इटावा। सैफई के सुघर सिंह पत्रकार ने अमर उजाला समाचार पत्र में फर्जी खबर छापने का आरोप लगाकर अमर उजाला के मालिक राजुल माहेश्वरी, प्रधान संपादक उदय सिन्हा, प्रकाशक मुद्रक रविन्द्र सुपेकर, संपादक विजय त्रिपाठी, कानपुर नगर के क्राइम रिपोर्टर सूरज शुक्ला व वाचस्पति पांडेय के विरुद्ध इटावा न्यायालय में परिवाद दर्ज कराया है। न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 16 सितंबर तय की है।
सैफई के सुघर सिंह पत्रकार ने बताया कि अमर उजाला में उन्होंनने सैफई के संवाददाता पद पर लगभग 15 साल से अधिक समय तक काम किया और लाखों रुपए का अमर उजाला को विज्ञापन भी दिया। इसके बावजूद अमर उजाला ने पुलिस के कहने पर मेरे विरुद्ध फर्जी व मनगढ़ंत खबर छापी जिसका कोई आधार नहीं है।
इस खबर को छापने से मेरी समाज में बहुत बदनामी हुई है। इसलिए अमर उजाला के निदेशक राजुल माहेश्वरी, प्रकाशक/मुद्रक रविन्द्र सुपेकर, प्रधान संपादक, विजय त्रिपाठी संपादक कानपुर, क्राइम रिपोर्टर बाचस्पति पांडेय, सूरज शुक्ला, पर इटावा न्यायालय में परिवाद दर्ज कराया है।
सुघर सिंह ने बताया के अमर उजाला में छपी खबर में उन्हें फर्जी दरोगा और फर्जी पत्रकार बनकर वसूली करने वाले गिरोह का सरगना, शातिर बदमाश बता दिया। मेरे पास से प्रेस के कई आई कार्ड बरामद दिखाए और तमंचा भी बरामद दिखाया जब कि मेरे पास कोई तमंचा बरामद नहीं हुआ। मेरी गाड़ी में असलहों का जखीरा दिखा दिया। खबर में मेरी बोलेरो गाड़ी पर काली फिल्म लगी दिखाई गई जबकि मेरी गाड़ी पर ना ही काली फिल्म थी और ना ही काली फिल्म में गाड़ी का चालान हुआ था।
यही नहीं अमर उजाला के क्राइम रिपोर्टरों ने इंस्पेक्टर और सिपाहियों से मेरी बहस भी दिखा दी जबकि इंस्पेक्टर और सिपाही से मेरी कोई बहस नहीं हुई क्योंकि इंस्पेक्टर मुझे पिछले कई सालों से जानता था।
थाना नजीराबाद के इंस्पेक्टर मनोज रघुवंशी ने फोन करके मुझे खुद साजिशन बुलाया और चौराहे पर गाड़ी रोक ली। थाने ले जाकर फर्जी चालान करके जेल भेज दिया। जेल भेजे जाने के समय मेरे मुकदमे के विरोधी भी थाने में मौजूद थे।
मैं डीजीपी से मिलकर लौट रहा था। लौटते समय इंस्पेक्टर का फोन आया। बताया गया कि सीओ नजीराबाद गीतांजलि सिंह बुला रही हैं। मेरे द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमे की विवेचना सीओ नजीराबाद ने की थी। इसमें अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट भी चली गई थी। उन्हीं अभियुक्तों ने मिलकर पुलिस से मिलकर फंसाया।
अखबार वालों ने भी जानबूझकर फर्जी खबर प्रसारित की जिससे मेरी समाज में बदनामी हुई है। अमर उजाला ने लिखा है सुघर सिंह रात को पुलिसकर्मी बनकर दबिश देता था, लोगों को पकड़ता था और उनको छोड़ने के लिए पैसा वसूलता था ब्लैकमेलिंग करता था जो पूरी तरह फर्जी खबर थी। ऐसे आरोपों का जिक्र विवेचना, चार्जशीट में पुलिस ने भी नहीं किया है। अमर उजाला में जो खबर छपी है उसमें लगभग सभी तथ्य जांच में फर्जी पाए गए। पुलिस ने चार्जशीट में भी उन तथ्यों का जिक्र नहीं किया है। अमर उजाला ने मुझे गिरोह का सरगना बता दिया और शातिर बदमाश बता दिया जबकि सारी बातें विवेचना में झूठी पाई गईं।
सुघर सिंह पत्रकार ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई पत्रकार संगठनों से जुड़े हैं। मेरी खबरें प्रदेश के बड़े अखबारों में मेरे नाम से छपती रहती हैं। कई बार सम्मानित किया जा चुका हूं। इसके बावजूद भी अमर उजाला ने उनका पक्ष जानना जरूरी नहीं समझा। अमर उजाला ने जो खबर छापी है उसके तथ्यों का जिक्र ना ही पुलिस द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में है ना ही अधिकारियों की प्रेस वार्ता में। ना ही इस संबंध में कोई वीडियो जारी किया गया। ना ही किसी अधिकारी के बयान में इसका जिक्र है। ना ही पुलिस द्वारा कोर्ट भेजी गई चार्ज शीट में जिक्र है। ना ही पुलिस द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में जिक्र है। जब पूरी खबर ही फर्जी है तो क्यों ना अमर उजाला के खिलाफ सख्त कार्रवाई कराई जाए ताकि आगे भविष्य में किसी के खिलाफ झूठी खबर न छापें।
सुघर सिंह पत्रकार ने कहा है कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और जल्द ही न्याय मिलेगा। फर्जी खबर छापने वाले अखबार मालिक, संपादक, प्रकाशक, दो क्राइम रिपोर्टरों के खिलाफ माननीय न्यायालय कार्यवाही करेगा, ऐसी उम्मीद है।