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सुख-दुख

मुश्किलों में घिरे सहारा समूह के लिए दो दिशाओं से आईं राहत भरी दो खबरें

-सुजीत सिंह प्रिंस-

-कोर्ट ने जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस को सहारा की साख पर बट्टा लगाने से रोका

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-नेटफ्लिक्स को अपनी वेब सिरीज में सुब्रत रॉय का नाम बदनाम करने से कोर्ट ने रोका

मुश्किलों से घिरे हुए सहारा समूह के लिए हाल फिलहाल दो खबरें सुकून देने वाली आई हैं। सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय इन दोनों सकारात्मक खबरों से राहत की सांस ले सकते हैं। इंडियन एक्सप्रेस समूह ने सहारा से जुड़ी कुछ खबरों को छापकर देश भर में सहारा के लिए संकट पैदा कर दिया था। सहारा समूह को मजबूरन बड़े बड़े विज्ञापन छपवाकर अपने जमाकर्ताओं और निवेशकों को भरोसा देना पड़ा था। सहारा से जुड़े लोग आरोप लगा रहे हैं कि कुछ बड़ी ताकतों ने अपना हित न सधने के कारण सहारा को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी है।

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सहारा वालों का इशारा नेटफ्लिक्स की तरफ है। बताया जा रहा है कि नेटफ्लिक्स वालों ने एक वेब सीरिज का निर्माण किया है जिसमें सुब्रत राय व सहारा ग्रुप के कारनामों को दिखाया गया है। इस वेब सीरिज के खिलाफ सहारा ने कोर्ट का सहारा लिया और नेटफ्लिक्स को करारा झटका दिया। इसके ठीक बाद इंडियन एक्सप्रेस में सहारा ग्रुप के खिलाफ एक खबर पहले पन्ने पर सनसनीखेज तरीके से छापा गया। सहारा समूह के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि सारा कुछ नेटफ्लिक्स वालों का किया धरा है। वे अपने मुताबिक सहारा को न चला पाए तो कई जगहों पर गठजोड़ कर सहारा की छवि खराब करने में लग गए। पर कोर्ट एक बार फिर सहारा ग्रुप का तगड़ा सहारा बनकर सामने आया। कोर्ट ने सहारा ग्रुप की छवि खऱाब करने वाली खबरों के प्रकाशन पर रोक लगा दी है।

आइए कोर्ट से मिली दोनों खबरों पर विस्तार से बात करते हैं। अपने फायदे के लिए इन दिनों चैनल और अखबार किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। आजादी की अभिव्यक्ति के बहाने अपना हित साधने में लगे चौथे स्तंभ को अदालत ने हद में रहने की हिदायत दी है।

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लखनऊ की एक अदालत ने इंडियन एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड (आईईपीएल), उसके सीईओ, प्रकाशकों और इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता अखबारों के संपादकों और साथ ही उसके रिपोर्टर को सहारा समूह और उसके प्रमुख सुब्रत रॉय के खिलाफ मानहानि संबंधी समाचार प्रकाशित करने से रोक दिया है। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि यह रोक आईईपीएल से जुड़े कर्मचारियों, एजेंटों, नौकरों, सहयोगियों या किसी अन्य व्यक्ति पर भी लागू होगा।

यह आदेश पारित करते हुए मलीहाबाद, लखनऊ के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने कहा कि यह रोक आईईपीएल के अखबारों के साथ-साथ उसके सभी इलेक्ट्रॉनिक, वाणिज्यिक और अन्य वेब पोर्टलों पर भी लागू होगा। अदालत ने इस मामले में उत्तरदाताओं से जवाब तलब करते हुए नोटिस जारी किया है।
सहारा इंडिया द्वारा आईईपीएल और अन्य के खिलाफ दायर किये गये मामले में अदालत ने यह आदेश जारी किया है। सहारा इंडिया की दलील है कि सहारा के सुब्रत रॉय कानून का पालन करने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने 1978 में सहारा इंडिया की स्थापना की। इस कंपनी को उन्होंने अपनी मेहनत से खड़ा किया है। वर्तमान समय में सहारा समूह की विभिन्न कंपनियों में लाखों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं।

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सहारा ने आईईपीएल समूह के इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता अखबार पर यह आरोप लगाया है कि कंपनी के खिलाफ सितंबर 2020 के पहले और दूसरे सप्ताह में झूठी और बेबुनियाद खबरें प्रकाशित की गयी हैं।

सहारा का आरोप है कि इन अखबारों में प्रकाशित खबरें आधारहीन और मनगढ़ंत थी जिनके तथ्यों की जांच भी नहीं की गयी थी। इन बेबुनियाद खबरों से सहारा इंडिया और उसके प्रमुख सुब्रत राय की छवि पर प्रतिकुल असर पड़ा है। गलत समाचारों के कारण उनकी छवि, सद्भावना और व्यापार को काफी नुकसान पहुंचा है।

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सहारा इंडिया द्वारा दायर किये गये मामले में दावा किया गया है कि आईईपीएल समूह के इन अखबारों ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित पत्रकारिता मानदंडों का भी ख्याल नहीं रखा। इन समाचारों के जरिए सुब्रत रॉय के निजी जीवन पर हमला किया गया है और यह प्रेस की नीतियों के खिलाफ है।

इस मामले की सुनवाई के बाद, अदालत ने स्पष्ट किया कि आईईपीएल और अन्य उत्तरदाताओं ने सहारा इंडिया और इसके संस्थापक के खिलाफ आधारहीन और मानहानि संबंधी समाचार प्रकाशित किए। अदालत ने यह भी पाया कि ये समाचार मानहानि सिद्धांत के किसी अपवाद में नहीं आए। अपने आदेश में, अदालत ने कहा: वादी और उसके साथ दायर हलफनामे के इनकार के बाद, यह स्पष्ट है कि आईईपीएल और अन्य उत्तरदाताओं ने सहारा समूह की कंपनियों के खिलाफ मानहानि की खबरें प्रकाशित की हैं, जिससे उनकी छवि और व्यापार प्रभावित हो रही है। इसलिए उत्तरदाताओं को अगली तारीख तक अस्थायी निषेधाज्ञा से ऐसा करने से रोका जाता है।

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दूसरी तरफ, नेट फ्लिक्स की मुश्किलें भी बढ़ गयी हैं। पटना हाई कोर्ट ने बैड बॉय बिलियनेयर्स की रिलीज पर रोक लगा दी है और इसकी स्ट्रीमिंग के लिए नेटफ्लिक्स को स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी है।

उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता, नेटफ्लिक्स को निचली अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा है। इसके साथ ही निचली अदालत को निर्देश दिया है कि वह सहारा इंडिया द्वारा दायर किए गए निषेधाज्ञा को दाखिल करने के दो सप्ताह के भीतर अपना फैसला दे।

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वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने नेटफ्लिक्स की ओर से बहस करते हुए बिहार के अररिया न्यायालय द्वारा पिछले महीने दिए गए अवकाश पर रोक लगाने की मांग की थी। हालांकि उच्च न्यायालय ने स्टे लगाने से इनकार कर दिया और नेटफ्लिक्स को अंतिम निपटान के लिए अररिया न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया।

बिहार की अररिया अदालत ने पिछले महीने नेटफ्लिक्स को अपनी आगामी वेब श्रृंखला “बैड बॉय बिलियनेयर्स” में व्यवसायी सुब्रत रॉय के नाम का उपयोग करने से रोक दिया था।

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पिछले महीने बिहार की एक निचली अदालत ने नेटफ्लिक्स को अपनी आगामी वेब श्रृंखला में सहारा के अध्यक्ष सुब्रत रॉय के नाम का उपयोग करने से रोक दिया था। नेटफ्लिक्स ने दो याचिकाएं दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पहली याचिका के जरिए बिहार न्यायालय द्वारा पारित आदेश पर रोक लगाने की मांग की गयी थी। एक अन्य याचिका में विभिन्न अदालतों द्वारा पारित ऐसे सभी निषेधाज्ञाओं को बॉम्बे हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार कोर्ट द्वारा नेटफ्लिक्स की श्रृंखला पर दिए गये फैसले पर स्टे लगाने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट में मामलों को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली अन्य याचिका में, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था क्योंकि नेटफ्लिक्स का मुख्यालय मुंबई में है। बिहार के अररिया में एक अदालत ने पिछले महीने फैसला सुनाया था कि वह सुब्रत राय की मानहानि और उनकी कंपनी की साख गिरने की वजह से यह आदेश देती है कि प्रतिवादी के साथ उसके कर्मचारियों, निदेशकों, अधिकारियों, सहयोगियों या किसी व्यक्ति या संस्था को ” बैड बॉय बिलियनेयर्स के ट्रेलर के ऑडियो या वीडियो में सुब्रत राय के नाम को संचारित, वितरित, प्रदर्शन करने या किसी भी साधन या प्रौद्योगिकी के जरिए जनता के बीच इसका प्रदर्शन करने से रोका जा रहा है। ”

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रॉय ने आरोप लगाया था कि लंदन के एक निर्देशक ने उनसे 2019 में लखनऊ में मुलाकात की थी और कहा था कि उनके ऊपर एक वेब सीरिज बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि उन्हें बताया गया था कि वेब सीरिज का शीर्षक “बिलियनेयर्स” रखा जाएगा।
रॉय के वकील ने कहा कि नेटफ्लिक्स श्रृंखला “बैड बॉय बिलियनेयर्स” उनके मुवक्किल की छवि को धूमिल करने की कोशिश है। वकील ने यह भी कहा कि इस श्रृंखला में रॉय के अलावा भगोड़े विजय माल्या, नीरव मोदी, हर्ष मेहता के किरदार भी शामिल हैं। इस वजह से उनके ग्राहक की छवि धूमिल हो सकती है। यही वजह है कि बिहार की अदालत ने नेटफ्लिक्स की इस वेब सीरिज को जारी करने के मामले को टाल दिया था।

टीआरपी और सर्कुलेशन बढ़ाने की जंग में चैनल और अखबार पत्रकारिता के मानदंडों को भुलाते ही जा रहे हैं। ऐसे में अदालत द्वारा नेटफ्लिक्स के वेब सीरिज की रीलिज पर रोक लगाया जाना उचित ही है। आजादी की अभिव्यक्ति के नाम पर किसी को भी हद लांघने की छूट नहीं दी जा सकती है। चौथे स्तंभ को भी मनमानी करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है। उचित तथ्यों के बगैर किसी की छवि को धूमिल करने का हक किसी को नहीं है।

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सुजीत सिंह प्रिंस की रिपोर्ट.

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