Rangnath Singh-
सागरिका जी के बयान से दुख तो हुआ लेकिन हैरानी नहीं हुई। सागरिका जी ने आवेश में आकर वही कह दिया है जिसमें वो यकीन करती हैं। सागरिका जी क्या कहेंगी, उनके हमजोली इंग्लिश इलीट की कृपा के आकाँक्षी बहुत से हिन्दी वाले भी इसी गर्दभ राग में रेंकते हुए मिल जाते हैं।
17 साल के अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि राष्ट्रीय राजधानी के इंटेलिजेंशिया में हिन्दी बैशिंग एक करेंसी है। राजधानी के प्रभु वर्ग को खुश करने के लिए हिन्दी वालों को भी हिन्दी बैशिंग करनी पड़ती है ताकि करियर बेहतर होता रहे।
अपनी स्थापना से लेकर आजतक ‘आज तक’ ने अपनी किसी कॉपी में यदि सिगरेट को धूम्रपान दण्डिका लिखा-कहा होगा तो मैं पाँच रुपये हार जाऊँगा। अगर ‘आज तक’ वाले गाँव-गिराँव की किसी सिगरेट की दुकान पर भी सिगरेट की जगह दण्डिका लिखा दिखा दें तो पाँच रुपये और हार जाऊँगा। ‘आज तक’ के बजाय हिन्दी के नम्बर दो-तीन-चार-पाँच संस्थानों में ही यह लिखा दिखा दें तो पाँच रुपये और हार जाऊँगा।
एक बार हमारे साथ काम करने वाली टीम भी कैमरा लेकर सड़क पर निकल पड़ी थी कि आज पता करके रहेंगे कि सिगरेट इत्यादि को हिन्दी में क्या कहते हैं! जाहिर है कि वो कुछ ‘फनी’ करना चाहते थे। वर्तमान हिन्दी मीडिया में एंट्री करने के कुछ साल बाद ही आपको यह महीन तरीके से समझा दिया जाता है कि हिन्दी का मजाक उड़ाना बख्शीश दिलाता है।
क्या किसी ने सोचा है कि देश का इतना बड़ा अंग्रेजी मीडिया है, उसने आज तक ऐसा जनसर्वेक्षण क्यों नहीं कराया है कि बीड़ी को अंग्रेजी में क्या कहते हैं? वहाँ यह नहीं पूछा जाएगा क्योंकि हिन्दी एकमात्र भाषा जिसके मीडिया में उसका मजाक उड़ाने पर बरकत होती है।
इसीलिए लिखा था कि सागरिका जी के हिन्दी बैशिंग वाले ट्वीट पर हैरत नहीं हुई थी। सागरिका जी ने इंदिरा और अटल पर किताब लिखी है। दोनों हिन्दी पट्टी से निकले नेता थे। फिर भी सागरिका किसी घटना को आराम से ‘हिन्दी पट्टी सुलभ व्यवहार’ ठहरा सकती हैं और उनके ईकोसिस्टम के डर से उनके आसपास मौजूद हिन्दी वाले ही ही ही करने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकते।
सिगरेट विमर्श पर सबसे मौलिक हस्तक्षेप ये लगा…
जब बहुत से लोग सिगरेट की हिन्दी खोज रहे थे तो किसी का ध्यान इसपर नहीं गया कि सिगरेट को अंग्रेजी में क्या कहते होंगे! सिगरेट तो फ्रेंच है। धन्यवाद जेवियर जी….
कुछ लोग हिन्दी में लिखते हैं कि नुक्ता के हेरफेर से खुदा जुदा हो जाता है। जो आदमी हिन्दी में नुक्ते के हेरफेर से खुदा को जुदा कर देगा उसे मेरी तरफ से 501 रु का इनाम। यह हिन्दी का दुर्भाग्य है कि यहाँ आँख मूँदकर उन मुहावरों का उपयोग किया जाता है जिनका हिन्दी से कोई वास्ता नहीं।