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समझ नहीं आता इतनी शिद्दत और मेहनत से रवीश कुमार किसे समझा रहे हैं!

कनुप्रिया-

बेचारे रवीश कुमार पिछले 8 साल से पूरे इमोशन्स और चिंता अपने कार्यक्रम में डाल कर, गला फाड़ फाड़ कर हलकान हो रहे हैं. जितने इमोशन्स और वॉइस वेरिएशन्स से बोलते हैं उससे पता चलता है कि जो बोल रहे हैं उसके पीछे महज रिसर्च और प्रोफेशनल पाबंदी नही है , उनकी चिंता और सरोकार भी है.

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उनकी पोस्ट्स और कार्यक्रम में वो उदासीनता दर्शाते हैं मगर उदासीन हुए नहीं हैं. समझ नही आता इतनी शिद्दत और मेहनत से किसे समझा रहे हैं, यहाँ तो माँ बाप तक सोचते हैं कि सन्तानें बातों की नही लातों की भूत होती हैं, इसलिये इस देश के लोगों को बातों से कुछ समझ आने का अभ्यास ही नही है.

1000 रुपये का सिलेंडर खरीदेंगे, 100 रुपये का पैट्रोल पी लेंगे, अपनी एक आँख तक फुड़वा लेंगे (बशर्ते मुसलमान की 2 फूटती हों) मगर समझेंगे नहीं कि उन्हें किस हद तक मूर्ख बनाया जा रहा है. दुनिया भर में जनता के एक वर्ग को दूसरे वर्ग के ख़िलाफ़ खड़ा करके, एक दूसरे पर ठीकरा फोड़कर इसी तरह जनता की दुर्दशा की जिम्मेदारी से सरकारी नीतियों को बरी किया जा रहा है, आख़िर सब कुछ लुटा कर ही होश में क्यों आना चाहते हैं हम.

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साधुवाद है उन फेसबुक मित्रो को भी जो आज भी चिंता और सरोकार से लिखे जा रहे हैं. मगर शर्त लगा लीजिये श्री लंका जैसे हालात होने से पहले लोगों के समझ आ जाए तो मेरा अपने देश के लोगों की बुद्धि (?) पर से भरोसा ही उठ जाएगा.

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