का मुक्की की थी तब राजदीप या सागरिका, मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा, पर इन दोनों में किसी एक ने कहा था कि पत्रकारों में 'हैव्स' और 'हैव्स नॉट' की एक जमात है और 'हैव्स नॉट' ही उन्हें टारगेट करते हैं. सरदेसाई दंपति ने इस मामले को बेहद शातिराना तरीके से एक गलत मोड़ दे दिया था. अमेरिका में जिसने भी राजदीप को पलट कर गाली दी वह 'हैव्स नॉट' की श्रेणी में तो कतई नहीं आता है. तो मैडम सागरिका या राजदीप सरदेसाई या फिर उनके समर्थकों को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि थप्पड़ मारने वाला या आलोचना करने वाले हमेशा 'हैव्स नॉट' नहीं होता है.</p>

Abhishek Parashar: राजदीप सरदेसाई ने गाली दी और जब पलट कर गाली मिली तो उन्होंने धक्का मुक्की की शुरुआत की. प्रेस क्लब में भी सरदेसाई के साथ पत्रकारों ने धक्का मुक्की की थी तब राजदीप या सागरिका, मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा, पर इन दोनों में किसी एक ने कहा था कि पत्रकारों में ‘हैव्स’ और ‘हैव्स नॉट’ की एक जमात है और ‘हैव्स नॉट’ ही उन्हें टारगेट करते हैं. सरदेसाई दंपति ने इस मामले को बेहद शातिराना तरीके से एक गलत मोड़ दे दिया था. अमेरिका में जिसने भी राजदीप को पलट कर गाली दी वह ‘हैव्स नॉट’ की श्रेणी में तो कतई नहीं आता है. तो मैडम सागरिका या राजदीप सरदेसाई या फिर उनके समर्थकों को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि थप्पड़ मारने वाला या आलोचना करने वाले हमेशा ‘हैव्स नॉट’ नहीं होता है.

अगर आपको लगता है कि राजदीप के साथ हुई बदतमीजी से पत्रकारिता या फ्री स्पीच पर संकट आ गया है तो आप इसकी आड़ में गिरोहबाजी कर रहे हैं. यह बात साफ साफ समझ लेने की जरूरत है कि मोदी को अमेरिका में जो लोग भी सुनने गए थे वह न तो भारत की तरह ट्रक या टेंपो में भेड़ बकरी की तरह ठूंस कर लाए गए लोग थे और नहीं वह बीजेपी के कैडर थे. मोदी विदेशों में रहने वाले भारतीयों में क्यों पॉपुलर है इसका अंदाजा आपको लगाने के लिए आपको बाहर जाना होगा और अगर इसके लिए फिलहाल पैसे नहीं हैं तो फिर वहां जो रह रहे हैं उनसे उनके भारतीय होने के मायने मतलब समझने होंगे. फिर आपको पता चलेगा कि मनमोहन बनाम मोदी का फर्क उनकी पहचान को कैसे पुख्ता करता है. बहरहाल मामला राजदीप का था तो यह उतनी बड़ी बात नहीं है जिसको लेकर इतना स्यापा किया जाए. यह सब होता रहता है. अगर किसी को राजदीप को पीटना होता तो उसके लिए अमेरिका जाने तक का इंतजार नहीं करना होता. चूंकि आपके पास टाइम है और गिरोहबाजी की आदत है तो आप पत्रकारिता की स्वतंत्रता बनाम फासीवाद का छद्म डिबेट शुरू करेंगे. जिस दिन आईबीएन से छंटनी हुई थी उस दिन आपको फ्री स्पीच पर कोई संकट नहीं दिखा था. छंटनी से तो सारे फंडामेंटल्स मजबूत हुए थे न उस दिन ? और वहीं फंडामेंटल्स आज आपको बिखरते नजर आ रहे हैं. दोगली बात करते हैं आप. सरदेसाई को पत्रकारिता या फ्री स्पीच का पर्याय बनाने की शातिराना हरकत मत कीजिए.

