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सुख-दुख

शराब की देवियां!

संस्कृत के विद्वान जेम्स मैकहुग जब भारत में होते हैं तो सादा पान खाते हैं और ओल्ड मॉन्क के साथ चखने में चने। मूलरूप से ब्रिटेन के जेम्स साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई धर्मों के प्रोफ़ेसर हैं। भारत में शराब की क्या संस्कृति रही है, इसकी कितनी देवियां हैं, इस पर शर्मिला गणेशन राम ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :

प्राचीन इटली की तुलना में प्रारंभिक भारत की शराब पीने की संस्कृति के बारे में हम इतना कम क्यों जानते हैं?
कुछ अच्छी स्टडीज, लेख और किताबों के हिस्से तो हैं, लेकिन पीने की प्राचीन संस्कृति इतनी जटिल है कि ये बहुत कम हैं। साउथ एशिया या दूसरी जगहों पर जो हिस्टॉरिकल स्टडीज हुई हैं, चाहे वे अकादमिक हों या पापुलर, दोनों ने अक्सर उन समुदायों से जुड़े ग्रंथों पर ध्यान केंद्रित किया है जो शराब छोड़ देते हैं या उसे बदनाम करते हैं। इससे यह पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है कि कल्पना में लोग प्राचीन भारत में शराब का इतिहास कैसे देखते हैं।

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रिसर्च प्रॉसेस में क्या गड़बड़ियां थीं?
जल्द ही मुझे लग गया कि अंग्रेजी बियर या फ्रेंच वाइन संस्कृति के साथ मेरा अपना अनुभव भारत की कई शराबों को समझने के लिए नाकाफी था। इसलिए मैंने भारत और दूसरी जगहों पर शराब बनाने के तरीकों को देखने लगा। भारत में मैं ताड़ी बनाने वालों से मिला, जिन्हें अपने ताड़ी बनाने के तरीके और ताड़ी पर गर्व था। वो बिना हिचक इसे चखने को भी देते थे। ये सभी पारंपरिक पेय बहुत स्वादिष्ट थे। बल्कि मैं तो कहूंगा कि ये किसी भी फैशनेबल नेचुरल वाइन से भी अच्छे थे।

क्या यह सच है कि शराब की किसी देवी ने आपकी किताब को अध्यायों की जगह नौ ‘कपों’ में बांट दिया?
कुछ हिंदू और बौद्ध ग्रंथों में भी शराब की देवी हैं, जिन्हें वरुण या सुरा देवी कहा जाता है (वह दूध सागर के मंथन में प्रकट हुई थीं)। एक ग्रंथ में, जिसका मैंने अनुवाद किया है, उसमें बताया है कि उस देवी की 18 भुजाएं हैं, जिसमें नौ घड़े और नौ प्याले हैं। इससे वह देवताओं को पेय पिलाती है। इससे एक बूंद धरती पर गिरती है और शराब से लेकर भांग तक के सारे नशीले पदार्थ बन जाते हैं। मैंने सोचा कि इसे किताब की संरचना में इस्तेमाल करना अच्छा हो सकता है, नौ अध्यायों के बजाय नौ कप।

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क्या हमारे पूर्वज बड़े मन से शराब पीते थे? इसमें उन्हें पसंद क्या-क्या था?
शराब और संयम, दोनों की शुरू से ही एक जटिल संस्कृति थी। लेकिन पीने वालों की पहुंच कई अलग-अलग पेय तक थी। अनाज से बनी सुरा की कई किस्में हैं, जिनके नाम भी हैं। फिर, गन्ना से बनी चीजें, जैसे सिद्धू और मैरिया। मैरिया को चीनी की दूसरी खुराक मिलती है, वास्तव में गुड़ और कुछ हद तक शैंपेन की तरह। शक्कर, जड़ी-बूटियों और फलों के कई आसव हैं जो आज भी आयुर्वेद में मिलते हैं।

आपकी किताब में सोम का काफी जिक्र है। क्या हम सोम को वैदिक काल का राजा कह सकते हैं?
सोम वैदिक अनुष्ठानों का एक देवता है, पौधा है, पेय है और एक पेचीदा रहस्य है। कुछ लोग इसे शराब जैसा कुछ मानते हैं, पर यह मादक पेय नहीं था क्योंकि वैदिक अनुष्ठान में फर्मेंटेशन के लिए पर्याप्त समय नहीं था। इसे एक पौधे के कुचले हुए तनों में पानी मिलाकर, छानकर और दूध के साथ मिलाकर बनाया जाता है। पीने वालों ने मन और शरीर की एक बदली हुई हालत का अनुभव किया। मुझे नहीं पता कि पौधा क्या था, लेकिन ऐसा लगता है कि वेदों में यह एक प्रतिष्ठित पेय था जिसने उन लोगों में जोश बढ़ाया था। यह किसी एल्कोहलिक ड्रिंक का उल्टा है। सुरा : सोम देवताओं का है और सुरा मनुष्यों की है।

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शराब पीने वाली महिलाओं की क्या तस्वीर उभरती है?
कुछ ग्रंथों और विजुअल आर्ट में हम महिलाओं का चित्रण पाते हैं। उदाहरण के लिए, 12वीं शताब्दी के संस्कृत पाठ मनसोल्लास में शराब पीने की पार्टी में हरम की सभी महिलाएं नशे में धुत हो जाती हैं। वो गा रही हैं, रो रही हैं, हंस रही हैं, और आम तौर पर भ्रमित हैं। इस सब के बीच वे राजा से लड़ रही हैं। लेखकों के लिए निश्चित रूप से यह एक एक कामुक या विनोदी माहौल बनाने वाले सीन का एक टुकड़ा था। शराब बनाने वाली महिलाओं के भी कुछ सबूत हैं।

क्या आधुनिक भारत के पहले के युग में शराब पीना बुराई या पाप था?
कई ग्रंथों में, चाहे उनमें कहानियां हों या धार्मिक कानून हो, शराब पीने की बुराइयां हैं। सामान्य विचार यह है कि शराब आपसे अपमानजनक, खतरनाक काम कराती है। लेकिन ब्राह्मणों के साथ, वेदों के उनके ज्ञान और सोम अनुष्ठान के साथ शराब को जोड़कर इसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए। जैनियों को फर्मेंटेड ड्रिंक्स में अरबों जीवित प्राणी दिखाई देते हैं, इसलिए बीयर पीना या बनाना- दोनों हत्या है, जो आपसे जानलेवा काम करा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि मनु के शास्त्रीय हिंदू कानून में कुछ समुदायों को पीने की छूट है। क्षत्रियों और वैश्यों को अनाज से बने पेय सुरा लेने की मनाही है। यह हमेशा जटिल रहा है।

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प्रारंभिक भारत में लोगों ने शराब के व्यापार को कैसे नियंत्रित किया?
इसके व्यापार को रेग्युलेट करने पर अर्थशास्त्र में एक अद्भुत अध्याय है। ड्रिंक-हाउस चलाने के लिए स्टेट परमिट, सामग्री और उसकी मात्रा के मानक, साथ ही परिसर में पेय लेने और घर पर शराब बनाने के नियम थे। ये पेय राज्य के टैक्स का एक जरिया भी थे। 12वीं शताब्दी का एक शानदार संस्कृत पाठ है, सोमेश्वर तृतीय का मानसोल्लास, जिसमें सुगंधित व्यंजनों के साथ-साथ एक अध्याय है कि कैसे एक पीने की पार्टी का मंचन किया जाए।

हिंदी अनुवाद- राहुल पांडेय

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साभार- नभाटा मुंबई

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