संजय कुमार सिंह-
प्रचारकों के राज में हेडलाइन मैनेजमेंट का हाल
दो महीने पुराना एक शीर्षक है-
रायपुर में प्रधानमंत्री का चुनावी शंखनाद: कांग्रेस करप्शन और कमीशनखोरी की गारंटी है, तो मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की (भास्कर डॉट कॉम)
31 अगस्त को गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स में अडानी के खिलाफ खबर छपी थी।
भारत का मामला विदेशी अखबार में छपने की बहुचर्चित घटना, उससे संबंधित अंश, उसके बाद की जानकारी और स्थिति इस प्रकार है –
डीआरआई के प्रमुख नजीब शाह का यह पत्र सेबी के उस समय के प्रमुख उपेन्द्र कुमार सिन्हा को संबोधित है। इसमें कहा गया है कि, इस बात के संकेत हैं कि अडानी से जुड़े पैसे अडानी समूह में निवेश और विनिवेश के रूप में भारत के पूंजी बाजार में पहुंच गये होंगे। इसका सीधा मतलब है कि शेल कंपनियों के जरिए अडानी ने अपने ही पैसे अपनी ही कंपनी में लगाये और निकाले (मनीलांडरिंग की)। अब मनी लांडरिंग के कितने मामले कितने सबूत के साथ कितने लोगों के खिलाफ चल रहे हैं इसका अंदाजा आपको होगा। दूसरी ओर ईडी ने यह नहीं बताया है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के खिलाफ क्या ढूंढ़ने किस सूचना के आधार पर गई थी और छापे में क्या मिला।
डीआरआई के इस पत्र में कहा गया है कि अडानी के खिलाफ यह पत्र (सूचना) सेबी के उस समय के प्रमुख को इसलिए भेजी गई थी कि सेबी द्वारा पूंजी बाजार में अडानी समूह के लेन-देन की जांच चलने की सूचना थी। जांच में क्या हुआ यह तो नहीं पता (खबरों के अनुसार संबंधित अधिकारी ने कहा है कि पुराना मामला है, याद नहीं) है पर यह सार्वजनिक है कि श्री सिन्हा अब एनडीटीवी में डायरेक्टर हैं। यह सब भ्रष्टाचारी के नहीं बचने की गारंटी और अकेला सब पर भारी के दावे के बावजूद है। कांग्रेस राज में कथित कमीशनखोरी के बाद यह चिट्ठी लिखी गई थी उसके बाद सरकार बदल गई।
मौजूदा प्रधानमंत्री ने इस मामले में किसी कार्रवाई या जांच के लिए कहा हो या इससे अलग कोई सूचना हो तो उन्होंने बताया नहीं है। अखबारों में नहीं छपा है। यह अखबार की हालत है। टीवी पर बहस में एंकर कांग्रेस प्रवक्ता से पूछता है मणिपुर पर आपने क्या किया? राहुल गांधी गये थे – पर उसका कहना था कि फलां मामले में आपने मीटिंग की थी मणिपुर पर क्यों नहीं की। आदि आदि। भाजपा प्रवक्ता वही कह रहा था जो मोदी जी ने मणिपुर पर कई दिनों बाद बोलते हुए कहा था या लाइन ली थी।
ऐसे में मुझे लगता है कि चुनाव जब भी हों, तब तक सभी अखबार और चैनल बंद कर दिये जाने चाहिए (मनोरंजन वाले को छोड़कर)। सिर्फ सरकारी दूरदर्शन और आकाशवाणी चले। अडानी के खिलाफ यह खुलासा तीन दिन से द टेलीग्राफ में लीड है। पहले दिन राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस, दूसरे दिन अडानी के जवाब में दम नहीं है और तीसरे दिन (आज) अडानी मामला चुनावी मुद्दे के रूप में आकार ले रहा है। दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर खबर लगभग नहीं दिखी। जहां दिखी उसका नाम जान-बूझकर नहीं लिख रहा हूं ताकि उसे भी रोक न दिया जाए।
