Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

तस्वीरों की जुबानी प्रेस क्लब आफ इंडिया में हुए ‘विकास’ की कहानी…

प्रेस क्लब में सात वर्षों में विकास के नाम पर केवल कुर्सी मेज बदले जाने से लेकर बार-बार बाथरूम तोड़े जाने का काम किया गया. अब भी पूरे प्रेस क्लब कैंपस में यानि किचन से लेकर कामन हाल तक में चूहे क्राकोच दौड़ते रहते हैं. खाने का स्तर बेहद घटिया हो चुका है. क्लब में अराजकता का आलम दिखता है. जिम के सामान और इसके रूम को तो जैसे डस्टबिन में तब्दील कर दिया गया है. इसके बावजूद इस सत्ताधारी पैनल के लोग अपने राज में खूब विकास किए जाने बात कर सदस्यों को बरगलाते हैं. सच तो ये है कि इनके पास क्लब और इसके सदस्यों की बेहतरी को लेकर कोई आइडिया, विजन, प्लान नहीं है.

प्रेस क्लब में सात वर्षों में विकास के नाम पर केवल कुर्सी मेज बदले जाने से लेकर बार-बार बाथरूम तोड़े जाने का काम किया गया. अब भी पूरे प्रेस क्लब कैंपस में यानि किचन से लेकर कामन हाल तक में चूहे क्राकोच दौड़ते रहते हैं. खाने का स्तर बेहद घटिया हो चुका है. क्लब में अराजकता का आलम दिखता है. जिम के सामान और इसके रूम को तो जैसे डस्टबिन में तब्दील कर दिया गया है. इसके बावजूद इस सत्ताधारी पैनल के लोग अपने राज में खूब विकास किए जाने बात कर सदस्यों को बरगलाते हैं. सच तो ये है कि इनके पास क्लब और इसके सदस्यों की बेहतरी को लेकर कोई आइडिया, विजन, प्लान नहीं है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये लोग क्लब के सदस्यों में फूट डालकर क्लब को राजनीति का अखाड़ा बनाए रखना चाहते हैं ताकि फूट डालो राज करो वाली अंग्रेजों की नीति के जरिए क्लब की सत्ता हर दम अपने हाथ में रख सकें और दोनों हाथों से क्लब के संसाधन-धन को लूट सकें.  भड़ास के संपादक और प्रेस क्लब आफ इंडिया के चुनाव में मैनेजिंग कमेटी पद के लिए प्रत्याशी यशवंत का कहना है कि बदलाव फ्रेश वाटर की तरह है. यथास्थिति सड़े पानी की तरह. सत्ताधारी पैनल को नमस्ते करें और प्रेस क्लब की बागडोर बादशाह-शाहिद-जतिन के पैनल को सौंपे.  इस पैनल के सभी प्रत्याशियों और इसके मैनेजिंग कमेटी के सदस्य पद के लिए लड़ रहे उम्मीदवारों को भारी वोटों से जिताएं. प्रेस क्लब में हुए विकास की कहानी इन तस्वीरों के जरिए देख-जान सकते हैं….

तो ये हाल है प्रेस क्लब आफ इंडिया यानि पीसीआई में हुए विकास का. कल यानि पच्चीस नवंबर को होने वाले प्रेस क्लब आफ इंडिया के सालाना चुनाव में आठवें बरस भी जीतने के लिए सत्ताधारी पैनल के लोग लगे हुए हैं और इन लोगों ने अब हर किस्म के हथकंडे आजमाना शुरू कर दिया है. सात साल पहले पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए जिस किस्म की बड़ी गोलबंदी हुई थी, वैसी ही गोलबंदी इस दफे दिख रही है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

विवादित और कदाचारी सत्ताधारी पैनल वालों को पत्रकार इस बार विराम देने के मूड में हैं. बादशाह-शाहिद-जतिन पैनल की तरफ चल रही हवा और इस पैनल की जीत पक्की देखकर अब सत्ताधारी पैनल किसिम किसिम के दुष्प्रचार करने में जुट गया है. बाकायदे मैसेज भेजकर प्रेस क्लब सदस्यों को बरगलाया जा रहा है. कभी प्रेस क्लब सदस्यों को उनकी सदस्यता खत्म कर दिए जाने का भय दिखा कर बादशाह-शाहिद-जतिन पैनल को वोट न देने के लिए कहा जा रहा है तो कभी फर्जी कागजातों और झूठे तथ्यों के आधार पर बादशाह-शाहिद-जतिन पैनल के वरिष्ठ सदस्य पर अनर्गल आरोप सोशल मीडिया में दुष्प्रचारित किया जा रहा है.

