समीरात्मज मिश्रा-
ग़ज़ब है….. अब अपराध भी राज्यों के हिसाब से तय हो रहे हैं। एक मामले में एक राज्य की पुलिस किसी को गिरफ़्तार करने आती है तो दूसरे राज्य की पुलिस उसे ऐसी सुरक्षा देती है कि कहीं वह ‘निर्दोष’ व्यक्ति सच में न गिरफ़्तार कर लिया जाए।
पर, यदि यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ती गई तो इसका भविष्य क्या होगा, इस पर सोचने की ज़रूरत है।
रंगनाथ सिंह- ये मंजर तो कई बार दोहराया जा चुका है। पंजाब में जो हुआ वह अलबेला मामला लगा। पंजाब विधानसभा में आरोप लगा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा मुख्तार अंसारी को फर्जी मुकदमा दर्ज करके जेल में पत्नी के साथ वीआईपी सुविधा देकर रखा गया। माफियाओं को जेल में मिलने वाली सुविधाओं की कई कहानियाँ पढ़ी थीं, पुराने मामलों में जेल जाकर जान बचाने के मामले भी सुने थे लेकिन फर्जी मामले बनाकर ऐसी सेवा का मामला मेरी जानकारी में पहला है।
समीरात्मज मिश्रा- जी हाँ….. बंगाल में भी हुआ। कहने का यही तात्पर्य है कि राज्यों की पुलिस यदि सेनाओं की तरह काम करने लगेंगी तो स्थिति कितनी ख़तरनाक हो सकती है।
रमेश कुमार- सिस्टम चलाने वाले जब कॉन्स्टिट्यूशन डेमेक्रेसी के मूलाधार “रूल ऑफ लॉ” को नजरअंदाज करेंगें- तो यही अराजकता उत्पन्न होगी। अब तो यह रोज ब रोज़ का प्रैक्टिस हो गयी….!
स्माइल बसित- अब पोलिस ही अपराध तय करती है और अपराधी बना भी देती है. वो चाहे तो दूध का धुला भी सिद्ध कर देती है. लेकिन मानसिकता आकाओं के कहने पर फल फूल रही है. अब पोलिस को अदालत के लिए बाद में सोचना पड़ता है.