Virendra Yadav : दिल्ली जाने पर खान मार्किट के बुकसेलर्स ‘बाहरीसंस’ में भरसक जाने की कोशिश करता हूँ. कारण एक पंथ दो काज हो जाता है ,नीचे किताब ऊपर फैब इंडिया का कुर्ता. परसों शाम वहां जाकर किताबें देख ही रहा था कि सामने राजदीप सरदेसाई दीख गए .एक व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए उनसे बातचीत शुरू ही की थी कि उन्होंने कहा कि ‘मेरी किताब आपने पढी की नहीं ?’ और किताब उठाकर उसे थमाते हुए कहा कि ‘पढ़िए जरूर’.
फिर अगले आधे घंटे में जो भी उनसे मुखातिब हुआ हर एक को उन्होंने किताब खरीदने के लिए प्रेरित किया और किताब पर अपने हस्ताक्षर करने के लिए बेचैन दिखे .इस तरह तीन -चार ग्राहक तो उन्हें मिल ही गए …..बाद में दुकान के ही एक कारकून ने बताया कि राजदीप हर तीसरे-चौथे दिन वहां आकर इसी तरह अपनी किताब प्रमोट करते है. …जब स्टार पर्सनालिटी अपनी मार्केटिंग इस तरह करते हों तो बेचारा हिन्दी का लेखक यदि कुछ आत्मविज्ञापन कर ही लेता है तो क्या गलत करता है !
हिंदी साहित्यकार, आलोचक और चिंतक वीरेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से.