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विपक्ष को फंसाने की साजिश का जिक्र सभी अखबारों में नहीं है!

संजय कुमार सिंह-

हेमंत सोरेन की खबर आज तीसरे दिन दिल्ली के कई अखबारों में लीड हैं। उनकी गिरफ्तारी निश्चित रूप से बड़ी खबर है। लेकिन इससे पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया और एससी एसटी थाने में शिकायत दर्ज कराई थी – यह भी खबर है। कितनी कैसे छपी है देखिये और तय कीजिये कि सरकार के विरोधियों के मामले में खबरें कैसे छपती हैं। गिरफ्तारी की कोशिशों को दो दिन कैसे प्रचारित किया गया और एक आदिवासी मुख्यमंत्री को मामला साबित होने से पहले इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया जबकि पॉस्को आरोपी और पद का दुरुपयोग करते हुए यौन शोषण के आरोपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं से नहीं हुई। खबरें जो छपीं और पुलिस ने जो किया वह सब अब पुरानी बात है। सत्तारूढ़ पार्टी में इस्तीफा देने का तो रिवाज ही नहीं है। 

आरडब्ल्यूए का नया अधिकार और काम 

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अपनी ऐसी खबरों और रवैये से मीडिया तथा प्रचारकों ने समाज का ये हाल बना रखा है कि आरडब्ल्यूए वाले यह तय करना चाहते हैं कि मोहल्ले में कौन रहेगा और कौन नहीं रहेगा। धमकाना और उनका आतंक तो अपनी जगह है ही। इसमें पुलिस की पक्षपाती भूमिका भी रेखांकित की जानी चाहिये और मीडिया का यह काम है जो वह नहीं कर रहा है। कहने की जरूरत नहीं है कि ज्यादातर मामलों में रहने के लिए मोहल्ला चुनने का काम आर्थिक स्थिति से तय होता है और आरडब्ल्यूए का काम अधिवासी तय करना नहीं है, अधिवासियों का कल्याण करना है। पुराने मोहल्लों में वह किसी को आने से तो रोक सकता है पर बनता तभी है जब लोग रहने लगते हैं। ऐसे लोगों की प्रतिनिधि संस्था सदस्यों के खिलाफ नहीं हो सकती है। मोहल्ले में रहने वाले किसी सदस्य को बाहर जाने का आदेश देना उसका काम नहीं है, उसका काम रहने वाले का कल्याण देखना है। उत्तर प्रदेश में पहले अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन होता था जो तय कर सकता था कि एसोसिएशन के सदस्य किन लोगों को फ्लैट किराये पर देंगे। पर अब वह रेजीडेंस्ट एसोसिएशन हो गया है। मकसद यही होगा कि वह रेजीडेंट्स के लिए काम करे मकान मालिकों के लिये नहीं। 

इसके बावजूद दिल्ली के एक आरडब्ल्यूए ने अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर को धमकी दी है कि माफी मांगें वरना कहीं और रहने जाएं। मुझे नहीं पता मकान है या फ्लैट, अपना है या किराये का – पर किराये का हो तो मालिक मकान की मजबूरी होगी कि वह दूसरा किरायेदार ढूंढ़े। यह सब परेशानी हिन्दुओं की है मुसलमानों की होती तो वैसे भी खबर नहीं होती और पता भी नहीं चलता। कोई सुनता ही नहीं। अय्यर को धमकी का कारण यह है कि उनकी अधिवक्ता बेटी सुरण्या अय्यर (जो वहां नहीं रहती है) ने अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा और उससे संबंधित आयोजन के प्रचार-प्रसार के खिलाफ घर पर उपवास किया था और इस बारे में फेसबुक पर लिखा था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कानूनन कुछ गलत होता तो वैसे कार्रवाई होती और यह आरडब्ल्यूए का काम नहीं है लेकिन जिसकी लाठी उसकी भैंस का बुलडोजर कानून सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, हिन्दुओं पर भी लागू किया जा रहा है और दिल्ली में खबर भी नहीं है। दिल्ली की यह खबर कोलकाता के टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। दिल्ली में शहर की खबरों के पन्ने पर छापने का मतलब इसे बहुत आम और मामूली बात बताना है जो यह नहीं है। 

