सुशोभित-
रजनीश ने एक बार बड़े पते की बात कही थी। उन्होंने कहा था, जिनके पास शक्ति है, वे कभी उसका उपयेाग नहीं करते। शक्तिहीन ही शक्ति के उपयोग की बात सोचते हैं। वास्तव में शक्ति मिलती ही तब है, जब आपको आवश्यकता नहीं रह जाती।
गूढ़ उक्ति है और मनने करने योग्य है। प्रसंग यह था कि 1969 का साल था और आचार्य रजनीश श्रीनगर में ध्यान शिविर ले रहे थे। महावीर पर चर्चा चल रही थी। संकल्प की शक्ति से कितना कुछ पाया जा सकता है, यह चर्चा का विषय था। किसी जिज्ञासु साधक ने पूछा कि यदि संकल्प से इतना कुछ किया जा सकता है, तब तो धन भी पाया जा सकता है- फिर चाहे उसका उपयोग परोपकार के लिए ही क्यों न किया जाए। उस संकल्प से संसार का भला होगा। इस पर रजनीश ने कहा, संकल्प से धन तो बड़ी आसानी से मिल जाएगा। बाएँ हाथ का खेल है। लेकिन धन पाना है, जब तक यह चाह रहेगी, तब तक संकल्प घटित नहीं होगा। यानी चीज़ें ऐसी जटिल हैं।
फिर उन्होंने विवेकानंद की एक कहानी सुनाई। पिता की मृत्यु के बाद विवेकानंद बहुत निर्धन हो गए थे। खाने के लाले थे। दिन-दिन भर विवेकानंद भूखे घूमते और शाम को घर आकर माँ से कह देते कि आज तो मित्र के घर भोज करके आया हूँ, तुम खाना खा लो- ताकि माँ भूखी न रहे। तो मित्रों ने उनसे कहा कि रामकृष्ण से तुम्हारी अच्छी बातचीत है, उनके पास जाकर अपनी समस्या बताओ। विवेकानंद गए और कहा कि बड़ी कठिनाई है, क्या करूँ? रामकृष्ण ने कहा, रे पगले, इसमें चिंता की क्या बात है? सुबह प्रार्थना में काली माँ को कह देना, वो सब इंतज़ाम करवा देंगी। धन-धान्य से घर भर देंगी। विवेकानंद बड़ी आशा से गए। प्रार्थना करके लौटे। रामकृष्ण ने पूछा, कहा? विवेकानंद ने कहा कि दिव्य-दर्शन हुए तो मुँह ही न खुला, याद ही न रहा कि पैसों की ज़रूरत थी। जब ध्यान टूटा तब याद आया कि धन तो माँग ही न पाया। लेकिन अगर धन की बात याद रहती तो क्या दर्शन हो भी पाते?
रजनीश ने इसका कथासार बताया कि संकल्प जितना-जितना प्रगाढ़ होता चला जाएगा, उतना ही उसका उपयोग कम होता चला जाएगा। पूर्ण संकल्प की प्राप्ति में उसकी उपयोगिता का तिरोहित हो जाना भी निहित है। तो उलटबाँसी यह है कि सिद्धि मिल सकती है, लेकिन मिलेगी तभी, जब उसकी ज़रूरत नहीं रह जाएगी।
रजनीश ने वह बात भले आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में कही हो, लेकिन लौकिक जीवन में भी हम अपने आसपास देख सकते हैं। जिसके पास सचमुच में शक्ति है, वो उसका इस्तेमाल करता ही नहीं। वो उसकी बात भी न करेगा। पर जिसको अधकचरी सिद्धि मिल जाए, वो उसका गाजा-बाजा बजाता फिरता है।