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राजस्थान पत्रिका के सजायाफ्ता संपादक गिरिराज शर्मा महिला सुरक्षा मानकों की उड़ा रहे हैं धज्जियां!

राजस्थान पत्रिका, नोएडा के सजायाफ्ता संपादक गिरिराज शर्मा की हिटलरशाही चरम पर है. यह आदमी खुद को खुदा से कम नहीं समझता. दूसरों को कीड़े-मकोड़े मानने की इसकी मानसिकता इसकी मानवीय व संवेदनशील सोच समझ पर सवालिया निशान लगाती है. इस सजायाफ्ता संपादक गिरिराज शर्मा द्वारा राजस्थान पत्रिका के नोएडा आफिस में हर दिन महिला सुरक्षा के नियमों और मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही है. वह भी ताल ठोंक कर, चैलेंज करते हुए. संपादकजी मानवता और महिला सुरक्षा संबंधी अनिवार्य कानूनों को ताक पर रख अपनी हिटलरशाही चला रहे हैं और राजस्थान पत्रिका प्रबंधन उनको न्यायालय द्वारा सजा दिए जाने के बावजूद न सिर्फ पद पर बनाये हुए है बल्कि उनके तुगलकी फरमानों को लागू करने की पूरी छूट भी उन्हें दे रखी है.

यह सब न्यायालय की अवमानना तो है ही, महिला सुरक्षा के लिए अति गंभीर खतरा है जो किसी भी दिन भयानक शक्ल में सामने आ सकता है. महिलाओं की सुरक्षा के लिए मानक है कि कंपनियां अपने महिला स्टाफ को अंधेरा होने के बाद घर तक छुड़वाये और वह भी गार्ड के साथ. जब तक वह महिला अपने घर के अंदर न चली जाए तब तक गाड़ी, ड्राइवर और गार्डस साथ रहें. सभी कारपोरेट सेक्टर और मीडिया हाउसेज इसको फालो कर रहे हैं. लेकिन राजस्थान पत्रिका के संपादक गिरिराज शर्मा रात ग्यारह बारह बजे तक महिलाओं से काम कराते हैं. ड्यूटी खत्म होने के बाद भी महिलाओं को कभी मीटिंग तो कभी प्लानिंग के नाम पर या किसी महत्वपूर्ण काम के नाम पर उनकी मर्जी के खिलाफ रोकते हैं. वे महिलाओं को सुरक्षित घर पहुंचाने के लिए न तो गाड़ी की सुविधा देते हैं और न ही गार्ड्स की.

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पहले ऐसा न था. कंपनी की तरफ से गाड़ी की सुविधा थी. लेकिन वर्तमान संपादक ने यह सुविधा खत्म कर दी. जब कोई महिला स्टाफ ड्यूटी के बाद रुकने से मना करती है तो संपादक कहते हैं कि एक इलाके में एक ही गुंडा होता है और यहां का मैं हूं, इसलिए जब मैं कहूं और जितनी देर के लिए कहूं, रुकना ही होगा, ज्यादा बहस की तो अभी के अभी नौकरी से हाथ धोना पड़ जाएगा.

निजता का अधिकार और डिग्नीफाइड लाइफ का अधिकार भारतीय संविधान द्वारा हर भारतीय नागरिक को दिया गया है. लेकिन सजायाफ्ता संपादकजी इसकी भी धज्जियां बड़े शौक से उड़ाते हैं. फिर भी पत्रिका इन्हें संपादक के पद पर रखे हुए है, वह भी असीमित अधिकारों के साथ. पत्रिका के दफ्तर में सुरक्षा और बाकी कारणों से सीसीटीवी आलरेडी लगा हुआ है. इसी के जरिए स्टाफ पर निगाह भी रखी जाती है. लेकिन संपादक जी कभी खुद तो कभी अपने कुछ चमचों द्वारा स्टाफ के लोगों का वीडियो मोबाइल से बनाते-बनवाते हैं. ये लोग महिला स्टाफ तक को नहीं छोड़ते. इन वीडियोज को कभी गुप में डालते हैं तो कभी स्टाफ को अपने चैम्बर में बुलाकर धमकाते हैं कि ड्यूटी टाइम में कितनी देर किसने किससे बात की, यह सब उनके पास रिकार्ड है, यह सब यहां नहीं चलेगा.

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सिर्फ अकेले में ही नहीं, ग्रुप तक पर हिटलरशाही का फरमान बेधड़क जारी करते हैं कि पंद्रह मिनट से ज्यादा का लंच टाइम नहीं होगा. ड्यूटी आवर के एक एक मिनट का हिसाब रखने वाले संपादक ड्यूटी आवर के बाद चार-पाच घंटे भी स्टाफ को बेखौफ रोकते हैं और उसका कोई हिसाब नहीं रखते हैं. महिलाएं और बाकी स्टाफ डर से कुछ नहीं बोल सकते क्योंकि जो बोलेगा उसकी नौकरी चली जाएगी, यह धमकी बात बात पर दी जाती है.

गौरतलब है कि महिला स्टाफ जो देर रात तक काम करने को मजबूर हैं, कई बार अपने सहकर्मी के साथ घर जाती हैं. सहकर्मी के साथ वे सुरक्षित ही होंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है लेकिन संपादक जी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है. कंपनी का कहना है यदि देर रात को जाना हो तो महिला स्टाफ ओला या उबर आदि यूज करें. ओला और उबर के ड्राइवरों के कई मामले यौन शोषण और रेप करने तक के सामने आए हैं लेकिन फिर भी सजायाफ्ता संपादक का तुगलकी फरमान जारी है.

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पंद्रह मिनट लंच टाइम का अमानवीय हिटलरशाही फरमान संपादक ने ग्रुप में लिखित में जारी किया फिर भी कंपनी के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है और वह सजायाफ्ता संपादक को कंपनी से बाहर निकालने के बजाय असीमित अधिकार दिए हुए है. संपादक और कंपनी के कृत्य लेबर लॉ, ह्यूमन राइट्स, प्राकृतिक कानून के खिलाफ हैं. इनकी हरकत भारतीय संविधान, मौलिक अधिकार और महिला संरक्षा संबंधी भारतीय कानूनों आदि सभी के विरूद्ध हैं लेकिन यहां कार्यरत महिलायें मजबूरी में सब सह रही हैं.

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1 Comment

1 Comment

  1. Prem mishra

    June 9, 2019 at 2:05 pm

    पूरी राजस्थान पत्रिका समूह की यही हालत है. खासकर राजस्थान के बाहर छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश या नोएडा. यहां के संपादकों को लगता है की अखबार उनकी जेब में है. भोपाल पत्रिका में स्टेट हेड जिनेश जैन नंगा नाच कर रहे हैं. जिनेश जैन के सबसे खास जबलपुर संपादक गोविंद ठाकरे अखबार की ऐसी तैसी किए हुए हैं. वे जब से संपादक बने हैं तब से संपादकीय की गरिमा यूनिट हेड अजय शर्मा की गोद में चली गई है. अजय शर्मा के इशारे पर नाचने वाले गोविंद ठाकरे किसी भी सहयोगी से बोल देते हैं कि तनख्वाह नहीं बढ़ेगी काम करना है तो करो नहीं अभी छोड़कर चले जाओ. वर्तमान में यहां महज 40% स्टाफ बचा है.

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