केपी सिंह-
केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की तुनुक मिजाजी मोदी सरकार की छवि पर भारी पड़ रही है। इसी तुनुक मिजाजी के कारण उन्हें पहले शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी से हटाया गया था। उस समय उनका डिग्री विवाद भी खूब छिड़ा। सवाल किये गये कि विश्वविद्यालयों में मनमानी करने वाली स्मृति ईरानी की खुद की शिक्षा कितनी है। वे सूचना प्रसारण मंत्रालय में आयीं तो उनकी पत्रकारों से नहीं पटी।
आजकल वे अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की मंत्री हैं जिसमें अरबों रुपये का छात्रवृत्ति घोटाला सामने आ गया है। स्मृति ईरानी का गुस्सा फिलहाल तब से ज्यादा भड़क रहा है जबसे कई सर्वे में यह बताया जा रहा है कि अगर राहुल गांधी ने फिर अमेठी में जोर आजमाइश की तो स्मृति ईरानी को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ेगी। स्मृति ईरानी को इन खबरों ने इतना व्याकुल कर दिया है कि वे भाजपा के समर्थक कहे जाने वाले पत्रकारों के भोले सवालों को भी तंग करने वाला मानकर आपा खो देतीं हैं।
हाल में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जेबी एंकर माने जाने वाले सुधीर चैधरी को टमाटर की महंगाई से जुड़े एक सीधे साधे सवाल पर जमकर बेइज्जत किया। स्वामी भक्त सुधीर को इससे कितनी तकलीफ हुयी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन देशभर का पत्रकार जगत उनकी इस हरकत से आहत हुआ और इसे लेकर उनके विरूद्ध जबर्दस्त प्रतिक्रियाऐं सामने आयीं। इसके पहले रायबरेली में दैनिक भास्कर के एक स्ट्रिंगर के सवाल से उनका पारा इस कदर चढ़ गया था कि उन्होंने स्ट्रिंगर की नौकरी खत्म करा दी थी।
स्मृति ईरानी के कारण भास्कर के प्रबन्धन को ही यह कहने को मजबूर होना पड़ा था कि उसका उनके अखबार से कोई संबन्ध नहीं है। सुधीर चैधरी के अलावा एक वरिष्ठ महिला एंकर के सहज सवाल को उन्होंने जुर्रत की तरह ले लिया। उन्होंने कहा भी कि आप ऐसा सवाल करके दुस्साहस कर रहीं हैं। चर्चा है कि स्मृति ईरानी सुधीर चैधरी और उस महिला पत्रकार को उनके चैनलों से बाहर करवाने पर आमादा हैं। सत्ता में बैठने के बाद किसी को इतना मद नहीं आना चाहिए और अगर किसी को सत्ता पाकर मतवाला हो जाने की बीमारी ही हो तो उसकी पार्टी का नेतृत्व क्या इलाज करे इसे लेकर इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया को हटाये जाने का प्रसंग स्मरण आ जाता है।
जगन्नाथ पहाड़िया कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार थे। सामंतों का प्रदेश कहे जाने वाले राजस्थान में 1980 में वे वहां के पहले दलित मुख्यमंत्री बनाये गये तो यह बदलाव का एक बड़ा प्रयोग रहा। जगन्नाथ पहाड़िया कुल मिलाकर बेहतर तरीके से राजस्थान को चला रहे थे। इन्दिरा जी भी उनसे खुश थी। उनकी राजनीतिक सूझ बूझ और प्रशासनिक क्षमता भी स्वयं सिद्ध थी। यह बाद में भी उनके द्वारा कई चुनाव जीतने और केन्द्रीय मंत्री व राज्यपाल के पद की जिम्मेदारियों के शानदार निर्वहन से प्रमाणित हुआ।
किस्सा कोताह यह कि जगन्नाथ पहाड़िया को जयपुर में साहित्यकारों के एक सम्मेलन में बुलाया गया जिसमें महादेवी वर्मा भी आयीं हुयीं थीं। महादेवी वर्मा ने इन्दिरा गांधी के इमरजेंसी लगाने के फैसले का विरोध किया था और इसके कारण उनके द्वारा रात्रि भोज में बुलाये जाने को भी स्वीकार नहीं किया था। जगन्नाथ पहाड़िया को यह बातें मालूम थीं इसलिये उन्होंने यह अंदाज लगा लिया कि अगर वे महादेवी वर्मा का मंच से मानमर्दन करेंगे तो इन्दिरा जी उनसे खुश होंगी।
इस गलतफहमी में उन्होंने अपने भाषण में महादेवी वर्मा के लिये आपत्तिजनक टिप्पणियां कर डालीं। उन दिनों साहित्यकार पत्रकार रीढ़ वाले होते थे और सत्ता की गुस्ताखी का प्रसंग सामने आने पर सामने ही तीखा प्रतिवाद करने से नहीं चूकते थे। सो जब महादेवी वर्मा की कविता पर जगन्नाथ पहाड़िया ने अनर्गल कटाक्ष किये तो वहां मौजूद साहित्यकारों ने उनके मुंह पर ही विरोध शुरू कर दिया।
बाद में साहित्यकार सीधे इन्दिरा जी से मिले और उन्हें जगन्नाथ पहाड़िया की करतूत के बारे में बताया। आज कोई साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी कितना भी महान हो अगर धोखे से भी उसने मोदी की आलोचना की होगी तो मोदी उसका लिहाज नहीं कर पायेंगे। पर इन्दिरा जी ने इस मामले में हमेशा की तरह बड़प्पन दिखाया। उन्होंने यह भूलकर कि महादेवी जी उनकी आलोचक हैं, साहित्य में उनके विराट कद के नाते जगन्नाथ पहाड़िया की उन पर टिप्पणी को काफी नागवार मानते हुये पहले तो कार्यक्रम का टेप रिकार्डर मंगाकर सुना ताकि पुष्टि हो सके कि सचमुच पहाड़िया ने कुछ गलत कहा है और इसके बाद पहाड़िया को तत्काल अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपने का संदेशा भिजवा दिया।
इस तरह एक साहित्यकार के सम्मान के लिये इन्दिरा जी ने अपने चहेते मुख्यमंत्री को मात्र 13 महीने में एक झटके में विदाई दे दी।
लेकिन क्या मोदी ऐसा बड़प्पन दिखा सकते हैं। बिल्कुल नहीं। उन्हें टुच्चे पत्रकारों, साहित्यकारों के लिये अपने किसी सहयोगी को हटाना तो दूर डपटना तक मंजूर नहीं हो सकता। हालांकि प्रधानमंत्री खुद भी स्मृति ईरानी की बदमिजाजी से नाराज हैं इसलिये उनसे महत्वपूर्ण मंत्रालय छीने गये। पर प्रधानमंत्री को भी इतना अहं है कि वे नहीं चाहते कि उनका कहीं झुकना प्रदर्शित हो। उन्होंने इस बात को भुला दिया है कि कई अफसरों पर किसी बड़े का झुकना उसे और ज्यादा बड़ा बना देता है। काश उनका कोई सलाहकार उन्हें ऊंचा होते रहने की इस कला से अवगत कराये।