सुभनीत कौशिक-
श्रद्धांजलि : नहीं रहे सबाल्टर्न इतिहासकार रंजीत गुहा…. सबाल्टर्न कलेक्टिव के संस्थापक प्रसिद्ध इतिहासकार रंजीत गुहा (1923-2023) का निधन हो गया। अस्सी के दशक में रंजीत गुहा द्वारा सम्पादित ‘सबाल्टर्न स्टडीज़’ ने भारतीय इतिहासलेखन को अभूतपूर्व ढंग से बदला। वे इतिहासलेखन की एक नई प्रविधि, एक नई इतिहासदृष्टि लेकर आए और उन्होंने अतीत को देखने-समझने के हमारे नज़रिए को हमेशा के लिए बदल दिया। रंजीत गुहा ने हाशिए की आवाज़ों को इतिहास में जगह दी, रोज़मर्रा के जीवन में होने वाले प्रतिरोधों के ऐतिहासिक महत्त्व को समझाया। उन्होंने इतिहास को राजा, वाइसराय या बड़े राष्ट्रीय नेताओं की जगह आम लोगों के जीवन और उनके अतीत का आख्यान बनाया।
उनका लेखन जितना अंतर्दृष्टिपूर्ण और विचारोत्तेजक है, उतना ही सम्मोहक भी, अपने पाठकों को बाँधकर रखने वाला। भूमि बंदोबस्तों के पीछे काम करने वाली वैचारिकी हो, या फिर किसानों के प्रतिरोध के विभिन्न पहलू हों, आंदोलनों में अफ़वाहों की भूमिका और उनके पीछे काम करने वाली मनोवृत्ति हो या फिर वर्चस्व और प्रभुत्त्व (हेजेमनी) की जंग हो – इन तमाम विषयों पर रंजीत गुहा ने बहुत बारीकी से लिखा।
‘ए रूल ऑफ़ प्रॉपर्टी फ़ॉर बंगाल’, ‘एलिमेंटरी आसपेक्ट्स ऑफ़ पीजेंट इन्सर्जेंसी’ और ‘द स्माल वाइस ऑफ़ हिस्ट्री’ जैसी उनकी तमाम कृतियाँ, उनके लेख पाठकों को भारतीय इतिहास के बारे में नए सिरे-से सोचने के औज़ार देते हैं और आगे भी देते रहेंगे। उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए स्रोतों की विविधता और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को पढ़ने और उनके विश्लेषण की उनकी पद्धति ने भी इतिहासकारों को नई राह दिखाने का काम किया। उन्होंने सौ साल लम्बा और सार्थक जीवन जिया। निश्चय ही उनका निधन भारतीय इतिहासलेखन के एक युग का अवसान है। मगर उनकी कृतियाँ, उनके विचार और सबाल्टर्न इतिहास के रूप में की गई उनकी पहल उन्हें आनी वाली पीढ़ियों का प्रेरणास्रोत बनाए रखेगी।
इतिहास की परिधि पर रख दिए गए हाशिए के समुदायों को इतिहास में उनका स्थान दिलाने वाले सबाल्टर्न इतिहासकार रंजीत गुहा को सलाम!
दिलीप मंडल-
One of the most prominent historians of our era, Ranajit Guha, has passed away.
As the founder of the Subaltern Studies, he spearheaded a tradition of doing subaltern studies in South Asia, without considering caste and anti-caste struggles.
It’s worth noting that the Subaltern Studies gate-kept the field, shutting the doors for SC/ST/OBC academicians who wished to contribute to subaltern studies in universities in the Western world.
As a result, historical accounts produced by the group may not include figures such as Phule, Savitri, Sahu, Ambedkar, Mangu Ram, Acchutananda, Ayannakali, Narayana Guru, Jogendra Nath Mandal, Justice Party, Periyar, and others, as these historians were mostly based in the Western academia and excluded all historians born in subaltern communities.
Unlike some Gramscian scholars who emphasized the importance of studying subaltern history, Guha’s approach focused on the cultural and ideological aspects of subalternity.
Guha was a great historian. Rest in peace.