वैसे तो इमरजेंसी से लोगों को बहुत दिक्कत रहती है पर सच्चाई यह भी है और कइयों का मानना है कि गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स में छपी अडानी की कहानी जब तक आम लोगों के पास नहीं पहुंचेगी सरकार का कुछ नहीं बिगड़ता। मेरे जैसों का मानना है कि देसी अखबार यह जिम्मेदारी निभायेंगे नहीं। और बोफर्स के समय हर आम व खास जिस तरह सबूत जेब में लिये घूम रहा था, स्वीडन या स्विटजरलैंड के फ्लैट की तस्वीर अखबार में छप रही थी, इंडियन एक्सप्रेस में मजदूरों की हड़ताल हुई तो उसे कांग्रेस प्रायोजित बता दिया गया, जवाब में सेंट किट्स कांड भी हुआ और अंततः मामला साबित नहीं हुआ। पर राजीव गांधी को बदनाम करने का काम हुआ।
इसके लिए स्वीडन में भारत के राजदूत रहे बीएम ओजा ने, ‘द एमबैस्डर्स एविडेंस’ के नाम से किताब भी लिखी जिसे कोणार्क पबलिशर्स ने छापा था। अब इमरजेंसी भले नहीं लगी है किताब लिखने वालों का हाल हम जानते हैं। जो नहीं जानते उन्हें बता दूं कि राफेल सौदे पर द फ्लाइंग लाईज? लिखने वाले परंजय गुहा ठकुराता को अपनी किताब खुद प्रकाशित करनी पड़ी, किताब के खिलाफ कोई मामला मुझे मालूम नहीं है लेकिन उनके खिलाफ मानहानि के पांच मामले हैं। राफेल के खिलाफ उनकी किताब पर खबर, समीक्षा, चर्चा ढूंढ़ने पर कहीं जरूर मिलेगी पर वैसे चर्चित नहीं है जैसे बोफर्स मामला हुआ था। भले उसमें राजीव गांधी दोषी नहीं पाये गये। परंजय गुहा ठकुराता की एक किताब, गैस वार्स 2014 से पहले आई थी। उसपर उन्हें अंबानी का नोटिस मिला था। पर मुकदमा नहीं हुआ।
इसलिए, मेरा मानना है कि, ‘एक देश, एक चुनाव’ की पूरी कवायद – पूर्व राष्ट्रपति को अध्यक्ष बनाने, अमित शाह के दो नंबर पर रहने, अधीर रंजन चौधरी को बिना पूछे सदस्य बनाने, मल्लिकार्जुन खडगे को छोड़कर गुलाम नबी आजाद को शामिल करने और जेडीयू से भाजपा में पहुंचे 82 साल के एनके सिंह और हरीश साल्वे को शामिल करने का मामला सिर्फ हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए है। बाद में इसकी आड़ में चुनाव भले टाले जा सकते हैं। पर अभी अडानी का मामला तो किनारे हो ही गया है। यह प्रचारकों की राजनीति है। पत्र की कॉपी @bainjal (पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी) के ट्वीट से साभार।
2011 से 2017 के बीच उपेन्द्र कुमार सिन्हा सेबी के चेयरमैन थे। 2014 की शुरुआत मे भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अडानी समूह की कंपनियों के लेनदेन की जांच की ओर सेबी ने 2323 करोड़ रुपये की हेराफेरी से संबंधित सबूतों वाली एक सीडी भी प्रस्तुत की। 2014 मे सरकार बदल गई। मोदी सरकार ने ये फाइल दबा दी। जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी की सारी पोल पट्टी खोल दी। फरवरी 2023 को सेबी के पूर्व चेयरमैन उपेंद्र कुमार सिन्हा का बरखा दत्त ने इंटरव्यू लिया। उन्होंने कहा कि वह यह मानने के इच्छुक नहीं हैं कि अडानी पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट भारत पर हमला है। ये पहली बार नहीं है जब हिंडनबर्ग ने किसी खास देश की किसी खास कंपनी के बारे में रिपोर्ट लिखी है। सिन्हा ने याद दिलाया कि अमेरिकी कंपनी निकोला कॉर्पोरेशन और चाइना मेटल रिसोर्सेज यूटिलाइजेशन सहित कई कंपनियों के खिलाफ आरोपों में काफी हद तक सही थी। मार्च 2023 में अडानी ने सेबी के पूर्व चेयरमैन उपेंद्र कुमार सिन्हा को एनडीटीवी के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक नियुक्त कर दिया।