कन्हैया शुक्ला-
उत्तर प्रदेश में सहकारिता मंत्रालय ने नाबार्ड के माध्यम से सभी सेंटर को कंप्यूटर सिस्टम प्रदान करने हेतु धन उपलब्ध कराया है। इसके बाद प्रदेश की सभी सहकारी बैंक संस्थाएँ कंप्यूटर, प्रिंटर यूपीएस इत्यादि ख़रीद के लिए टेंडर निकाल रही हैं। कई प्रदेशों ने टेंडर निकाले भी हैं परंतु टेंडर की शर्ते ऐसी रखी गई हैं जो सिर्फ़ मल्टीनेशनल कंपनी को ही सपोर्ट कर रही हैं।
ऐसी शर्तों के साथ कोई भी भारतीय कंपनी मानक पूर्ण नहीं कर पा रही है। टेंडर में भाग लेने वाली कंपनियों से विदेशी सर्टिफ़िकेट्स भी मागे गये हैं।
ऐसा ही एक टेंडर उत्तर प्रदेश सहकारिता विभाग (The Uttar Pradesh Cooperative Bank Ltd.) ने भी निकाला हुआ है (UTTAR PRADESH tender number: GEM/2023/R/191523) जिसमें सिर्फ़ विदेशी कंपनी का ही कंप्यूटर क्वालीफाई हुआ। इस कारण टेंडर अपने निर्धारित मूल्य १२२००० से 27000 ऊपर मतलब १४९००० में L1 खोला गया। शर्तों के अनुसार यह टेंडर खोलना ही नहीं था क्योंकि यह निर्धारित बजट से ऊपर था लेकिन विभाग की मिली भगत से इसको खोला गया और बजट बढ़ाने के लिए नाबार्ड को लिखा गया है।
यही टेंडर वेस्ट बंगाल में The West Bengal State Cooperative Bank Ltd के लिए एक भारतीय कंपनी के कंप्यूटर के साथ भरा गया और १०३००० में L1 हुआ, निर्धारित मूल्य से १९००० नीचे, ६००० लोकेशन के लिए, जिसने सरकार के लगभग ६ करोड़ बचाये। (West Bengal tender number : GEM/2023/B/3364830)
वहीं उत्तर प्रदेश में ३००० लोकेशन के लिए लगभग १४ करोड़ के राजस्व का नुक़सान हो रहा है। ऐसा भ्रष्टाचार के चलते हो रहा है।
एक तरफ़ प्रधानमंत्री मोदी जी मेक इन इंडिया में भारतीय कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए अनेकों उपक्रम चला रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश के तमाम विभाग मेक इन इंडिया की धज्जियाँ उड़ा कर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और उन्हें इसकी कोई परवाह नही है।
ईमानदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाक के नीचे वो कौन अफ़सर हैं जो खुलेआम भ्रष्टाचार की साज़िशें रच रहे हैं! इसका खुलासा अगले अंक में किया जाएगा!
जारी…