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खबरें, फोटो और खाली बची जगह, बन गया अखबार

आज खबरें नहीं थी फिर भी अंडमान निकोबार द्वीप समूह का नाम बदलने वाली खबर लीड नहीं बनी। क्रिकेट में मेरी दिलचस्पी नहीं है इसलिए मैंने पहले पेज पर खबर होने के बाद भी ध्यान नहीं दिया। आज क्रिकेट की खबर भी लीड हो सकती थी। हालांकि, ये दोनों खबरें ऐसे छपतीं तो और अच्छा होता। शीर्षक इंदौर के दैनिक, प्रजातंत्र से अलग, “नाम बदलने वाले और काम करने वाले दो आक्रामक कप्तान” भी हो सकता था। प्रधानमंत्री ने अपनी यह फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर की थी। टेलीग्राफ ने भी इसे पहले पन्ने पर छापा है। टेलीग्राफ का विवरण पढ़ने लायक है। इसके मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस की फोटो और एक लाइन का कैप्शन भी ध्यान देने लायक है। टेलीग्राफ ने प्रजातंत्र ने जिस फोटो को पहले पन्ने पर छापा है उसे इंडियन एक्सप्रेस ने नाम बदलने की खबर के साथ अंदर छापा है और इंडियन एक्सप्रेस ने जो फोटो पहले पन्ने पर छापी है उसे टेलीग्राफ ने नाम बदलने की खबर के साथ एक कॉलम में छोटी सी छापी है। वैसे तो सारा खेल विज्ञापन के बाद (या विज्ञापन नहीं होने पर) बची जगह भरने का है पर खेल दिलचस्प हो जाता है।

इंदौर का दैनिक प्रजातंत्र
द टेलीग्राफ पहले पेज पर फोटो और विवरण

टेलीग्राफ ने जो लिखा है उसका अनुवाद
जल्दी बताइए, क्या आप उनका दिमाग पढ़ सकते हैं?

अगर आपके विचार खुद प्रधानमंत्री की तरह ही देशभक्तिपूर्ण हैं तो आप सही हैं. नरेन्द्र मोदी ने इतवार की सुबह इस विवरण के साथ पोर्टब्लेयर से यह तस्वीर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट में पोस्ट की है : “खुबसूरत पोर्ट ब्लेयर में में एक सुबह …. सूर्योदय जल्दी हुआ और परंपरागत परिधान.”

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इसके बाद पता चला कि उनके दिमाग में क्या चल रहा था : “हमारी आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वाले स्वतंत्रता संघर्ष के महान वीरों के बारे में सोच रहा हूं.”

सेल्यूलर जेल में मोदी ने हिन्दुत्व विचारक वीर सावरकर को जिस सेल में रखा गया था वहां बैठकर उन्हें याद किया और श्रद्धांजलि दी। 1913 में सावरकर ने एक अपील में लिखा था : ” ….. इसलिए अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा, जो कि विकास की सबसे पहली शर्त है.”

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इंडियन एक्सप्रेस पहले पेज पर
इंडियन एक्सप्रेस में नाम बदलने की खबर के साथ

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