-नवेद शिकोह-
सरदेसाई सर आप पत्रकारिता के शेषमणि हो, शेष पत्रकार तो मदारी की बीन पर नाचते हैं
आजतक ने रिया का पक्ष दिखाकर लंगड़ी पत्रकारिता को बैसाखी दे दी तो हंगामा क्यों!
कोरोना और बेरोजगारी जैसी भयावह स्थितियों को ताक़ में रखकर सिर्फ और सिर्फ अभिनेता सुशांत मामले को दिखाने वाली टीवी मीडिया पर सब करीब एक महीना खामोश रहे। अब जब पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने एक तरफा खबरों को संतुलित करते हुए मीडिया ट्रायल का शिकार अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती का इंटरव्यू दिखाया तो असंतुलित/एकतरफा खबरें देखने/दिखाने वालों को मिर्चे लग गईं। कुछ वैचारिक विकलांग सरदेसाई को ट्रोल करते हुए कह रहे हैं कि कोरोना की परेशानियों में रिया का इंटरव्यू नहीं दिखाना चाहिए था।
दरअसल पत्रकारिता भी समाज का आईना है। जब समाज की सोच असंतुलित होने लगती है तो सिद्धांतों के परे व्यवसायिकता की हवस वाली पत्रकारिता भी असंतुलित हो जाती है।
जब-जब लंगडी सोच और फिक्र हॉवी हुई तब लंगड़ी रफ्तार के कारण देश हर मोर्चे पर पिछड़ने लगा। इस बात का अहसास मीडिया को तो होना ही चाहिए है। व्यवसायिक और टीआपी की मजबूरियों को खर्चीली मीडिया नजरअंदाज नहीं कर सकती, लेकिन पत्रकारिता के मूल्यों-सिद्धांतों का जरा तो ख्याल रखना ही होगा। किसी भी न्यूज स्टोरी में हर पक्ष का पक्ष दिखाना ज़रूरी है। इसे संतुलन कहते है। और खबरों के चयन में भी संतुलन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सुशांत मामले में असंतुलित यानी लंगड़ी पत्रकारिता के दो दोष दिखाई दिये। पहला ये कि खबरों के चयन में आम जन से जुड़ी खबरों को छोड़कर महीनों तक सुशांत मामले की खबरों को दिखाने की पराकाष्ठा कर दी। दूसरा दोष ये कि ये खबरें एकतरफा एक धारा में बहती रहीं।
पत्रकारिता का नाम संतुलन है। असंतुलित सोच पत्रकारिता को भी असंतुलित बना देती है। दिमाग़ से लंगड़े-लूलों का दौर चल रहा है। समाज भी अपाहिज, पत्रकारिता भी विकृत और पत्रकार भी एक तरफा। कोई जहरीले सर्प की तरह जहर उगलने का काम कर रहा है। कोई केचल बदल रहा है तो कोई मदारी की बीन पर नाच रहा है। लेकिन पत्रकारिता के इस सांप घर में राजदीप सरदेसाई शेषमणि हैं।
सुशांत की मौत को टीआरपी का तमाशा बनाने वाले टीवी चैनलों ने अति कर दी। कोरोना, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं की बद्तर स्थिति, आम जनता के दुख-दर्द को ताक पर रख दिया। सिर्फ और सिर्फ लगभग एक महीने से सुशांत प्रकरण से जुड़ी खबरों की पराकाष्ठा पर किसी ने एतराज नहीं किया। एक टीवी पत्रकार ने मीडिया ट्रायल की एकतरफा खबरों को संतुलित करने की कोशिश करके दम तोड़ती भारतीय टीवी पत्रकारिता की लाज रख ली। आजतक चैनल पर पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने मीडिया ट्रायल के दबाव में घिरी अभिनेत्री रिया का इंटरव्यू कर सुशांत प्रकरण पर चल रही खबरों को संतुलित करने का काम किया है।
जरूरत अब इस बात की है कि जिस तरह राजदीप सरदेसाई ने इस मामले में पत्रकारिका का संतुलित चेहरा दिखाया वैसे ही महिला आयोग भी अपना फर्ज निभाये। आरोप साबित हुए बिना रिया को बार-बार कटघरे में खड़ा करके मीडिया ट्रायल की जंजीरों में क्यों जकड़े है। ऐसे-ऐसे शब्दों और आरोपों की मार खाते-खाते मानसिक दबाव में ये महिला आत्महत्या कर ले तो कौन जिम्मेदार होगा! महिला आयोग को इन सवालों के साथ सामने आना चाहिए है।
- नवेद शिकोह
Madan Gopal Sharma
August 28, 2020 at 1:17 pm
बहुत शानदार पत्रकारिता का धर्म यही है दोनों पक्षों को सुना जा जो आज तक ने किया है