श्याम मीरा सिंह-
मैं देख रहा हूं कुछ लोग दैनिक भास्कर की कुछ पुरानी तस्वीरें शेयर कर रहे हैं. उनकी बात जायज़ है. इस पर जमकर बात होनी चाहिए. मगर ये वक्त एक साथ खड़े होने का है. एक आवाज़ में बोलने का है, एक नारा लगाने का है. एक सवाल उठाने का है.
आज दैनिक भास्कर ने एक राह चुनी है. तब उसे गले लगाने की ज़रूरत है. उसे बचाने की ज़रूरत है. उसने जनता का पक्ष चुना है. इसी कारण आज वो संकट में है. मुसीबत के समय खिंचाई करने का मतलब है आप शोषक के साथ खड़े हैं.
हम लोगों की प्रॉब्लम यही है कि अगर किसी की तारीफ़ कर दी तो उसकी बुराई वाले स्क्रीनशॉट्स की झड़ी लगा देंगे. दैनिक भास्कर ही नहीं, हम हर उस टीवी एंकर, टीवी चैनल, अख़बार के साथ खड़े हैं जो इस सांप्रदायिक सरकार से लड़ाई में हमारे साथ आए. अपना कुनबा बढ़ाओ, ख़त्म करने मत लग जाओ.
भाजपा के साथ ये टीवी एंकर, टीवी चैनल, अख़बार कोई एक दिन में इकट्ठा नहीं हो गए. अर्नब गोस्वामी तो CM योगी के बारे में क्या क्या नहीं बोलता था. लेकिन आज वही उनके काम आ रहा है तो भाजपा पाल रही है. कल कुछ बोलेगा तो लतिया भी देगी. आप भी पालना और लतियाना सीख लीजिए.
टीवी चैनल आपकी वाहवाही से या I stand with You से नहीं चलते. पैसे बिना आप अपना पेट नहीं पाल सकते, हज़ार आदमियों को नौकरी देने वाले अख़बार और टीवी चैनल कैसे पाल लेंगे? पैसा आता है सरकार से. सरकारी विज्ञापन से. कोई अगर उसे छोड़कर आपके पास आ रहा है तो माला पहनाइए. सदस्यता ग्रहण कराइए.
वो मुसीबत में हो तो उसके साथ खड़े हो जाइए. ताकि बाक़ी लोग भी आपके कुनबे की तरफ़ देखें, बाक़ी लोग भी आएँ. बाक़ी टीवी चैनलों, अख़बारों को भी लगे कि इधर भी आया जा सकता है. ताकि उनको भी लगे कि बिना सरकार और मोदी के भी बिजनेस चलाया जा सकता है.
भास्कर पिछले लंबे समय से बिना सरकारी सपोर्ट के आपकी खबरें लिख रहा है. आप उसे क्या देते हैं? जो अख़बार 19 रुपए का आता है आप उसे चार रुपए देते हैं. इसलिए ये स्क्रीनशॉट स्क्रीनशॉट बंद कर दीजिए, आप खुद कुछ करते नहीं. लेकिन जब साथ बोलने की ज़रूरत आन पड़ती है तो स्क्रीनशॉट दिखा देते हैं.
भास्कर का क्या है उसे अपना अख़बार निकालना है, हज़ारों कर्मचारियों की तनख़्वाह देनी है. उसे क्या ज़रूरत है सरकार के ख़िलाफ़ बोले. वो फिर से चला जाएगा उस कुनबे में, फिर आइटी रेड छोड़िए, उसे पद्म श्री भी मिलेंगे, सम्मान भी मिलेगा, पैसा भी मिलेगा, सुरक्षा भी मिलेगी. इसमें भास्कर का नुक़सान नहीं है. छापा भास्कर पर नहीं पड़ रहा. आपकी खबरें छापने वाले अख़बार पर पड़ रहा है. इस अंतर को समझिए.
भास्कर तो उधर चला जाएगा. लेकिन आप फिर किसी पोर्टल पर खबरें लिखवाते फिरना. गाँव गाँव तक खबरें पहुँचाने वाला भास्कर को खोकर, सिर्फ़ पोर्टल पाएँगे. वे अख़बार और टीवी चैनल जो आपकी तरफ़ आने की कोशिश भी करेंगे, वे उधर ही मोदी गुणगान में लगे रहेंगे. क्योंकि उन्हें पता है कि भास्कर के साथ कोई नहीं बोला तो ये लोग हमारे लिए क्या बोलेंगे. न्यूट्रल पत्रकार भी कीबोर्ड पर खबर छापता रहेगा. मालिक भी मोदी जी की हाँ में हाँ मिला देगा.
आपके पास बचेगा झुनझुना. वही झुनझुना जिसे आप पिछले सात साल से बजा रहे हो कि “मीडिया तो बिक चुका है”. पत्रकार को पत्रकार तब बनाना, जब पहले खुद जनता बन लो.
अवनीश
July 22, 2021 at 7:20 pm
भाई आपने अपनी बात बहुत बेहतर ढंग से कही है।