यह सब दिखाता है कि सत्ताधारी पैनल के पास क्लब के सदस्यों को बताने-दिखाने के लिए कुछ नहीं है. वह भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहावत के जरिए खुद के शरण में रहने का दबाव क्लब के सदस्यों पर डाल रहा है. ऐसी नकारात्मक किस्म की राजनीति को पत्रकार खूब समझते हैं और वे चाहते हैं कि प्रेस क्लब को आधुनिक युवाओं के हाथों में सौंपा जाए जो इसे क्रिएशन और पाजिटिविटी का अड्डा बना सकें. खासकर प्रेस क्लब के सभी सदस्यों को हेल्थ इंश्योरेंस कराने का जो वादा भड़ास के संपादक यशवंत ने किया है, वह क्लब के सदस्यों के बीच चर्चा का विषय है. प्रेस क्लब आफ इंडिया के चुनाव में मैनेजिंग कमेटी सदस्य पद के प्रत्याशी यशवंत का कहना है कि अगर बादशाह-शाहिद-जतिन पैनल जीकर प्रेस क्लब का संचालन अपने हाथ में लेता है तो सबसे पहले क्लब के सभी सदस्यों और उनके परिजनों का मामूली रेट पर हेल्थ बीमा कराया जाएगा ताकि उनके मुश्किल के दिनों में किसी के आगे किसी को हाथ न फैलाना पड़ा.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसके अलावा प्रेस क्लब में एक हेल्प डेस्क बनाई जाएगी जो आम पत्रकारों की समस्याओं को टैकल करेगी. छंटनी, वेजबोर्ड, लीगल हेल्प समेत ढेरों मसलों पर प्रेस क्लब संपूर्ण समर्थन देगा. प्रेस क्लब आगे से सिर्फ किसी मीडिया मालिक के दुख में ही नहीं दुखी होगा बल्कि आम पत्रकारों की चिंता-दुख को महसूस करते हुए उसके त्वरित निदान के लिए कार्य करेगा. यशवंत ने प्रेस क्लब के सदस्यों से अपील की कि अबकी लेफ्ट राइट के चक्कर में न पड़ें क्योंकि दोनों ही पैनल में लेफ्ट और राइट दोनों किस्म के लोग हैं. इस बार असल लड़ाई ट्रेडीशनल थिंकिंग बनाम सरोकारी सोच की है. जो लोग सात साल से प्रेस क्लब की सत्ता में हैं और उनके मुंह में जो करप्शन का खून लग चुका है, वे किसी हाल में इसे नहीं छोड़ना चाहते.

ये वही लोग हैं जो कभी पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के जमाने में लोकतंत्र और पारदर्शिता की बातें करके झंडा उठाया करते थे लेकिन जब खुद सत्ता में आए तो लगातार पतित होते रहे. प्रेस क्लब का सदस्य बनाने में पारदर्शिता बिलकुल नहीं है. लाबिंग और चिरौरी के जरिए ही प्रेस क्लब सदस्यता दी जाती है. यह बेहद फूहड़ और अलोकतांत्रिक परिपाटी है जो बंद नहीं की गई. दिल्ली में हजारों जेनुइन जर्नलिस्ट हैं जिन्हें प्रेस क्लब की सदस्यता नहीं दी गई लेकिन ढेरों प्रापर्टी डीलरों, लाबिस्टों और दलालों को सदस्य बना दिया गया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

xxx

प्रेस क्लब में यशवन्त सिंह पर हमला मुद्दा नहीं बना। प्रबंधन चुप्पी साधे रहा। हमले के सुबूत सीसीटीवी फुटेज गायब कर दिए गए या डील करके डिलीट मार दिए गए। चिदंबरम के साथ मिल कर 2g स्कैम के पैसे को व्हाइट करने वालों के संरक्षण के वास्ते हर दफे प्रेस क्लब बहुत क्रांतिकारी दिखा। उस एक मीडिया घराने के मालिक को आई छींक-पाद पर भी प्रेस क्लब एक पैर पर खड़ा होकर जिंदाबाद-मुर्दाबाद करता रहा लेकिन किसी आम पत्रकार के दुख-सरोकार से उसका नाता कभी न दिखा। छंटनी पर चुप्पी साधे रहे। मजीठिया वेज बोर्ड पर एक शब्द नहीं बोले। आर्थिक भ्रष्टाचार और चरम कदाचार प्रेस क्लब प्रबंधन की नाक नीची नहीं करता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दुनिया भर की सत्ताओं को दोगला जनविरोधी और भ्रष्ट बताने वाले प्रेस क्लब की सत्ता को जब बेदाग कहते हैं और कम्पनी टाइप चीज बताकर छूट हासिल करने की कोशिश करते हैं तो ये क्रांतिकारी बयान माना जाता है। सात साल से अपने खास चेलों चमचों को मेम्बर बना कर सत्ता बचाते चलाते रहने में गुरेज नहीं लेकिन दूसरी सत्ताएं जब यही करें तो ढेरों मुट्ठियाँ तन जाएं। साथी, क्रांतिकारी होने का मतलब नहीं कि तेरी क्रांति को गलत कहूंगा, अपनी वाली को सही। ये चिपकन बहुत द्विअर्थी संवाद लिख कर खुद को ”सत्ताधारी क्रांतिकारी” बने रहने को मजबूर करती है। इस चुनाव का मुद्दा प्रेस क्लब को ज्यादा पत्रकारीय सरोकारों से चलाने का है। उम्मीद है मजीठिया और मीडिया में छंटनी को भी मुद्दा बनाया जा सकेगा। क्लब के सदस्यों की सेहत की चिंता करते हुए उन्हें हेल्थ इंश्योरेंस से कवर किया जाएगा। बाकी, दारू की खाली बोतलें बेच कर कमीशन खाने वालों से धरती बचाने के लिए धरती पकड़ बने रहने के तर्क गढ़ने सुनने में सबको आनन्द आएगा ही।

आगे इन्हें भी पढ़ें :

Advertisement. Scroll to continue reading.

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.

xxx

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement