संजय कुमार सिंह-
कैसी सुरक्षा व्यवस्था, कैसा प्रोटोकोल और क्या सामान्य समझ
सुधा मूर्ति को पद्मभूषण से सम्मानित किए जाने के मौके पर 5 अप्रैल 2023 को ऋषि सुनक की पत्नी और सुधा मूर्ति की बेटी अक्षता का मौजूद होना और भारतीय अधिकारियों को इसकी भनक नहीं लगना – सरकार के काम काज के तरीके और सतर्कता पर एक गहरा धब्बा है। राष्ट्रपति भवन में आने वाले मेहमानों के बारे में अनुमान न होना सुरक्षा की दृष्टि से भी चूक है। भारत सरकार जब आम लोगों को विदेश जाने से रोक लेती है या जाने की अनुमति नहीं देती है तब भारत में कौन मौजूद है और वह दिल्ली आ रहा है, राष्ट्रपति भवन आ सकता है इसका पूर्वानुमान तो छोड़िये, आकर लोगों के बीच बैठ जाने के बाद भी संबंधित लोगों को (अगर कोई ऐसे कामों से संबंधित है) खबर नहीं होना – भयंकर लापरवाही है और देश अगर विदेश में बदनाम होता है तो इससे ज्यादा और किससे होगा।
पहली बार खबर पढ़कर यकीन नहीं हुआ क्योंकि इस चूक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। आज चेक किया तो कंफर्म हुआ। सबको पता है कि ऋषि सुनक सुधा मूर्ति और नारायण मूर्ति के दामाद हैं। ऐसे में जब सुधा मूर्ति को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया तभी समझ जाना चाहिए था कि उनके बच्चे भी आ सकते हैं और जब बेटी ब्रिटेन के प्रथम नागरिक की पत्नी है तो उसके लिए प्रोटोकल की कुछ आवश्यकता होगी – यह तो पहले से ही तय था।
भारतीय संस्कृति और परिवार के लिहाज से किसी पद्म विजेता के बच्चे के लिए ऐसे मौके पर आना बहुत सामान्य और तकरीबन आवश्यकत है – वह खुद चाहे जितनी बड़ी हस्ती हो। ऐसे में बेटी आ सकती है, आना चाहिए और बुलाया भी जाना चाहिए था। पर यह सब कुछ नहीं करके ना नजर रखा गया ना पूछा गया – यह परले दर्जे की नालायकी नहीं तो क्या है। कोई मां-बाप के पास आने के लिए ढिंढोरा तो नहीं ही पीटेगा। भारतीय संस्कृति का ढोल पीटने वालों को ये समझना चाहिए था कि प्रोटोकोल लाख कहता हो, जो आएगा वो नहीं बताएगा। ये उसकी भलमनसाहत नहीं भारतीयता है, संस्कृति है और भारतीय संस्कृति यह थी कि सुधा मूर्ति से पूछा जाता (दूसरी कोई ऐसी हस्ती हो तो उससे भी) कि आपके साथ कौन आएगा, या उनके आने रहने की विशेष व्यवस्था अगर हो सकती थी तो की जानी चाहिए थी। उल्लेखनीय है कि नारायण मूर्ति को भी 2008 में पद्मभूषण मिला था।