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सुख-दुख

तनिष्क ने मुस्लिम परिवार में हिंदू बहू वाला विज्ञापन वापस लिया

-राजेश प्रियदर्शी-

तनिष्क ने वो ऐड वापस ले लिया है जिसमें मुसलमान परिवार में एक हिंदू बहू दिखाई गई थी. ज्युलरी रेंज का नाम ‘एकत्वम्’ था.

कंपनी ने हिंदू-मुसलमान एकता की भावना को अपने गहने बेचने के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की थी, जो लोगों को पसंद नहीं आया.

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इस ऐड पर लव जिहाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा, #boycottanishq ट्रेंड करने लगा. कंपनी घबरा गई और ऐड वापस ले लिया.

ज्यादातर कमेंट्स पढ़ने के बाद समझ में आया कि बहू हिंदू की जगह मुसलमान होती तो कोई दिक्कत नहीं थी.

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सांप्रदायिकता पर बहस अपनी जगह है लेकिन लड़की को संपत्ति समझने की मानसिकता कम बड़ी मुसीबत नहीं है.

हिंदू लड़की हिंदू समाज की संपत्ति है, अगर वह मुसलमानों के यहाँ चली गई तो मानो संपत्ति छिन गई. इसी तरह अगर मुसलमान लड़की हिंदू घर में आ गई तो मानो उनकी दौलत हम उठा लाए, ऐसी सोच सांप्रदायिकता से कम ज़हरीली नहीं है.

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कुछ अन्य प्रतिक्रियाएं-

-गिरधारी लाल गोयल-

मुझे तो लगता नहीं कि जो लोग तनिष्क शोरूम से ज्वैलरी खरीदते हैं उनमें दस प्रतिशत की भी कोई भावनाएं उस विज्ञापन से आहत होंगी या वे बॉयकॉट पर ध्यान भी देंगे।

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सर्राफ हिंदुओं से ज्यादा कमाई मुस्लिम ग्राहकों से करता है। ये बात प्रायः किसी के गले नहीं उतरी। लेकिन इस भेद को या तो सर्राफ जानता है या मिक्स आबादी का रहने वाला आम हिन्दू।

हिंदू जब से पैदा होता है तब से रोज कई कई बार बदलने वाले कपड़े , बढ़िया वाले सूखे दूध , पेट के सर्दी के पाचन के तरह तरह के सीरप , प्ले ग्रुप से ही पढ़ाई से लेकर जिम तमाम कपड़े होते हुए भी सोने हंगने और टहलने के अलग अलग पैजामा घुटन्ना, हर महीने साइकिल , फिर स्कूटी बाइक , गाड़ी , कोटा चेन्नई की कोचिंग फिर कारखाने पर शानदार ऑफिस दुकान पर काउंटर, शीशे , AC में लीन रहता है।

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इन सबकी खरीददारी में क़िस्त देते देते या अपनी कमाई से ऊपर खर्चों में जिंदगी निकाल देता है।

सामान्य हिन्दू के लिए सोने की खरीददारी का मतलब उसकी परदादी सड़दादी से मिले एक किलो सोने के से हिस्से में रह गए सौ ग्राम की ज्वैलरी को नया पुराना करने तक ही सीमित है। गोल्ड उसके लिए अनुयोगी और फिजूल खर्ची है।

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लेकिन पंचर का धंधा करने वाला मुसलमान एक कमरे में ही सब कुछ करते हुए तमाम बच्चे पैदा करता है। सारे बच्चे एक दो कपड़ों में ही सारे सीजन काट लेते हैं। डेंगू बुखार तक का इलाज कराया कराया नहीं कराया। बच्चा पांवों पर चला नहीं कि धंधे में भी पांवों पर खड़ा कर दिया जाता है।

इनकी औरतें हर समय सर्राफ , बर्तन वाले और जरी चिकन के कपड़े वालों की दुकानों पर मिलती हैं।

