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मीडिया और पीआर एजेंसियों के लिए मानवीय सरोकार भी दिलकश धंधा बन चुका है, देखिए यह उदाहरण

Vineet Kumar : कैम्पा कोला कंपाउंड, मुंबई को लेकर आप पिछले कुछ दिनों से न्यूज चैनलो, अखबारों और सरोकारी चेहरे की मदद से एक के बाद एक मानवता से लदी-फदी जो खबरे देखते-पढ़ते हैं, आपको जानकर हैरानी होगी कि ये सब करने के लिए कैंपा कोला कंपाउंड के निवासियों ने CONCEPT PR नाम की पीआर एजेंसी हायर की. जाहिर है इस पीआर एजेंसी ने निवासियों के प्रति संवेदनशीलता और इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए लाखों रूपये लिए होंगे और जो मामला कोर्ट और नियमों के आगे इनके विरोध में गया, वो सहानुभूति के स्तर पर इनके पक्ष में जाता दिखाया-बताया जाने लगा.

<p>Vineet Kumar : कैम्पा कोला कंपाउंड, मुंबई को लेकर आप पिछले कुछ दिनों से न्यूज चैनलो, अखबारों और सरोकारी चेहरे की मदद से एक के बाद एक मानवता से लदी-फदी जो खबरे देखते-पढ़ते हैं, आपको जानकर हैरानी होगी कि ये सब करने के लिए कैंपा कोला कंपाउंड के निवासियों ने CONCEPT PR नाम की पीआर एजेंसी हायर की. जाहिर है इस पीआर एजेंसी ने निवासियों के प्रति संवेदनशीलता और इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए लाखों रूपये लिए होंगे और जो मामला कोर्ट और नियमों के आगे इनके विरोध में गया, वो सहानुभूति के स्तर पर इनके पक्ष में जाता दिखाया-बताया जाने लगा.</p>

Vineet Kumar : कैम्पा कोला कंपाउंड, मुंबई को लेकर आप पिछले कुछ दिनों से न्यूज चैनलो, अखबारों और सरोकारी चेहरे की मदद से एक के बाद एक मानवता से लदी-फदी जो खबरे देखते-पढ़ते हैं, आपको जानकर हैरानी होगी कि ये सब करने के लिए कैंपा कोला कंपाउंड के निवासियों ने CONCEPT PR नाम की पीआर एजेंसी हायर की. जाहिर है इस पीआर एजेंसी ने निवासियों के प्रति संवेदनशीलता और इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए लाखों रूपये लिए होंगे और जो मामला कोर्ट और नियमों के आगे इनके विरोध में गया, वो सहानुभूति के स्तर पर इनके पक्ष में जाता दिखाया-बताया जाने लगा.

 

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आप इन वेबसाइट पर जाएंगे तो देखेंगे कि एजेंसी ने अपनी शान और असर में टाइम्स नाउ की क्लिपिंग्स से लेकर द टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबार और यहां तक कि कंचन गुप्ता, प्रीतिश नंदी जैसे ट्विटर दिग्गजों के ट्विट्स भी लगाए हैं. यूट्यूब का सहारा लिया गया और तरल वीडियो डाले गए ताकि हम जैसों को पैनिक किया जा सके.

राडिया-मीडिया प्रकरण के बाद ये दूसरा बड़ा उदाहरण सार्वजनिक तौर पर हमारे सामने है जिसके जरिए आप बेहतर समझ सकते हैं कि आपका लोकतंत्र का चौथा खंभा तो छोड़िए, व्यक्तिगत स्तर पर सोशल मीडिया भी किस चरित्र के साथ काम कर रहा है..सरोकार की दुकान कितनी सजावट के साथ चलती है, इसे समझने का ये एक बेजोड़ उदाहरण है. वैसे उदाहरण तो मौजूदा सरकार के गठन और पीआर एजेंसी की भूमिका को लेकर भी है लेकिन सार्वजनिक रूप से कुछ खास हम तक आया नहीं है. फिलहाल आप थोड़ा समय लगाकर इस वेबसाइट पर नजर डालिए और देखिए कि जिसे हम मानवीय सरोकार का हिस्सा मानकर लिखते-पढ़ते-समझते हैं, वो कैसे एक दिलकश धंधा बन चुका है.

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http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:http://www.conceptpr.com/campa-cola.html

युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से.

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