विपक्ष को फंसाने की साजिश 

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पहले पन्ने की एक और खबर जो दिल्ली की है और दिल्ली के अखबारों में नहीं है वह है – संसद सुरक्षा चूक के आरोपी बोले विपक्ष से संबंध स्वीकारने के लिए बिजली के झटके दिये गये। अपवाद स्वरूप यह खबर मेरे सात में से तीन अखबारों – नवोदय टाइम्स, द हिन्दू और कोलकाता के द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। भाषा की यह खबर इस प्रकार है, “संसद की सुरक्षा में चूक मामले में गिरफ्तार पांच आरोपियों ने बुधवार को एक अदालत को बताया कि दिल्ली पुलिस उन्हें विपक्षी दलों के साथ अपने संबंध स्वीकार करने के लिए कथित तौर पर प्रताड़ित कर रही है। पांच आरोपियों ने यह दलील अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरदीप कौर के समक्ष दी। न्यायाधीश ने सभी छह आरोपियों की न्यायिक हिरासत एक मार्च तक बढ़ा दी। पांच आरोपियों मनोरंजन डी, सागर शर्मा, ललित झा, अमोल शिंदे और महेश कुमावत ने अदालत को बताया कि लगभग 70 कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए उन्हें मजबूर किया गया था। अदालत ने मामले में पुलिस से जवाब मांगा और अर्जी पर सुनवाई के लिए 17 फरवरी की तारीख तय की।“

इस खबर की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि नये बने संसद भवन में दर्शक दीर्घा से कूदा जा सकता है, सुरक्षा पास जारी करने के लिए सिफारिश भाजपा सांसद ने की थी, सुरक्षा में चूक हुई और इस पर सवाल पूछने तथा संबंधित हंगामे के लिए विपक्ष के करीब डेढ़ सौ सांसदों को निलंबित करने की ऐतिहासिक कार्रवाई हुई। दूसरी ओर मामले में गिरफ्तार लोगों का आरोप है कि विपक्षी दलों से संबंध स्वीकार करने के लिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और करंट लगाया गया है। गिरफ्तार आरोपी राजनीतिक कैदी हैं अपराधी नहीं, प्रताड़ित करने का उनका आरोप और सरकार जब अपने हर विरोधी को किसी ना किसी मामले में फंसा दे रही है तब विपक्षी नेता का नाम लेने का उनका आरोप बेहद गंभीर है और सरकार की कार्यशैली दिखाता है। मीडिया जब सरकार की चाणक्य नीति और कथित मास्टर स्ट्रोक पर फिदा होता है तो ऐसे आरोपों को कम महत्व कैसे दिया जा सकता है? 

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न्याय यात्रा पर हमला? 

राहुल गांधी की न्याय यात्रा और उससे संबंधित खबरों की लगातार उपेक्षा की जा रही है जबकि भारतीय माहौल में यह यात्रा अपने आप में महत्वपूर्ण और अनूठी है तथा सुरक्षा के लिहाज से एक जोखिम जो मीडिया के पक्षपात के कारण ही निकालनी पड़ी है। इसके बावजूद मीडिया निष्पक्ष दिखने की कोशिश भी नहीं कर रहा है और सरकार का समर्थन खुले आम कर रहा है तो यह जरूर रेखांकित करने वाली बात है। आज भी ऐसा ही हुआ है। राहुल गांधी की कार का शीशा टूटना खबर तो है ही। उसे हमला मानना और नहीं मानना भी दिलचस्प विवाद है। द टेलीग्राफ ने किसी का पक्ष लिये बिना पूरा विवरण पहले पन्ने पर दिया है और कहा है कि राजनीतिक ऐसा करते हैं। इसे रैशोमॉन इफेक्ट कहा जाता है। मीडिया का काम सूचना देना होता है ताकि निर्णय पाठक खुद करें। लेकिन मीडिया इन दिनों अपना और सरकार समर्थकों का निर्णय पाठकों पर थोपने के अंदाज में खबर दे रहा है और बहुत सारी खबरों का महत्व कम या ज्यादा उसी आधार पर हो रहा है। इस आधार पर आप अखबारों को सरकार विरोधी या समर्थक के खाने में रखना चाहें तो ज्यादातर सरकार समर्थक नजर आयेंगे। सरकार समर्थक होना भी बुरा नहीं है बशर्तें खबरें सामान्य तौर पर दी जायें लेकिन विज्ञापन और बड़े विज्ञापन बजट के लिए किसी सरकार के हर अवगुण या दोष को छिपाना, कम या महत्व देना प्रचारक होना है। 

