कायदे से देखा जाए तो एक नौकरीपेशा महिला की गैंगरेप के बाद जघन्य तरीके से हत्या के असली अपराधी लखनऊ के लॉ एंड आर्डर कंट्रोल करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रवीण कुमार हैं. जब बिल क्लिंटन जैसे शख्स के आने को लेकर चहुंओर पुलिस सुरक्षा मुस्तैद थी तो यह घटना कैसे हो गई. लोग कह रहे हैं कि आईपीएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में पुलिसिंग कभी जनपक्षधर नहीं रही है. यह शख्स हमेशा सत्ता और नेताओं के इशारों पर काम करता है और इसकी इसी ‘खासियत’ के कारण यह मायावती राज में भी प्रमुख पदों पर था और अब सपा राज में नोएडा, मुजफ्फरपुर के बाद लखनऊ का पुलिस कप्तान बना बैठा है. छोटे-मोटे पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर मामले को शांत कराने में तत्पर यूपी सरकार अगर सचमुच चाहती है कि इस जघन्य निर्भया कांड के लिए न्याय दिया जाए तो दो काम तत्काल अनिवार्य है. पहला लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को सस्पेंड करो, इनके क्रियाकलापों की जांच कराओ और रेपिस्टों को पकड़ कर ट्रायल कोर्ट के जरिए शीघ्र से शीघ्र फांसी पर लटकाओ. ये सारी बातें फेसबुक पर की जा रही हैं. आइए देखते हैं फेसबुक पर लखनऊ निर्भया कांड को लेकर क्या बातें हो रही हैं.
दैनिक जागरण, भड़ास4मीडिया समेत कई जगहों पर काम कर चुके और इन दिनों लखनऊ से प्रकाशित डीएनए अखबार में काम कर रहे पत्रकार Anil Singh लिखते हैं- ”राजधानी में बढ़ते अपराध के लिए एसएसपी जिम्मेदार क्यों नहीं! राजधानी की कानून व्यवस्था ही ध्वस्त है तो राज्य के अन्य जिलों का हाल क्या होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं है. लखनऊ अपराधियों के सुरक्षित जोन में बदल चुका हैं, क्योंकि यहां के एसएसपी को कानून व्यवस्था की नहीं अपने आकाओं को खुश रखने की चिंता ज्यादा रहती है. पिछले चार दिनों में कई हत्या तथा लूट के बाद परंपरागत तरीके से छोटे अधिकारी और थानेदार शिकार कर लिए गए, लेकिन कानून व्यवस्था संभालने के लिए जिम्मेदार एसएसपी अब भी आराम से नौकरी कर रहा है. अगर सरकार संवेदनशील होती तो अब तक एसएसपी को सस्पेंड करते हुए प्रदेश भर के अधिकारियों को संदेश दे चुकी होती, कि उसके लिए आम नागरिक की सुरक्षा ज्यादा मायने रखती है. मुंहलगे अधिकारी नहीं. पर सरकार इतना सोच भी नहीं पाती है. लखनऊ में इंदिरानगर में लूट, चकगंजरिया के जंगल में दो अज्ञात लोगों के फांसी पर लटकते मिले शव, मोहनलालगंज में वीभत्स तरीके से विधवा की गैंगरेप के बाद हत्या, काकोरी में विवाहिता की हत्या समेत दर्जनों ऐसे मामले हैं, जो कानून व्यवस्था के प्रति अपराधियों में खौफ कम होने तथा पुलिस का इकबाल खतम होने को तस्दीक करते हैं. हर संवेदनशील व्यक्ति इन घटनाओं के चलते ऊपर से लेकर नीचे तक हिला हुआ है, लेकिन सपा सरकार शायद इतनी संवदेनशील नहीं है कि राजधानी के किसी बड़े अधिकारी को अपनी जिम्मेदारी ठीक से ना निभाने के लिए कठोर कार्रवाई कर पूरे प्रदेश में संदेश दे. जाहिर है जहां इन अधिकारियों से अपने हित साधने-सधवाने हों, वहां जनता के प्रति संवदेनशीलता की उम्मीद कैसे की जा सकती है. आगे भी कोई घटना होगा तो दारोगा-इंस्पेक्टर ही शिकार किए जाएंगे, ये अधिकारी नहीं. अधिकारियों का शिकार केवल खनन रोकने और गलत काम न करने पर ही किया जाएगा. जय समाजवाद”
वहीं, अमर उजाला, मेरठ में कार्यरत पत्रकार Rajneesh Sharma लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को सस्पेंड करने की मांग संबंधी एक एफबी पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखते हैं: ”एसएसपी प्रवीण कुमार को सस्पेंड करने की बात तो छोड़ो. ऐसे आदमी को तो नौकरी से निकाल देना चाहिए क्योंकि ऐसे अफसर समाज के लिए कलंक होते हैं. उससे ज्यादा यूपी सरकार कलंकित हो चुकी है.”
जनयुग डाट काम नामक वेबसाइट पर ‘लखनऊ का एसएसपी प्रवीण कुमार काफी कलाकार आदमी है‘ शीर्षक से एक खबर प्रकाशित हुई है. खबर में वेबसाइट के संपादक डा. आशीष वशिष्ट लिखते हैं- ”लखनऊ में अपराधियों के सुरक्षित जोन में बदल चुका हैं, क्योंकि यहां के एसएसपी को कानून व्यवस्था की नहीं अपने आकाओं को खुश रखने की चिंता ज्यादा रहती है। पिछले चार दिनों में कई हत्या तथा लूट के बाद परंपरागत तरीके से छोटे अधिकारी और थानेदार शिकार कर लिए गए, लेकिन कानून व्यवस्था संभालने के लिए जिम्मेदार एसएसपी अब भी आराम से नौकरी कर रहा है…. मोहनलालगंज में घटी घटना ने अवाम को अंदर तक हिला दिया है। सोशल मीडिया पर देश की जनता का गुस्सा, आक्रोश और नाराजगी छलक रही है।”
जनयुग डाट काम वेबसाइट में भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की प्रतिक्रिया प्रकाशित की गई है, जो इस प्रकार है… ”उफ… कोई शब्द नहीं है… लखनऊ के हर महिला पुरुष को सड़क पर उतर जाना चाहिए… अब किस दिन का इंतजार कर रहे हो… बिकाऊ मीडिया वाले बिकने तक खबर तान कर दिखाएंगे, फिर माल मिलते ही नए मुद्दे पर शिफ्ट हो जाएंगे…. बातें खूब हो रही हैं, वक्त भी बदल रहा है लेकिन ऐसे वीभत्स कांड रुक नहीं रहे… कुछ एक मामलों में रेपिस्टों को सीधे फांसी देने पर शायद बाकियों में भय समा जाए… उत्तर भारत के चरम सामंती समाज में सोच वही पहले वाली है… स्त्री माल की तरह है… घर की है तो अंदर रखो, बंद करके.. पराई है तो खुलेआम सामूहिक रूप से भोगो, पीटो, बांटो…. दुर्भाग्य है कि उत्तर भारत में जनता की चेतना का स्तर जैसा है, वैसी ही सरकारें भी राजकर रही हैं.. लखनऊ का एसएसपी प्रवीण कुमार काफी कलाकार आदमी माना जाता है। ‘इसका अपराध उसके सिर’ मढ़कर फर्जी तरीके से मामले खोलता रहा है… वह सत्ताधारी बड़े लोगों के दबाव और इशारे पर ही काम करता है, अपने विवेक इस्तेमाल न के बराबर करता है… उम्मीद करिए कि इस मामले में असली रेपिस्ट मर्डरर पकड़े जाएंगे।”
लखनऊ के युवा पत्रकार सचिन त्रिपाठी फेसबुक पर लिखते हैं: ”मोहनलालगंज के बलसिंह खेडा में कल खूब भीड़ उमड़ी आज धरने प्रदर्शन भी हुए पर रात 12 बजे उस रेप पीडिता के अंतिम संस्कार पर 15-16 लोग ही थे। पांच छह लोग पीडिता के घर वाले, मुझे मिलाकर 6 या सात मीडियाकर्मी श्मशान के कर्मचारी। हां दो बार फोन करने के बाद दो मिनट के लिए चार पुलिस वाले भी आये थे। इतना भी न हुआ उनसे इंसानियत के वास्ते ही रुक जाते। हमारे मुख्यमंत्री तो रोजा इफ्तार के बहाने मुस्लिम वोटर को साधने में लगे हुए थे। मौत से जूझने वाली वह युवती का शरीर रात के सन्नाटे में राख हो गया आसमान से भी आंसू के कुछ बूंद ही टपके। लोग रात भर आराम करने के बाद कल से फिर राजनीती की शुरुआत कर देंगे…. राजा हरिश्चन्द्र वाकई में इमानदार थे आज के वाकये के बाद मुझे शक हो रहा है। मुझे लगता कि श्मशान में काम करते करते उनकी संवेदनाएं मर गयी होंगी इसीलिये अपने बेटे के अंतिम संस्कार के लिए उन्होंने पत्नी से पैसे मांगे थे। बलात्कार पीडिता के घर वालों से सबको सहानुभति थी पर श्मशान कर्मी अपनी आदत से बाज नही आये जितने पैसे बनते थे उससे 500 ज्यादा लेने की जिद पर अड़े थे। मेरे ओर एक और मीडियाकर्मी मित्र के कहने सुनने के बाद निर्धारित दर से केवल 100 रूपये ज्यादा पर बात बनी। गलती उनकी क्या कहें शायद लाश जलाते जलाते संवेदनाएं भी जला बैठे हैं।”
