Naved Shikoh : यशवंत को आख़िर क्यों जितायें दिल्ली के पत्रकार! क्योंकि ये ऐसा पत्रकार ने जो ब्रांड अखबारों की नौकरी छोड़कर शोषित पत्रकारों की लड़ाई लड़ रहा है। इस क्रान्तिकारी पत्रकार ने अपने कॅरियर को दांव पर लगाकर, वेतन गंवाया.. तकलीफें उठायीं. मुफलिसी का सामना किया.. जेल गये.. सरकारों से दुश्मनी उठायी… ताकतवर मीडिया समूहों के मालिकों /उनके मैनेजमेंट से टकराये हैं ये। छोटे-बड़े अखबारों, न्यूज चैनलों में पत्रकारों का शोषण /महीनों वेतन ना मिलना/बिना कारण निकाल बाहर कर देना.. इत्यादि के खिलाफ कितने पत्रकार संगठन सामने आते हैं? कितने प्रेस क्लब हैं जहां पत्रकारों की इन वाजिब समस्याओं के समाधान के लिए कोई कदम उठाया जाता है!
यशवंत सिंह जी ने बिना संसाधनों और बिना किसी सपोर्ट के खुद के बूते पर भड़ास फोर मीडिया जैसा देश का पहला और एकमात्र प्लेटफार्म शुरु किया। जहां से पत्रकारों के हक़ की आवाज बुलंद होती है। जहां पत्रकारों का शोषण करने और उनका हक मारने वालों का कच्चा चिट्ठा खोला जाता है। यशवंत के भड़ास ने ना जाने कितने मीडिया समूहों की तानाशाही पर लगाम लगाई। शोषण की दास्तानों को देश-दुनिया तक फैलाकर दबाव बनाया। नतीजतन सैकड़ों मीडिया कर्मियों को यशवंत के भड़ास ने न्याय दिलवाया। मीडिया कर्मियों का वाजिब हक दिलवाया। देश में सैकड़ों बड़े-बड़े पत्रकार संगठन है। इनमें से ज्यादातर को आपने सत्ता और मीडिया समूहों के मालिकों की दलाली करते तो देखा होगा, लेकिन जरा बताइये, कितने संगठन पत्रकारों के शोषण के खिलाफ लड़ते हैं? दिल्ली सहित देशभर के छोटे-बड़े प्रेस क्लबों में क्या हो रहा है आपको बताने की जरुरत नहीं।
मैं 24 बरस से पत्रकारिता के क्षेत्र में निरन्तर संघर्ष कर रहा हूँ। आधा दर्जन से अधिक छोटे-बड़े मीडिया ग्रुप्स में काम किया है। मैंने देखा है किस तरह सरकारों और अखबार- चैनलों के मालिकों के काले कारनामों की कालक एक ईमानदार पत्रकार को किस तरह अपने चेहरे पर पोतनी पड़ती है। नैतिकता-निष्पक्षता-निर्भीकता और पत्रकारिता के सिद्धांतों-संस्कारों की बात करने वाले ईमानदार पत्रकार के चूतड़ पर चार लातें मार के भगा दिया जाता है। आज के माहौल ने मिशन वाली पत्रकारिता को तेल लेने भेज दिया है। ये तेल शायद मिशन की पत्रकारिता करने की चाहत रखने वाले भूखे पत्रकारों की मज़ार पर चराग के काम आ जाये।
कार्पोरेट और हुकूमतों की मोहताज बन चुकी पत्रकारिता को तवायफ का कोठा बना देने की साजिशों चल रही हैं। पत्रकार का कलम गुलाम हो गया है। अपने विवेक से एक शब्द नहीं लिख सकता। वैश्या जैसा मजबूर हो गया पत्रकार। पैसे देने वाला सबकुछ तय करेगा। पत्रकारिता को कोठे पर बिठाने वालों ने कोठे के दलालों की तरह सत्ता की दलाली करने वालों के चेहरे पर पत्रकार का मुखौटा लगा दिया है। इस माहौल के खिलाफ लड़ रहे हैं यशवंत सिंह और उनका भड़ास। साथ ही यशवंत का व्यक्तित्व और कार्यशैली इस बात का संदेश भी देता है कि कार्पोरेट घराने या हुकूमतें के इशारे पर यदि आपसे पत्रकारिता का बलात्कार करवाया जा रहा है तो ऐसा मत करें। अपना और अपने पेशे का ज़मीर मत बेचो। इसके खिलाफ आवाज उठाओ। नौकरी छोड़ दो। बहुत ही कम खर्च वाले वेब मीडिया के सहारे सच्ची पत्रकारिता के पेशे को बरकरार रख सकते हैं।
कितना लिखूं , बहुत सारे अहसान हैं। जब हमअपने मालिकों/मैनेजमेंट की प्रताड़ना का शिकार होते हैं। अपने हक की तनख्वाह के लिए सटपटा रहे होते हैं। बिना कारण के निकाल दिये जाते हैं। तो हम लेबर कोर्ट नहीं जाते। पत्रकारों की यूनियन के पास भी फरियाद के लिए नहीं जाते। मालुम है लेबर कोर्ट जाने से कुछ हासिल नहीं होता। पत्रकार संगठनों के पत्रकार नेताओं से दुखड़ा रोने से कोई नतीजा नहीं निकलता। प्रेस क्लबों में दारू – बिरयानी और राजनीति के सिवा कुछ नहीं होता। पीड़ित का एक ही आसरा होता है- यशवंत का भड़ास। इस प्लेटफार्म से मालिक भी डरता है- मैनेजमेंट भी और सरकारें भी। पत्रकारिता के जीवन की छठी से लेकर तेहरवीं का सहारा बने भड़ास में नौकरी जाने की भड़ास ही नहीं निकलती, नौकरी ढूंढने की संभावना भी पत्रकारों के लिए मददगार साबित होती हैं।
वेबमीडिया की शैशव अवस्था में ही पत्रकारों का मददगार भड़ास पोर्टल शुरु करके नायाब कॉन्सेप्ट लाने वाला क्या दिल्ली प्रेस क्लब की सूरत नहीं बदल सकता है। आगामी 25 नवंबर को प्रेस क्लब आफ इंडिया के चुनाव के लिए लखनऊ के एक पत्रकार की गुज़ारिश पर ग़ौर फरमाएं :- दिल्ली प्रेस क्लब के चुनाव में मैंनेजिंग कमेटी के सदस्य के लिए क्रान्तिकारी पत्रकार यशवंत सिंह को अपना बहुमूल्य वोट ज़रूर दीजिएगा। यशवंत सिंह का बैलेट नंबर 33 है।
नवेद शिकोह
पत्रकार ‘लखनऊ
वरिष्ठ सदस्य
उ. प्र. मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति
8090180256 9918223245
[email protected]
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