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सुख-दुख

युवा महिला पत्रकार रीवा सिंह का एक खुला ख़त, दुनिया के तमाम सिरफिरे आशिकों के नाम…

Riwa Singh : एक खुला ख़त दुनिया के तमाम सिरफिरे आशिकों के नाम… नासमझ आशिकों, तुम मिलते हो हमें हर गली-सड़क-चौराहे पर। मोहल्ले के हर नुक्कड़ पर किसी न किसी की राह तकते हुए। तुम किसी को पसंद करते हो जिसे ‘बेपनाह मुहब्बत’ कहते हो और फिर इस प्रेम की व्याख्या करने को अपने दोस्तों से यह भी कह देते हो कि वो न मिली तो मर जाऊंगा। प्रेम के इस स्तर की जब अति हो जाती है तो यह सुनने को मिलता है कि वो सिर्फ़ मेरी है। मेरी नहीं हुई तो किसी की नहीं होगी।

Riwa Singh : एक खुला ख़त दुनिया के तमाम सिरफिरे आशिकों के नाम… नासमझ आशिकों, तुम मिलते हो हमें हर गली-सड़क-चौराहे पर। मोहल्ले के हर नुक्कड़ पर किसी न किसी की राह तकते हुए। तुम किसी को पसंद करते हो जिसे ‘बेपनाह मुहब्बत’ कहते हो और फिर इस प्रेम की व्याख्या करने को अपने दोस्तों से यह भी कह देते हो कि वो न मिली तो मर जाऊंगा। प्रेम के इस स्तर की जब अति हो जाती है तो यह सुनने को मिलता है कि वो सिर्फ़ मेरी है। मेरी नहीं हुई तो किसी की नहीं होगी।

इतनी हिम्मत से घर में रखे वीडियो गेम पर भी तुम हक़ नहीं जताते। इतनी हिम्मत तब भी नहीं आती है जब पापा से गाड़ी की चाबी मांगनी हो, पर उस लड़की पर तुम्हारा अचानक ही मलिकाना हक़ हो जाता है और ये भी तब जब उस लड़की को पता भी न हो कि तुम उसे पसंद करते हो।

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फिर जब तुम्हारा यह तथाकथित प्रेम पराकाष्ठा तक पहुंच जाता है तो उस लड़की को सबकुछ बताने की ज़हमत उठाते हो। और हां, तुम्हें ‘ना’ सुनना नहीं पसंद। यहां तुम्हारी ही मनमानी चलेगी। पहले उसे खूब एहसास दिलाते हो कि तुमसे ज्यादा खुश उसे कोई नहीं रखेगा। फिर भी अगर लड़की ने मना कर दिया तो देवदास बन जाते हो। पर देवदास बनने के लिए जिगर चाहिए, सबके बस की बात वो भी नहीं। सो तुम अब फिल्म ‘अंजाम’ के विजय बन जाते हो। तुम्हारा ईगो हर्ट होता है और उसके बाद अगर तुम्हारी ही भाषा में कहूं तो तुम ‘अपने बाप की भी नहीं सुनते’।

तुम्हारा निर्माण पंचतत्वों से नहीं हुआ। छठा तत्व भी शामिल है, ईगो। और XXL साइज़ का ये ईगो सर्वोपरि है। इसे तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। हमारा क्या है? ज्यादा से ज्यादा आत्मसम्मान ही तो है। उसे ठेस पहुंचाने से वैसे भी कोई नहीं चूकता इसलिए हमारा आत्मसम्मान तुम्हारे इस ईगो से बहुत छोटा है।

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तो तुम्हें वो लड़की चाहिए, हर हाल में। पर क्या करें? उस लड़की को तुम नहीं पसंद। उसकी भी पसंद-नापसंद है न। तुम और तुम्हारे दोस्त उसे चाहें कितना भी कठपुतली समझते रहो पर वो भी ज़िंदा है न! और तुम्हारी बद्किस्मती ये कि वो कहीं बिक भी नहीं रही जो तुम उसे खरीद सको। ख़ैर, कई बार तो तुम जैसे आशिकों की हालत एक बनियान खरीदने की भी नहीं होती पर लड़की वाला मामला साख़ का सवाल बन जाता है। वो साख जो सिर्फ़ तुम्हारी कल्पना में है।

