Deepak Singh : प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री बनने के बाद कौन सुध लेता हैं किसानों की? महाराष्ट्र में और केंद्र में दोनों जगह भाजपा की सरकार पर हालत जस के तस। यह हाल तब हैं जब नरेंद्र मोदी को किसानों का मसीहा बता कर प्रचार किया गया। आखिर क्यों नई सरकार जो दावा कर रही हैं की दुनिया में देश का डंका बज रहा हैं पर उस डंके की गूंज गाँव में बैठे और कर्ज के तले दबे गरीब और हताश किसान तक नहीं पहुँच पाई? क्यों यह किसान आत्महत्या करने से पहले अपनी राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर भरोसा नहीं कर पाया की सरकार आगे आएगी और कुछ मदद करेगी?
क्या यह सरकार की नाकामी नहीं हैं? क्या मोदी सरकार से नहीं पूछा जाना चाहिए पूंजीपतियों पर करोड़ों रुपये फूंकने से पहले हमारे अन्नदाता किसान की सुध क्यों नहीं ली जाती? क्या यह मीडिया के लिए शर्मनाक नहीं हैं? खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जो सुबह-शाम सिर्फ एक दल विशेष के प्रचार तंत्र की तरह काम करने लगा हैं? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए सेंसेक्स का ऊपर जाना ही मतलब रखता हैं, किसान आत्महत्या कर ऊपर जाए तो मीडिया के दलालों को अब क्या फर्क पड़ता हैं। अब ऐसी खबर किसी रद्दी के कोने में छप मात्र जाती हैं तो कुछ एक-दो लोग जान पाते हैं। अब किसान की मौत पर न्यूज़ चैनल पर बहस नहीं होती, अब बहस होती हैं की कौन रामजादा हैं तो कौन हरामजादा!! शर्मनाक!! बेहद शर्मनाक !!
दीपक सिंह के फेसबुक वॉल से.