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सियासत

सांसद प्रोफेसर मनोज झा का काँसेप्ट क्लियर है, वह महान लोगों की कतार में हैं!

सत्येंद्र पी एस-

इस समय सामाजिक न्याय के सबसे स्पस्ट और प्रखर प्रवक्ता राजद सांसद प्रोफेसर मनोज झा हैं। वह जो बोलते हैं ऐसा लगता है कि उनका कंसेप्ट क्लियर है। अगर वह राजनैतिक, आर्थिक स्वार्थों में न पड़ें तो उन महान लोगों की कतार में खड़े हो सकते हैं जिन्होंने गैर बराबरी दूर करने के लिए काम किया और इतिहास में दर्ज हो चुके हैं।

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ब्राह्मण परिवार में जन्मे पीएस कृष्णन ऐसे नामों में सर्वोपरि हैं। 22 साल उम्र में आईएएस बने कृष्णन ने तमाम ऐसे फैसले सरकारों से करवाए, जो अहम हैं। मण्डल कमीशन रिपोर्ट उन्होंने तैयार कराई। वीपी सिंह के काल में रिपोर्ट लागू करने का मसौदा उन्होंने तैयार कराया, न्यायालय में जब ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई तो वकीलों को इनपुट उन्होंने दिए।और मोदी ने जब आरक्षण की लूट मचाई तो मरने के कुछ महीने पहले तक लगातार सामाजिक न्याय के पक्ष में लिखते रहे।

इसी तरह जेएनयू की प्रोफेसर परिमाला वी राव ने बाल गंगाधर तिलक का खोइया छील दिया। जो भी उनकी लोकमान्यई थी,उसकी हवा निकल गई, जब राव ने बताया कि वह दलितों पिछड़ों के धुर विरोधी थे, लड़कियों की कम उम्र में शादी के समर्थक थे। महिलाओं को चौके चूल्हे तक सीमित रखे जाने के समर्थक थे। राव ने उनके नेशनलिज्म को उन्ही के लेखों के माध्यम से दुनिया के सामने रखकर उनको नङ्गा कर दिया।

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आप अपनी सहूलियत के मुताबिक कहते रहें कि ये लोग ब्राह्मण जाति के हैं, ब्राह्मणवादी हैं, छिपे हुए सांप हैं। लेकिन जो कर दिया, इतिहास में दर्ज हो गया। इतिहास में वो दर्ज नहीं होते जो राम को पुष्यमित्र शुंग बताएं या जगह जगह हिंदू मंदिरों की प्रतिमाओं में बुद्ध दिखाकर फेसबुक पर रायता फैलाएं। शाहिद अमीन की लिखी किताब चौरी चौरा पढ़ें, एक एक नाम खोलकर रख दिया कि मामला क्या था, थाना कैसे फुंका, किन वर्गों के लोगों ने उसमें अहम भूमिका निभाई।

अब आप इधर उधर से किताबों से चेपकर एक मोटी किताब बना दें, कुछ गिरोहबाजों से प्रशंसा ले लें, वह इतिहास या शोधपरक पुस्तक नहीं हो जाएगी। कोई पढा लिखा आदमी पढ़ेगा तो वह पूछ बैठेगा कि अबे इसमें शाहिद अमीन से इतर क्या शोध है। फलनवा आतंकी के बारे में तूने नया क्या लिख दिया है जो इतिहासकार कम्युनिटी का दरवान भी तुमको बना दिया जाए! इतिहास में जगह बनाने के लिए ठोस करना होता है। इतिहासकारों की इंटरनेशनल कम्युनिटी में मान्यता दिलानी होगी कि आपके तर्क अकाट्य हैं। इतिहास कुछ इस तरह लिखा और बनाया जाता है।

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कोई अपने दिल पर न ले। यह पोस्ट किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं लिखी गई है। और इस पोस्ट पर किसी के भक्त को भौंकने की जरूरत नहीं है। पढ़ें, और समझें कि बरक्कत कहाँ अटकी है। सही बताएं तो सबाल्टर्न लोगों के पास इतनी सुविधा ही नहीं होती कि वह लोग सुकून से पढ़ या लिख पाएं। लालू मुलायम की कृपा से या अपने मेहनत से कुछ लोग प्रोफेसरी पा गए तो वह पेट पालने, तीन पांच करने तक ही सीमित हैं। कोई शाहिद अमीन, परिमाला राव या पीएस कृष्णन या केएस सिंह बनने की औकात में नहीं पहुँचा। बकलोली और लफ्फाजी चाहे जितनी कर लें।

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