Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

दलाल पत्तलकार ऐसे मुद्दों पर बात नहीं करते!

सौमित्र रॉय-

नरेंद्र मोदी एक फ्लॉप शो है। फिर भी भारत की अवाम दूसरी बार वही फ़िल्म देख रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मोदी ने पहले शो में बजाय स्वास्थ्य ढांचा सुधारने के, ग़रीबों को आयुष्मान भारत (पीएमजेएवाय) का कार्ड थमा दिया।

फिर स्वास्थ्य बीमा कंपनियों और निजी अस्पतालों को लूटने के लिए खुला छोड़ दिया, क्योंकि चुनाव जीतने के लिए पार्टी फण्ड में कालाधन जमा करना था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नतीजा कोविड की दूसरी लहर में दिखाई पड़ा। आयुष्मान भारत कार्ड वाले 50 करोड़ ग़रीबों में से इलाज़ करवाने वाले 24 लाख भी नहीं निकले।

कल वित्त मंत्री ने हेल्थ केयर सेक्टर के लिए 50 हजार करोड़ की घोषणा इस अंदाज में की, जैसे पैसा उनके खीसे से निकल रहा हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मोदी का सारा ज़ोर तृतीयक क्षेत्र के स्वास्थ्य ढांचे पर है, क्योंकि यहीं सबसे ज़्यादा लूट है।

नीचे RTI में मोदी सरकार खुद इस सच को मान रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक और RTI में यही सरकार बेशर्मी से यह भी मान रही है कि उसके पास अभी भी 30 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए टीका नहीं है।

दलाल पत्तलकार ऐसे मुद्दों पर बात नहीं करते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ममता मल्हार-

ऐसी खबरें देखकर, पढ़कर आपके दिमाग में कभी ये विचार नहीं आता कि इस देश का आम आदमी या जनता एक पूरे कॉकस के बीच घिर चुकी है। जो सिर्फ आपकी जेब से पैसा निकालना चाहता है चाहे कैसे भी। जब वे कोरोना मरीज अस्पताल पहुंचे जिनके हेल्थ इंश्योरेंस थे तो उनसे निजी अस्पतालों ने पैसे एडवांस डिपॉजिट करवाये हैं, कहा क्लेम आप लेते रहना।

पिछले एक-डेढ़ दशक में हेल्थ बीमा की योजनाएं सब्जी भाजी के भाव के प्रीमियम वाली तक आई हैं। अब ये पूरी खबर जो कह रही है उससे लग रहा है कि मरीजों को डॉक्टर से पहले अपनी बीमा कम्पनियों से पूछ लेना था कि साहब जी हमारे लिये कौन सा इलाज मुफीद रहेगा? अस्पताल जाने लायक हूँ क्या मैं? या फिर ये दवाइयां इंजेक्शन ले सकता हूँ कि नहीं? भेड़चाल को बदलने की तरफ कदम बढ़ाइए।

पहले भी कह चुकी हूं फिर पूछ रही हूं कि ये जितने इंश्योरेंस प्लान होते हैं ये सिर्फ निजी अस्पतालों के लिये ही डिजाइन क्यों किये जाते हैं? सरकार खुद सरकारी अस्पतालों में वो सब क्यों नहीं मुहैया करा सकती जो निजी अस्पतालों में होता है? हकीकतें सब जानते हैं कि एक दो अस्पतालों को छोड़कर बाकी में क्या मारकाट मची हुई है, मगर फिर भी। देख लो अपना-अपना आने वाली नस्लें सवाल पूछेंगी तो क्या कहोगे? भास्कर अच्छी पत्रकारिता कर रहा है मार्च से ही। हम भी बीच-बीच में अपना धर्म निभा ही देते हैं। बाकी तो पत्रकार होते ही हैं दलाल बिकाऊ चोर। और हां बहुत से पत्रकारों के घरों के आटे के डब्बे कनस्तर बज रहे हैं बस आवाज बाहर नहीं आ रही। आपने सुनी क्या?

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement