राष्ट्रीय सहारा में दमनात्मक नीति का हाल यह है कि हक मांगने पर 47 कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा चुका है। काम कर रहे कर्मचारियों को इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह मानसिक रूप से बीमार हैं। प्रबंधन कर्मचारियों को बुला-बुलाकर इस्तीफा लिखवाने की धमकी दे रहा है। नौकरी लेने की नीयत से बहुत सारे कर्मचारियों का दूर-दराज स्थानों पर स्थानांतरण कर दिया गया है। यह सब तब किया जा रहा है कि जब प्रबंधन कर्मचारियों को बकाया पैसा देने को तैयार नहीं। प्रबंधन के इस दमन के आगे प्रोसेस विभाग में काम कर रहा बी.एम. यादव दम तोड़ गया।
बताया जा रहा है कि एचआर विभाग ने उसे बुलाकर जाने क्या कहा कि वह डिप्रेशन में चला गया। गंभीर हालत होने पर जब उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उसका निधन हो गया। लंबे समय का वेतन रुका होने की वजह से उसकी आर्थिक हालत इतनी खराब हो गई थी कि जब अस्पताल से उसके शव को घर लाया गया तो मकान मालिक ने शव को घर न लाने दिया। आनन-फानन में किसी तरह से उसका अंतिम संस्कार किया गया।
यह है देश के सबसे विशालतम परिवार की कहानी। इसी कड़ी में विज्ञापन विभाग के जेपी तिवारी का भी निधन हो गया। सहारा में ये कोई नई बात नहीं है कि गत दिनों सर्विस डिजीवन में काम कर रहे एक युवा ने इसलिए आत्महत्या कर ली थी कि क्योंकि किराया न देने पर उसके मकान मालिक ने उसके बच्चों के सामने ही उसे बहुत जलील कर दिया था।
गत वर्ष लखनऊ में एक कर्मचारी ने छत से गिरकर इसलिए आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि लंबे समय से उसे वेतन न मिलने के कारण परिवार में रोज बेइज्जत होना पड़ता था। टीवी में काम कर रहे एक कर्मचारी की मौत इसलिए हो गई क्योंकि लंबे समय तक सेलरी न मिलने पर बीमारी की स्थिति में भी वह कई दिनों तक ब्रेड खाकर काम चलाता रहा। यह हाल देशभक्ति का ठकोसला करने वाले इस समूह का। अधिकारियों व मालिकान को देख लो तो खर्चे ऐसे कि राजा-महाराजा भी शर्मा जाएं।
दुखद तो यह है कि सहारा मीडिया में तीन बार आंदोलन करने के बावजूद कर्मचारियों का जमीर नहीं जागा। आज भी 10-15 महीने का बकाया वेतन संस्था पर है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मजीठिया नहीं मिल रहा है। बर्खास्त कर्मचारी मजीठिया व कर्मचारियों के हक की लड़ाई लड़ रहे पर अभी भी ऐसे कितने कर्मचारी हैं कि जो प्रबंधन की चाटुकारिता में लगे हैं। यह हाल तब जब एक-एक कर सबका नंबर आ रहा है।
चरण सिंह राजपूत
charansraj12@gmail.com
Comments on “सहारा प्रबंधन के दमन से दम तोड़ गया सहाराकर्मी!”
बहुत ही दुखद घटना है इसकी जितनी भी निंदा की जाय वह कम है। सहारा के हरामजादे, कमीने मालिकानों और उनके चमचों (मैनेजरो, संपादकों और दलाल कर्मचारियों) के कानों में फिर भी जूं नहीं रेंगेगी। इस तरह की घटना पहली नहीं है। इसके पहले लखनऊ में मंडल ने आफिस की बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी थी। गोरखपुर के एक साथी की भूख से मौत हो गयी। वेतन न मिलने के कारण वह बिस्कुट खाकर गुजरा कर रहा था। राष्ट्रीय सहारा देहरादून के विजय पंवार अपनी बेटी का इलाज नही करा पाये। बिना इलाज के वह इस दुनिया से चली गयी। दो-चार और चले जाएंगे इसलिए कि हम खामोश थे, खमोश हैं और खामोश रहेंगे। आफिस के बाहर लोग धरना दे रहे हैं और अंदर लोग सिर झुकाकर काम कर रहे हैं। तमाम साथी नौकरी से निकाल दिये गये और अंदर कामकर रहे लोग उनकी हंसी उड़ा रहे हैं बहुत क्रांतिकारी बनते थे पिछवाड़े लात पड़ी तो हेकड़ी निकल गयी। हंसों दलालों तुम्हारी भी बारी आएगी।