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पत्रकार अभिषेक पराशर के फेसबुक वॉल से.

Awadhesh Kumar : राजदीप का व्यवहार गुंडों जैसा… राजदीप सरदेसाई ने जो किया वह किसी भी पत्रकार के लिए शर्म का विषय है। किसी भी परिस्थिति में पत्रकार उतनी गंदी गालियां दें, मारपीट पर उतारु हो जाए यह स्वीकार्य नहीं हो सकता। एसहोल का शाब्दिक अर्थ ऐसा है जिसे लिखना तक मुश्किल हो रहा है। मलद्वार के छिद्र के भाग को ऐसहोल मान लिया जाए तो कह रहे थे कि तुम्हारे गांड के छेद पर मारुंगा। मैं जीवन में पहली बार यह शब्द लिख रहा हूं। लिखते हुए शर्मींदगी हो रही है। जीवन में कभी बोला भी नहीं। उसके बाद उन्होने जो कहा उसका अर्थ यही था कि तुमने धन कमा लिये लेकिन रहे गंवार के गंवार। फिर गुस्से में धकेलना….। ये तो गुंडागर्दी सदृश कार्य है। पत्रकारिता कर्म में हमने न जाने कितनी बार लोगों के गुस्से झेले हैं, गालियां सुनी हैं, विरोध का सामना किया है। पर कभी आपा नहीं खोया।

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कई बार लोगों को शालीन तरीके से हैण्डल करना पड़ता है। रैलियों में ऐसा होता है, पर हम कभी ऐसा नहीं करते। नरेन्द्र मोदी को लेकर उत्साहित समूह कई बार ज्यादा विरोध और अभद्र हरकत कर बैठता है, पर उससे निपटने का तरीका ये नहीं है। हंसते हुए बात करंे तो उनका सहयोग भी मिलता है। वहां तो केवल उनके कुछ प्रश्न पर मोदी समर्थकों ने आपत्ति उठाई थी कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो? जब वे न माने तो मोदी मोदी का नारा लगने लगा। उस समय बचने की आवश्यकता थी। कोई जरुरी था कि आप 2002 के दंगे, वीजा का मामला, कोर्ट का सम्मन, वहां होने वाले एनजीओ के तथाकथित विरोध पर वहीं प्रश्न पूछे हीं? अमेरिका की धरती पर वहां के किसी प्रवासी भारतीय को गांड पर मारने की बात करते हैं और दूसरे को सभ्य नहीं होने की का प्रमाण पत्र देते हैं। असभ्य तो आप है। आखिर इससे बड़ी असभ्यता क्या हो सकती है? यह गुंडागर्दी ही कहा जाएगा। क्षमा करना दोस्तों मुझे स्पष्ट करने के लिए एक अश्लील शब्द प्रयोग करना पड़ा जो न मैं करता हूं न किसी को अपने वाल पर अनुमति देता हूं।

पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. rajkumar

    September 30, 2014 at 5:22 am

    THANKS ABHISEKH V AWADHES JI AAP LOGO NE IN KOMREDO V CONGRESS KE DALALO KO AAINA DIKHAYA, YASWANT BHAI NE BHI BAD ME APNI GALTI MANTE HUE APNI BAT VAPIS LI, RAJDEEP PATRKAR NAHI JUGADU V CORPARATE COMPANYO KA DALAL H ISKI PATRKARITA PAHLE BHI SANDIGHDH THI, VOT FOR MONEY KE MAMLE ME BHI ISKI BHUMIKA SANDIGADH THI

  2. Arif M

    October 2, 2014 at 4:26 am

    people should think as a human and without the glass/chashma of their political thinking.Firstly without proper analysis and thinking they branded Rajdeep innocent , then when more detailed videos came they accepted their mistake and concluded that Rajdeep himself started bad behaviour like abusing ,pushing and attacking. Shame on Fake communists and wahabist like Mohamad Anas and Nadeem Akhtar

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