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टाइम्स ग्रुप की ‘माधुरी’, डिंपल कपाड़िया की तस्वीर, शत्रुघ्न सिन्हा के कठे होंठ, सोनाक्षी सिन्हा की रेखा से नाराजगी

Sanjay Sinha : मुझे लगता है कि मैंने अपनी फिल्मी कहानियां लिखनी अगर बंद नहीं की तो कुछ दिनों मुझे कोई फिल्मी पत्रिका वाले बुला लेंगे कि भैया हमारे पास आ जाओ नौकरी करने, और दिन भर बैठ कर अपनी मुलाकातों, बातों की कहानियां छापते रहो। पता नहीं आपमें से कितनों को याद है कि पहले टाइम्स ग्रुप की एक पत्रिका आती थी ‘माधुरी’। जिन दिनों माधुरी पत्रिका घर आती थी, उस पर पहला हक मेरी बड़ी बहन का होता। मां-पिताजी को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती और मैं छुप-छुप कर उसे पढ़ता। मुझे तब माधुरी पत्रिका पढ़ने की छूट नहीं थी, क्योंकि घर के लोगों को लगता था कि फिल्मी पत्रिका पढ़ कर उनका संजू बिगड़ जाएगा। मेरे लिए दो पत्रिकाएं घर पर आती थीं – चंपक और नंदन।

संजय सिन्हा

Sanjay Sinha : मुझे लगता है कि मैंने अपनी फिल्मी कहानियां लिखनी अगर बंद नहीं की तो कुछ दिनों मुझे कोई फिल्मी पत्रिका वाले बुला लेंगे कि भैया हमारे पास आ जाओ नौकरी करने, और दिन भर बैठ कर अपनी मुलाकातों, बातों की कहानियां छापते रहो। पता नहीं आपमें से कितनों को याद है कि पहले टाइम्स ग्रुप की एक पत्रिका आती थी ‘माधुरी’। जिन दिनों माधुरी पत्रिका घर आती थी, उस पर पहला हक मेरी बड़ी बहन का होता। मां-पिताजी को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती और मैं छुप-छुप कर उसे पढ़ता। मुझे तब माधुरी पत्रिका पढ़ने की छूट नहीं थी, क्योंकि घर के लोगों को लगता था कि फिल्मी पत्रिका पढ़ कर उनका संजू बिगड़ जाएगा। मेरे लिए दो पत्रिकाएं घर पर आती थीं – चंपक और नंदन।

संजय सिन्हा

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‘माधुरी’ पढ़ने की दिलचस्पी मुझमें सबसे पहले तब जागी जब मैंने पहली बार उसमें डिंपल कपाडिया की तस्वीर देखी थी। मुझे ठीक से याद है कि डिंपल की शादी राजेश खन्ना से हुई थी, और मैं सिसक पड़ा था। आज सोच कर भी हंसी आती है क्योंकि डिंपल की शादी के समय मैं बिना निकर के भी नहा कर बाथरूम से निकल आने वाली उम्र में था। पर मन में पता नहीं क्यों बड़ी हूक सी उठी थी, डिंपल की शादी की खबर पढ़ कर। मैंने तब से माधुरी को पढ़ना शुरू कर दिया, और सिनेमा के संसार में अपनी दिलचस्पी जगाने लगा।

उन दिनों हिंदी सिनेमा में दो विलेन हुआ करते थे। एक शत्रुघन सिन्हा और दूसरे विनोद खन्ना। मेरी एक बहन तो उन दोनों विलेन के बारे में सुन कर ही भड़क जाती थी, कहती थी ये दोनों गंदे लोग हैं। उसके दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि सिनेमा के िवलन सच्ची में विलन ही होते हैं। खास तौर पर शत्रुघन सिन्हा के होठों के नीचे कटे का निशान उसे बहुत सी कहानियां बनाने का मौका देता था। वो मुझे समझाया करती थी कि देखो गंदे लोगों के होठ ऐसे ही कट जाते हैं। और सच्ची में जब कभी मैं शत्रुघन सिन्हा की फिल्म देखता तो मुझे उसके कटे हुए होठ देख कर लगता कि मैं कोई गलत काम नहीं करुंगा, क्या पता मेरे भी होठ कट जाएं।