बस्ती के युवा पत्रकार रिंकू दुबे की फेसबुक वॉल से- ”मोहनलालगंज के एक गांव में दरिंदों ने जिस बेरहमी से महिला को दुराचार के बाद कत्ल किया, निजाम की खोती संवेदनशीलता उससे कम बेरहम नहीं है। सृष्टि की शुरूआत से ही जीवन व मौत, दो ऐसे विषय हैं जो मानव को सर्वाधिक संवेदनशील करते हैं। इनके बीच चलने वाला हर घटनाक्रम महज साधन होता है, साध्य नहीं। लेकिन अफसोस कि हम जिस जम्हूरियत के निजाम में रहते हैं वह इन दोनों के प्रति अपनी संवेदना खोता जा रहा है। मोहनलालगंज के एक गांव में दरिंदों ने जिस बेरहमी से महिला को दुराचार के बाद कत्ल किया, निजाम की खोती संवेदनशीलता उससे कम बेरहम नहीं है। दो दिन की सरकारी व प्रशासन की गतिविधियों पर नजर डालने से यह बात और साफ हो जाती है। अपने कातिलों से जूझने वाली बहादुर महिला के पार्थिव पर दो गज कपड़ा डालने की जगह कई जिम्मेदार लोग मोबाइल से उसकी फोटो खींचने में जुटे थे। आखिर यह किस बात का प्रतीक है? यही कि शरीर से जीव तत्व निकलने के बाद भी कुछ सैडिस्ट हर संभव क्षण तक दूसरों को हुई पीड़ा से अपने कुंठित मन को आनंदित करने से वंचित नहीं होना चाहते। इस घटना से समाज का और स्याह पक्ष शिद्दत से सामने आया है। देखने में यह आ रहा है कि जिस हिंसा का स्वरूप कभी आवेशात्मक होता था वह अब मनात्मक होता जा रहा है। व्यक्ति ठंडे मन से सोच-विचार कर योजना के साथ हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम दे रहा है। समय रहते समाज को इससे पार पाने के उपाय सोचने होंगे, नहीं तो धीरे-धीरे यह हिंसा भाव हमारे मानस को खोखला कर देगा। आधुनिकता का मतलब दरिंदा बन जाना नहीं है। इसलिए ज्यादा जरूरी है कि लोगों को जागरूक किया जाये, लोगों के अंदर बढ़ रही हैवानियत को समाप्त करने के लिए आवश्यक उपाय भी किए जायें।”
उधर, इस मामले में फेसबुर पर भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह ने आज साफ-साफ लिखा है कि लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को सस्पेंड किए जाने की मांग उचित है. उन्होंने जो कुछ लिखा है, वह इस प्रकार है… ”लखनऊ की निर्भया को न्याय दिलाने के लिए दो मांगें अखिलेश सरकार से… 1-लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को तुरंत सस्पेंड करो… #suspendssplko 2- रेपिस्टों को फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए शीघ्र फांसी पर लटकाओ… #hangtherapist लखनऊ में दो बच्चों की जिस मां को गैंगरेप के बाद जघन्य तरीके से मार डाला गया, उसका अंतिम संस्कार आधी रात को कर दिया गया ताकि लॉ एंड आर्डर मेनटेन रहे. -जिस इलाके में बिल क्लिंटन के आने को लेकर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो, वहीं एक महिला गैंगरेप के बाद मार डाली जाए, यह खौफनाक है. -गैंगरेप के मार डाली गई महिला की नंगी लाश को ढंकने की जगह पुलिस वाले फोटोग्राफी करते रहे और चटखारे लेकर एक दूसरे को भेजते रहे, यह शर्मनाक है. -पूरा देश लखनऊ के इस निर्भया कांड को लेकर सकते में है लेकिन यूपी के सीएम अखिलेश यादव हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है. लखनऊ के एसएसपी