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दस हजार के कपड़े , 10 लाख की गाड़ी वाले हिन्दू ने अपने हाथ से सौ ग्राम सोना कभी खरीदा हो इसकी गारंटी नहीं।

लेकिन जिंदगी पसीनों की दुर्गंध से लथपथ फटे कपडों में गुजारने वाले मुस्लिम परिवार की बेटी की जब शादी होती है तो उसके सजे दहेज में सोना देख बड़ा सुखद आश्चर्य होता है कि इसने ये सोना कब ले लिया।

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और मुसलमानों में जो भैंस आदि के कारोबारी , मिस्त्री मेकेनिक लाइन के लोग हैं उनकी कमाई की तो कल्पनातीत है। उनकी प्रायरटी भी सोना होती है।

और एक बात और भी समझ लेना। 48-50 टन्च की ज्वैलरी को मुस्लिम महिला 85 प्रतिशत में लेकर सर्राफ का बड़ा अहसान मानती है जबकि हिन्दू 82 टन्च के 93 प्रतिशत बड़ी मुश्किल से देता है।

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-अमित चतुर्वेदी-

तनिष्क ने जो किया वो बिल्कुल ग़लत है, ये सीधा सीधा लोगों की धार्मिक भावनाएँ भड़काने वाला काम है। आप अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए इस तरह समाजिक ताने बाने से खिलवाड़ नहीं कर सकते। ये धर्मनिरपेक्षता नहीं है और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इसका बचाव होना भी नहीं चाहिए।

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हिंदू मुसलमान प्रेम से रहें, ये सभी चाहते हैं लेकिन प्रेम से रहने का मतलब ये थोड़ी है वो एक दूसरे के घर में ही रहने लगें।

इस एड बनाने वाले पर इंटेंशनली धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने के तहत कार्यवाही होनी चाहिए साथ में प्रोडक्ट से Non relevant विज्ञापन चलाने के लिए consumer court में भी मुक़दमा चलना चाहिए।

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और जहाँ तक बैन या बहिष्कार का सवाल है, वो तनिष्क का वैसे भी होना चाहिए…बिना मतलब में महँगे ज़ेवर बेंचकर ठग रहे ये लोग भारत की जनता को..

विज्ञापन किसी एडवरटाइजिंग एजेंसी ने बनाया होगा, उस एजेंसी के किसी क्रिएटिव राईटर के दिमाग़ी फ़ितूर ने एक नामी ब्रांड की इज़्ज़त का कबाड़ा कर दिया।

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असल में किसी बहुत पढ़ी लिखी प्रोग्रेसिव सोसायटी में बैठकर ये इंटर फ़ेथ रूमानियत की बातें अच्छी लगती हैं, और अगर आपकी मतलब उन interfaith couples की Surrounding और upbringing अच्छी है तो इसमें कोई दिक़्क़त नहीं।

लेकिन दिक़्क़त ये है कि पूरा देश वैसा नहीं है, पूरे देश का माहौल भी वैसा नहीं है, इन रुमानी विज्ञापनों या कहानियों में दिखाई गयी बातें देखकर लोग इनमें बह जाते हैं, और चूँकि ये जिस ओडिएँस को टार्गेट कर रहे हैं उनकी उम्र और समझ इन सब बातों को समझने की स्थिति में नहीं होते।

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समाज में जहाँ आजकल Similar Faith और यहाँ तक कि Similar जातियों और एक जैसे Family Background वाले लोगों की शादियाँ नहीं चल पा रहीं तो बिना देश को अच्छे से जाने ऐसे किसी ग़ैरज़िम्मेदाराना कारनामे को दिखावे के Secularism के लिए सपोर्ट किया जाना भी उतना ही ग़ैरज़िम्मेदाराना कदम होगा।

इसके लिए तनिष्क और उस एड को बनाने वाली एड एजेंसी को सार्वजनिक माफ़ी माँगनी चाहिए।

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