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यही नहीं, केंद्र सरकार जब विपक्षी दलों के नेताओं को आर्थिक घोटालों में गिरफ्तार कर रही है और जेल में रखे हुए है तब तथ्य यह है कि भारतीय व्यवस्था में राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी कमाने होते हैं। सत्तारूढ़ दल को तो बिना मांगे दान मिल सकता है या दान लेने के लिए वह नीतियां बना बदल सकता है। संभव है दिल्ली के मामले में ऐसा हुआ हो। हालांकि धन बरामद नहीं हुआ है और इतना ज्यादा है कि कोई अपने लिये नहीं लेगा। इसके अलावा, जिस तरह उपमुख्यमंत्री और सांसद के बाद अब मुख्यमंत्री को भी घेरा जा रहा है उससे लगता है कि मामला ऐसा ही हो। ऐसे में विपक्षी दलों के नेताओं और मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार कर लिया जाये उनकी पार्टी का पंजीकरण ही रद्द करने की मांग की जाये तो यह कैसे तय होगा कि केंद्र सरकार कुछ गलत ही नहीं करती है और उसके खिलाफ किसी जांच की जरूरत नहीं है? गिरफ्तार लोगों का यह आरोप कि उन्हें विपक्ष के नेता का नाम लेने के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है, गंभीर है।  

जरा प्रचार भी देख लीजिये 

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आज के अखबारों में जब यह बहुत साफ दिख रहा है कि ज्यादातर अखबार सरकार का समर्थन कर रहे हैं तो आइये अब यह भी देख लें कि मीडिया ने सरकार और व्यवस्था के प्रचार में कैसी खबरें तथा शीर्षक दिये हैं। 

1. ज्ञानव्यापी : व्यासजी के तहखाने में तीस साल बाद पूजा शुरू। दोपहर में जिला जज का आदेश …. देर रात पूजन अर्चन। पूजा-राग-भोग व्यास परिवार और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को सौंपा। 

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2. चंडीगढ़ मेयर चुनाव के नतीजों पर रोक से हाईकोर्ट का इंकार। 

3. केजरीवाल को ईडी का पांचवां समन 

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4. अंतरिम नहीं अभिलाषापूर्ण बजट 

5. सत्र से पहले मोदी ने सांसदों को सलाह दी, चर्चा कीजिये, बाधा मत डालिये

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6. अंतरिक्ष से अर्थव्यवस्था तक, राष्ट्रपति ने भारत के विकास क्षेत्रों की प्रशंसा की 

7. यात्रा मालदा पहुंची तो ममता ने कांग्रेस की आलोचना की  

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कॉरपोरेटर को दल बदल के लिये पांच करोड़ 

