“देहरादून से प्रकाशित तीन समाचार पत्रों दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिंदुस्तान ने मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू कर दिया है।” यह दावा मैं नहीं, उत्तराखंड सरकार के श्रम विभाग ने किया है। यह जवाब उत्तराखंड श्रम विभाग ने आरटीआई कार्यकर्ता अतुल श्रीवास्तव को 2-9-14 को अपने पत्र संख्या 4669 / दे०दून-सू०अधि०अधि० / नि०प० / 2014 के जरिए दिया है। इससे बाद 09-10-14 को पत्रांक 5369 / दे०दून०सू०अ०अधि० / नि०प०76 / 2014 के माध्यम से भी यही बताया है। यही नहीं, बिल्कुल इसी तरह का दावा वह मुझसे (अरुण श्रीवास्तव) भी 13 मई 2015 को अपने पत्र (2700 / दे०दून०-सू०अधि०अधि० / 2015) के जरिए कर चुका है।
सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिंदुस्तान अपने-अपने कर्मचारियों (पत्रकारों- गैर पत्रकारों) को नये वेज बोर्ड मजीठिया के अनुसार वेतन और अन्य परिलाभ (नाइट एलाउंस आदि ) दे रहे हैं जिसका दावा वह (श्रम विभाग) अपने पत्रों में कर चुका है, वह भी सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत, तो फिर वह इन समाचार पत्रों (जिनका पर्दाफाश भडास4मीडिया ने किया है) में जांच करने क्यों गया था?
भडास मीडिया के माध्यम से मिली सूचना के बाद यह सवाल उठता है कि सच्चाई क्या है? अब दोनों बातें तो सच हो नहीं सकतीं। अप्रैल 14 में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया। इस आदेश के लगभग पांच माह बाद ही श्रम विभाग सीना ठोंक कर कहता है कि “देहरादून से प्रकाशित उक्त तीनों समाचार पत्रों ने वेज बोर्ड लागू कर दिया है”। हालांकि वह अपने दावे को सही साबित करने की दिशा में एक भी प्रमाण (कई बार मांगे जाने के बावजूद) नहीं प्रस्तुत करता।
श्रम विभाग कदम-कदम पर मालिकों के पक्ष में ढाल बनकर श्रमिकों के खिलाफ खड़ा हुआ दिखता है। सूचना के अधिकार के तहत मैंने खुद तमाम विषयों पर जानकारी मांगी मगर कभी उसने ढिठाई तो कभी चतुराई की आड़ में जानकारी नहीं दी। एक-एक सूचना के लिए अनेक बार आवेदन किया। कुछ में प्रथम अपील तक गया। कुछ में उनकी “धौंस” के आगे घुटने टेक दिये क्योंकि मेरी नौकरी भी श्रम विभाग के अधीन थी जो उनकी “मेहरबानी” से चली गई। लगातार वेतन न देने और अन्य अनियमितताओं की शिकायत राष्ट्रीय सहारा देहरादून के लगभग 41 कर्मचारियों और व्यक्तिगत रूप से मैंने खुद श्रम विभाग से की थी। मिला क्या, बाबा जी का ठुल्लू। एक भी मामले का निपटारा श्रम विभाग नहीं करा पाया। नौ लोगों की नौकरी निगल गया श्रम विभाग। नोटिस पर नोटिस दी मैनेजर को लेकिन मैनेजर की सेहत पर फर्क नहीं पड़ा। एक भी तारीख पर मैनेजर साहब हाजिर नहीं हुए। झक मारकर इन्हीं कुलाश्री महोदय को मत्था टेकने के लिए प्रबंधक की ड्योढी पर जाना पडा, वो भी एक नहीं दो-दो बार।
मित्रों, अब भी मौका है। अमर उजाला और दैनिक जागरण की जिस यूनिट का निरीक्षण किया है श्रम विभाग ने, उसकी पूरी जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांग कर जांच के नाटक की पोल खोली जा सकती है।
अरुण श्रीवास्तव
पत्रकार एवं आरटीआई कार्यकर्ता
देहरादून
09458148194
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