रवीश कुमार-
आयकर विभाग छापे के पीछे कई वाजिब वजहें बता देगा। बता भी रहा है लेकिन व्यापक संदर्भों में देखें तो आयकर को पता है कि आज क्या हुआ है। ये आख़िरी धक्का था। भास्कर की रिपोर्टिंग भास्कर के पाठकों की दुनिया से आगे पहुँचने लगी थी। लोगों को ज़मीनी सच्चाई का एक दूसरा चेहरा दिखा।
भारत समाचार और भास्कर के यहाँ छापे ग़लत को पकड़ने के लिये नहीं हुए हैं, ऐसा कैसे हो सकता है कि गोदी मीडिया के चैनलों और अख़बारों में सरकारी एजेंसी को कभी ग़लत नहीं मिलता। केवल उसी के यहाँ मिलता जो दो चार रिपोर्ट फाइल कर देता है या कई हफ़्ते तक जनता के साथ खड़ा हो जाता है।
मार्च अप्रैल और मई के महीने में नरसंहार जारी था। उस दौर लोग ही लोग के काम आ रहे थे। भास्कर ने भी वही किया जो किसी भी अख़बार को करना चाहिए था और लोग भी कर रहे थे।
सरकार प्रेस को रौंदने को लेकर हर दिन एक कदम आगे बढ़ रही है। यह संकेत इस बात का नहीं है कि ख़त्म होने वाला है बल्कि इस बात का है कि क्या क्या ख़त्म हो चुका है।
कृष्ण कांत-
मैं फिर कह रहा हूं कि मसला दैनिक भास्कर का है ही नहीं. आप पहले क्रोनोलॉजी समझिए.
पहले सारे बड़े संस्थानों से उन लोगों को हटाया गया जो सत्ता के विरोध में खड़े होते थे. वे कांग्रेस के भी आलोचक थे, वे बीजेपी के भी आलोचक थे. ऐसे दर्जनों पत्रकारों को छांटकर बाहर कर दिया गया. जो नौकरी बचाने में कामयाब हुए, वे खामोश होकर नौकरी करने लगे. परॉन्जय गुहा ठाकुरता जैसे पत्रकारों को अडाणी-अंबानी से हुए गुप्त गठबंधन की पोल खोलने के लिए बेरोजगार कर दिया गया. सरकार बनते ही सरकार के दरवाजे पत्रकारों के लिए बंद कर दिए गए. पत्रकारों का मंत्रालयों और सचिवालयों में घुसने पर पाबंदी लगा दी गई.
एनडीटीवी पर कार्रवाई करके नकेल कसने की नाकाम कोशिश की गई. द वायर पर कई मुकदमे ठोंके गए. दिल्ली से लेकर दक्षिण तक कई दूर दराज के पत्रकारों, छोटे अखबारों, चैनलों पर मुकदमे लादे गए. कई छोटे मीडिया संस्थान या तो बंद हो गए या फिर जूझ रहे हैं. किसी को राजद्रोह में, किसी को यूएपीए में जेल भेजा गया. प्रेस फ्रीडम सूचकांक में भारत लगातार निचले स्थान पर यूं ही नहीं बना हुआ है. सारे घटिया देशों की सूची में भारत का नाम रोशन हुआ है कि वह इजराइली वॉर वीपन पेगासस के जरिये अपने पत्रकारों, जजों, वकीलों, छात्रों, कार्यकर्ताओं, प्रोफेसरों और विपक्षियों की जासूसी कराता है.
अभी कुछ ही दिन पहले न्यूजक्लिक के दफ्तर में भी छापा मारा गया था. न्यूजक्लिक ने कोई भंडाफोड़ रिपोर्ट नहीं छापी, लेकिन उसे भी निशाना बनाया गया क्योंकि वह सरकार की आलोचना करता है.
भास्कर के दफ्तर पर सिर्फ इसलिए छापा पड़ा क्योंकि पिछले कुछ महीनों में उसने अच्छी रिपोर्टिंग की थी और इससे डंकापति की लंका लग गई थी. भारत समाचार यूपी का अकेला ऐसा संस्थान है जो इनकी पोल खोलता रहता है. एक पर कार्रवाई करना मतलब बाकियों को संदेश देना है कि औकात में रहना है. जितने पत्रकार और संस्थान नफरत का जहर फैलाते हैं, उनपर आजतक कभी कार्रवाई नहीं हुई.
आप ये देख रहे होंगे कि भास्कर अच्छा है या बुरा है. मैं ये देख रहा हूं कि लगातार भारत पर हमला करके उसे कमजोर किया जा रहा है. भारत के नागरिकों से उनकी संवैधानिक ताकतें छीनी जा रही हैं.
भास्कर की नहीं, अपने देश की चिंता कीजिए. ये देश अपने संस्थानों की ताकत खो देगा तो आप जीने की, बोलने की, आजादी से सांस लेने की गारंटी खो देंगे. मेरी अपील है कि इसे समझने की कोशिश कीजिए. जो नहीं दिख रहा है, वह ज्यादा खतरनाक है. समग्रता में कहें तो भारत की आत्मा छलनी की जा रही है.