यशवंत सिंह-
एक बार उसे अपने मोबाइल में स्वाति सिंह का फोटो जूम कर देखते हुए मैंने देख लिया था. कुछ कहता उससे पहले ही उसने तपाक से जवाब दिया था- इस स्त्री में कुछ तो है भाई.. एक आकर्षण है.. एक खिंचाव है.. कोई भी पुरुष देखता है तो देखता ही रहता है.. कोई भी स्त्री कनेक्ट होती है तो अपना-सा मानने लगती है.. ये साधारण स्त्री नहीं है.. यूं ही नहीं इसे पहले विधायकी फिर मंत्री पद मिल गया है.. प्रकृति ने भरपूर भाग्य और आभा इसे दिया है..
मैंने अपने भाजपाई मित्र के इतने लंबे लेक्चर को इग्नोर किया और पूछ बैठा- तुम स्वाति सिंह की फोटो जूम कर कर के क्यों देख रहे हो.. तुम्हारा क्या आकर्षण है.. पहले ये बताओ..
सब हंस पड़े. वह मुस्कराया. फिर उसने बात बदल दी.
बात आई गई हो गई लेकिन उस मित्र की स्वाति को लेकर कही गई बातें मेरे जेहन में कहीं कोने दबी बैठी रही.
पिछले दिनों स्वाति सिंह से मेरा आमना सामना हुआ. उनकी टीम के कुछ एक लोगों से मेरी जान-पहचान है. स्वाति का उस रोज जन्मदिन था और वो सोच की मुद्रा में बैठी थीं. आज क्या किया जाए, कैसे किया जाए. फिर उन्हें ही आइडिया आया. चलो, केक मंगाओ. किसी गर्ल्स हास्टल चलते हैं.
लोग समझ नहीं पाए. उन्होंने अपनी टीम के लोगों को पांच मिनट में सब समझा दिया. सब अपने अपने काम पर लग गए. मुझे इतना बताया गया कि स्वाति जी के जन्मदिन पर एक गर्ल्स हास्टल में प्रोग्राम है.. चलना चाहेंगे?
मैंने हां कह दिया क्योंकि नया कुछ देखना जानना रुचिकर लगता है.
स्वाति आईं. गर्ल्स हास्टल में घुसीं. उनके पीछे पीछे केक का डब्बा और पैड का बंडल पहुंचा.
स्वाति के स्वागत में दर्जनों लड़कियां आ गईं थीं. स्वाति ने खड़े खड़े बात शुरू की. फिर जमीन पर ही बैठ गईं. वे खुलकर बात करने लगीं. पीरियड्स को लेकर भारतीय समाज में जो टैबू है, जो दब्बूपना है, जो शर्मिंदगी है, उस संवेदनशील चैप्टर को खोल दिया. लड़कियां थोड़ी झिझक थोड़ी मुस्कराहट के बाद समझने लगीं कि ये मामला सच में सीरियस है. वे खुलने लगीं. अपने अनुभव बताने लगीं. स्वाति ने ऐसा कुछ उनमें भरा कि सभी लड़कियों ने पैड का एक एक बंडल हाथ में लिया और लहराते हुए तस्वीरें खिंचाने लगीं.
मैं वीडियो बनाता रहा.. और सोचता रहा.. इसे कहते हैं स्वाति होना. इसे कहते हैं नेता होना. इसे कहते हैं समाज सेवी होना..
मेरी उत्सुकता जगी. क्या स्वाति सिंह ने बस एक दिन अपने जन्मदिन पर ये मेन्सुअल हाइजीन वाला कार्यक्रम करके पब्लिसिटी के लिए फोटो शोटो खिंचा लिया या इस मकसद को लेकर इनमें कोई संवेदनशीलता और निरंतरता भी है?
अकेले मौका मिलने पर उनसे मैंने अपना सवाल जिज्ञासा के रूप में दाग दिया..
उन्होंने अपने एक सहायक को बुलाया और एक एल्बम मुझे थमा दिया.. दर्जनों कालेजों में लड़कियों के बीच मेन्सुअल हाइजीन को लेकर किए गए कार्यक्रम का सचित्र विवरण उसमें दर्ज था.. लाखों पैड वे बांट चुकी हैं.. पैड का स्टाक खत्म हो चुका है.. स्वाति फाउंडेशन के बैनर तले होने वाले इस आयोजन को लेकर कई लोग सपोर्ट भी करते हैं पर अब जब वो मंत्री पद पर नहीं हैं, विधायक नहीं हैं, उनको फंड करने वाले भी न के बराबर हो गए हैं.. पैड की कमी तो हो गई है.. वे बताने लगीं.. फिर बोलीं- मैनेज कर लेंगे.. पैड के अभाव में जागरूकता कार्यक्रम नहीं रुकेगा, ये तय है.
मुझे तसल्ली हुई.. कोई विधायक और मंत्री बनने के बाद अब जब कुछ नहीं है तो भी अपनी सोशल सक्रियता बनाए हुए है, ये बड़ी बात है..
स्वाति में पद और छपास को लेकर कोई विशेष लालसा /महत्वाकांक्षा नहीं है.. उन्हें लगता है कि वे महिलाओं बच्चियों को मानसिक रूप से मजबूत कर पाईं तो यही उनकी बड़ी सफलता होगी.. बाकी उन्हें ईश्वर से कोई शिकायत नहीं.. जो मिल जाए वो स्वीकार्य है.. भारतीय जनता पार्टी जो जिम्मेदारी दे दे, वह मंजूर है.. वक्त वक्त की बात है… वक्त बदलते भी देर नहीं लगती..
उपरोक्त प्रसंग की कुछ झलकियां/बातें इस वीडियो में , जो कमेंट बॉक्स में है, दिख जाएगी… केक काटतीं स्वाति, पैड लहराती लड़कियां.. फोटो खींचते मीडिया वाले..
और हाँ, महिला दिवस की आप सबको शुभकामनाएँ! आज के दिन आपको भी किसी ऐसी स्त्री के बारे में लिखना बोलना चाहिए जिसने कुछ लिखने कहने के लिए आपको प्रेरित किया हो!
देखें वीडियो..