तो अब तुम क्या करोगे? लड़की तुम्हारी हुई नहीं। दोस्त तुम्हें चिढ़ाते हैं। लड़की से ज़बरदस्ती करते हो तो शिकायत भी करती है। लो, उस लड़की ने तुम्हारी इज़्ज़त ख़ाक में मिला दी! अब तुम उसे सबक सिखाओगे। ब्रम्हा ने जब सृष्टि की रचना की थी तब सबक सिखाने का काम तुम्हें ही सौंपा था। तुम्हारे पास विकल्प की कोई कमी नहीं है। चाहो तो रेप कर दो, चाहो तो एसिड फेंक दो। दोनों ही हालत में नैतिकता से लदा ये समाज उसे नहीं पूछेगा और तुम्हारा वो सपना सार्थक हो जाएगा कि तुम्हारी नहीं तो किसी की नहीं।

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इससे भी मन न भरे तो मार डालो। उसके जान की कीमत ही कितनी है। टेंशन होती हैं ये लड़कियां! गर्भ में पलती हैं तब भी, देर तक घर से बाहर रहती हैं तब भी। तो तुम उसे जान से मार दो, इसके लिए तुम्हें किसी गली या कोने की ज़रूरत नहीं। बुराड़ी (दिल्ली) में ही देख लो, दिन-दहाड़े सड़क पर उस 22 वर्षीय लड़की को 22 बार चाकू मारा गया। मारने वाला कोई बच्चा नहीं था, 34 वर्ष का आदमी था, सुरेंद्र सिंह। वो लड़की एक ट्रेनिंग सेंटर में कम्प्यूटर क्लासेज़ लेती थी जिसका मालिक सुरेंद्र था। एक साल से ये सब चल रहा था। छः महीने पहले उसने शिकायत भी दर्ज की। पुलिस ने दोनों के परिवारों को बुलाया और मामला सुलझा लिया। अपना काम कम करने के लिए पुलिस अक्सर ही गांधीगिरी का पाठ पढ़ाती है। सुरेंद्र उसके बाद काफी दिनों तक शांत रहा। आज अचानक से मर्दांगी जागी और 22 बार चाकू घोंपकर वीर बन गया।

वो लड़की ज्यादा से ज्यादा तीसरे या चौथे वार में ही मर गई होगी। उसके बाद उसकी लाश को चाकू मारा गया। उसके बाद वो वार नहीं क्षोभ था, हवस थी। उस लड़के की तृष्णा थी जिसकी वो तृप्ति कर रहा था।

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सिरफिरे आशिक़ों! तुम्हें क्या लगता है? प्रेम सिर्फ़ तुम करते हो? हमारे हिस्से सिर्फ़ बेवफ़ाई का ठप्पा है? हम कुछ महसूस नहीं करते? तुमने हमें पसंद किया तो हम तुम्हारे हो जाएं, हमें तुम नहीं पसंद तो हमारी इच्छा का कुछ भी नहीं! प्रेम को तो तुम नहीं समझोगे पर अगर इस पसंद को भी समझते हो तो इतना ही समझो कि तुम हमें पसंद कर के पाने के लिए पागल रहते हो तो हम तुम्हें नापसंद कर तुमसे दूर क्यों न रहें? आखिर मामला तो वही है, पसंद-नापसंद का।

मुझे ऋतिक रोशन बहुत-बहुत पसंद हैं। सुशांत सिंह राजपूत की फोटो भी दिख जाए तो बिना छुए नहीं गुज़रती। दोनों में से कोई नहीं मिल सकता बताओ क्या करूं? मैं जिसे पसंद करती हूं वो किसी और को पसंद करता है। बहुत तक़लीफ़ होती है, घुटन होती है। क्या करूं? चाकू मार दूं? एसिड फेंक दूं ताकि वो दूसरी लड़की का ख्याल भी दिमाग से निकाल दे?

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हम ऐसा कुछ क्यों नहीं कर पाते? तुम इतने बहादुर कैसे बन जाते हो कि अपने ‘प्रेम’ का ये हश्र कर के उसका त्याग कर दो। प्रेम क्या है ये समझाना नहीं चाहती, तुम वो समझने लायक नहीं हो। पर हम तुम्हारी प्रॉपर्टी नहीं हैं, ये बात समझने में तुम्हें और कितने साल लगेंगे आज ही बता दो। हम उस दिन का इंतज़ार कर लेंगे।

तुम्हारी इन हरकतों से कई बार दो-चार हो चुकी एक लड़की…

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युवा महिला पत्रकार रीवा सिंह अमर उजाला डॉट कॉम से संबद्ध हैं. उनका यह लिखा उनकी एफबी वॉल से लिया गया है.

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0 Comments

  1. santosh pyasi

    September 23, 2016 at 12:16 pm

    kadwa sach, jise har daur main andekha kiya gaya aur abhi bhi kiya ja raha hai. is sundar prastuti ke liye badhai.

  2. Parkash C Sharma

    September 22, 2016 at 3:54 am

    bilkul satya, im salut this girl.
    its small latter but big massage for Generation .

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