पद पर अब भी प्रवीण कुमार विराजमान है. वही प्रवीण कुमार जो चंदौली, मुजफ्फरनगर, नोएडा समेत कई जिलों का एसएसपी रहने के दौरान जनविरोधी और मीडिया विरोधी कुकृत्यों के लिए बदनाम रहा. मायावती के शासनकाल में भी सत्ताधारी बसपा नेताओं का प्रिय पात्र रहा यह ‘कलाकार’ आईपीएस प्रवीण कुमार सपा के शासनकाल में भी सपा के सत्ताधारी यादव नेताओं एंड कंपनी का प्रिय पात्र बना हुआ है. झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने में उस्ताद इस आईपीएस की प्रवीणता यह है कि वह सत्ता से जुड़े किसी अदने से लेकर बड़े नेता तक की बात को टालता नहीं है. वह जो करता है सत्ता के इशारे पर करता है और सत्ता के हित के लिए करता है. ऐसे शख्स को जब लखनऊ जैसे संवेदनशील व राज्य की राजधानी का पुलिस कप्तान बनाया जाएगा तो वहां पुलिसिंग की गति अपग्रेड नहीं बल्कि डीग्रेड होगी. और, वही हुआ भी. लखनऊ में कोई यह पहली वारदात नहीं है. प्रवीण कुमार के एसएसपी रहने के दौरान लखनऊ के शहर और देहात इलाकों में अपराधों की पूरी एक क्रमबद्ध श्रृंखला घटित हुई है. पर लखनऊ की अपराध कथाएं नेशनल मीडिया का हिस्सा नहीं बन पातीं, लोकल खबर बनकर दम तोड़ जाती हैं, इसलिए प्रवीण कुमार अब भी लखनऊ का कप्तान बना हुआ है. लखनऊ की निर्भया कांड को लेकर सबसे पहला एक्शन अगर किसी के खिलाफ किया जाना चाहिए था तो वो है प्रवीण कुमार को लखनऊ के एसएसपी पद से हटाना और सस्पेंड करना. दूसरा काम रेपिस्टों व हत्यारों को पकड़ना. पर अखिलेश यादव के संरक्षण में लखनऊ के पुलिस कप्तान पद पर कार्यरत आईपीएस प्रवीण कुमार का बाल बांका तक नहीं हुआ, एक दो छोटे पदों के पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई. हत्यारे भी अभी तक पकड़े नहीं गए. लखनऊ में रहने वाले महिला और पुरुषों का खून भी अभी तक नहीं खौला है बेंगलूर में स्कूल में बच्ची से रेप के खिलाफ वहां हजारों महिला पुरुष सड़कों पर हैं लेकिन लखनऊ में सब शांति है. दो चार लोग कहीं दुखी होकर बतियाते दिख जाएं, नारा लगाते दिख जाएं तो और बात है वरना स्थिति नियंत्रण में है. वाह रे यूपी के नेता, यूपी के अफसर और यूपी की जनता. चलिए. कोई कुछ न करे बला से, हम लोग चुप न बैठेंगे. फेसबुक के जरिए दो मांग करते हैं, और इन मांगों को हैशटैग करते हुए यूपी के सीएम अखिलेश यादव को इस पोस्ट से टैग करते हैं. दो मांग यूं है… -लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को सस्पेंड करो #suspendssplko -रेपिस्टों और हत्यारों को फांसी दो #hangtherapist (लखनऊ निर्भया कांड की दिल दहला देने वाली तस्वीर देखकर अगर आपका खून नहीं खौला, क्रोध नहीं आया, गुस्से से मुट्ठियां नहीं भिंच गईं तो कृपया इस पोस्ट को न तो लाइक करें, न इस पर कमेंट करें, न सलाह दें और न ही शेयर करें. ये पोस्ट युवाओं के लिए है जो अपने गुस्से को अभिव्यक्त करना जानते हैं.)
पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट मित्ररंजन व कृष्ण मुरारी सचदेवा का कहना है कि सिर्फ लखनऊ के एसएसपी को सस्पेंड करने से काम नहीं चलेगा. अब तो यूपी सरकार को ही बर्खास्त कर देना चाहिए. जैसी बयानबाजी सीएम अखिलेश के पिता मुलायम कर रहे हैं, वह निन्दनीय है.
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