ज्यादातर प्रचार और कुछ सामान्य खबरों के बीच मीडिया का काम होता है सरकार के काम काज और व्यवस्था पर टिप्पणी करना। इंडियन एक्सप्रेस अमूमन व्यवस्था पर टिप्पणी करने वाली आम खबरों को पहले पन्ने पर नहीं छापता है लेकिन सरकार कैसे काम कर रही है उसकी जानकारी देने वाली खबरें समय-समय पर करता रहता है। इनमें आरटीआई से प्राप्त खबरें भी होती हैं। इस क्रम में आज मुंबई की एक खबर की दूसरी किस्त पहले पन्ने पर छपी है। पहली किस्त में बताया गया था कि मुंबई के स्थानीय निकाय बीएमसी के चुनाव रुके हुए हैं और संस्था ने शहर के विकास के 500 करोड़ रुपये सत्तारूढ़ भाजपा सेना के विधायकों को दिये। विपक्षी दलों को कुछ नहीं। बीएमसी की नीति के अनुसार मुंबई के 36 विधायकों में से प्रत्येक को 35 करोड़ रुपये तक दिये जा सकते हैं। सत्तारूढ़ गठजोड़ के 21 को पैसे मिले हैं विपक्ष के 15 में से 11 ने मांगे हैं और इंतजार कर रहे हैं। आज की किस्त में बताया गया है कि 163 करोड़ का विशेष फंड पार्टी लाइन के अनुसार बंटा है और यह दल या गुट बदलने पर भी मिला है। गुट का मतलब शिवसेना का जो हिस्सा राज्य सरकार का समर्थन कर रहा है। उपशीर्षक में बताया गया है कि शिव सेना के उद्धव बाल ठाकरे गुट से शिन्दे गुट में जाने वाले कॉरपोरेटर को दल बदल के लिए पांच करोड़ रुपये मिले। 

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आदिवासी राष्ट्रपति और सरकार की तारीफ 

यह सब चल रहा है और राष्ट्रपति से सरकार की तारीफ करवाई जा रही है। हिन्स्तान टाइम्स ने इसे लीड बनाया है और विपक्ष द्वारा इसकी आलोचना साथ में है। लेकिन आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने का दावा करने वाली सरकार के राज में एक आदिवासी मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने की स्थिति पर राष्ट्रपति ने कुछ नहीं कहा है या कहा है तो वह प्रमुखता से नहीं छपा है। इंडियन एक्सप्रेस ने पहले के पन्ने पर सूचना दी है कि यह अंदर के पन्ने पर छपा है। वहां विपक्ष ने इसकी आलोचना की है वह भी है। आप जानते हैं कि राष्ट्रपति से राजनीति और प्रधानमंत्री की प्रशंसा की अपेक्षा नहीं की जाती है। जहां तक उनके आदिवासी होने की बात है, झारखंड उनका राज्य है (राज्यपाल थीं) और वहां की राजनीति पर उनकी चुप्पी (जब वे बोल रही हैं) का क्या अर्थ लगाया जाये। खासकर तब जब हेमंत सोरेन के उत्तराधिकारी का मामला राजभवन में लटक गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने राष्ट्रपति द्वारा सरकार की तारीफ की खबर को प्रधानमंत्री द्वारा अपनी सरकार की खुद तारीफ करने वाली खबर के साथ छापा है।    

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हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है, जो (नरेन्द्र) मोदी जी के साथ नहीं जायेगा वह जेल जायेगा। ईडी को झारखंड के मुख्यमंत्री के खिलाफ लगाना और उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर करना संघवाद के लिए झटका है। यह टेलीग्राफ में कोट है लेकिन बाकी अखबारों में दिखा? मुंबई में भाजपा की सरकार कैसे बनी है यह बताने की जरूरत नहीं है और वहां दलबदल के पैसे देना न सिर्फ रिश्वतखोरी है बल्कि सरकारी धन रिश्वत में खर्चने का मामला भी है जबकि अमूमन रिश्वत मजबूरी में अपनी कमाई से सही या गलत काम करवाने के लिए दी जाती है और लेना तो गलत है ही, देना भी गलत है। भ्रष्टाचार की ऐसी व्यवस्था को दूर करने के लिए, “ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा” जैसी घोषणा और अब यह लूट दूसरे बहुत सारे अखबारों के लिए खबर नहीं है। हो रहा है या किया जा रहा है सो अलग। तब भी जब झोला उठकर चल दूंगा और किसी भी चौराहे पर आ जाउंगा को पूरा प्रचार दिया गया था। 

लेख़क सीनियर जर्नलिस्ट हैं.

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