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और ऐसी ही काल्पनिक कहानियों में डूबता उतराता मैं वहां से यहां चला आया।

वक्त ने कई ऐसे मौके दे दिए कि मैं शत्रुघन सिन्हा से मिल पाया। कई बार झूठी सच्ची कहानियां मन में बना ली कि वो सिन्हा, मैं सिन्हा तो हम रिश्तेदार भी होंगे। लेकिन वो तब फिल्मों में विलन ही थे तो खम ठोक कर रिश्तेदारी निकालने में मेरी दिलचस्पी नहीं रही।

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शत्रु जी राजनीति में आ गए। आम पत्रकारों से सुलभता से मिलने लगे। मैं बड़ा हो गया था और ये समझने लगा था कि सिनेमा का विलन असली िजंदगी में विलेन नहीं होता है। शत्रु जी से कई मुलाकातें हुईं। लेकिन पिछले दिनों एक कार्यक्रम के सिलसिले में खूब बातें हुईं।

इतनी कि पहली बार मैं हिम्मत कर पाया उनके बारे में बचपन से मन में बैठे सवालों के बारे में पूछ पाने का।

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उसी में से एक सवाल था कि आपके होठ पर कटने का ये निशान कैसे आया?

मेरा यकीन कीजिए, आपने चाहे जितनी फिल्मी पत्रिकाएं पढ़ी होंगी, लेकिन इस सच से आपका आजतक सामना नहीं हुआ होगा, जिसे मैं शत्रुघन सिन्हा की जुबानी सुनाने जा रहा हूं।

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मेरे सवाल पर शत्रुघन सिन्हा हंसने लगे। जोर जोर से और खुल कर हंसना उनका स्वभाव है।

उन्होंने बताया कि उनके होठ के नीचे कटे के इस निशान को लेकर कई तरह की कहानियां लोग सुनाते हैं। वो खुद भी अपने बारे में कई कहानियां सुन चुके हैं। पर सच उनमें से कुछ भी नहीं।

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सच ये है-

बात उन दिनों की है जब शत्रुघन सिन्हा की उम्र दस बारह साल रही होगी। उन्हीं दिनों में से कोई एक दिन अमेरिका में रहने वाले उनके मामा उनके घर पटना आए हुए थे। उस शाम उनके मामा को वापस अमेरिका जाना था, और अपने शत्रु जी को अचानक सूझी कि दाढ़ी कैसे बनाई जाती है, इसे देखा जाए। उनके हाथ एकदम शार्प ब्लेड वाला रेजर लग गया था, और उन्होंने बाकायदा गाल पर साबुन लगा कर पहले अपनी बहन की दाढ़ी बनाने का खेल खेला, फिर अपनी। अपनी दाढ़ी बनाते हुए उनके हाथ होठ के पास फंसे और ब्लेड ने अपना काम ठीक से कर दिया।

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पूरा गाल खून से सन गया। शत्रुघन सिन्हा को ठीक से याद नहीं कि उसके बाद क्या हुआ, पर बहुत बाद में उनकी मामी ने उन्हें बताया कि गाल कट जाने के बाद उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया जा सका, क्योंकि मामा की फ्लाइट थी। और देसी स्टाइल में कि जरा कट ही तो लगा है, घर में देसी इलाज कर दिया गया।

जाहिर है अस्पताल नहीं गए तो कट का निशान रह गया। फिर एक बार जब जख्म सूख गया तो लोग धीरे-धीरे उन्हें उसी रूप में स्वीकार करने लगे। शत्रुघन सिन्हा उसी चेहरे के साथ कॉलेज गए, पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट गए। और शायद वो कट का निशान उनके लिए विलेन बनने का मौका भी लेकर आया होगा।

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उसी कट के साथ वो फिल्मों में डरावने विलेन बनने लगे, और मेरी बहन ने कहानी बना कर मुझे सुना दी कि जो लोग गलत काम करते हैं उनेक होठ ऐसे ही कट जाते हैं।

शत्रुघन सिन्हा पूरी बात सुना कर हंसने लगे। मैं हैरान था इस सच पर। मैं हैरान था अपनी बहन की कहानी पर। लेकिन शत्रुघन सिन्हा ने इससे भी दिलचस्प कहानी हमें सुनाई। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी सोनाक्षी सिन्हा को बचपन में किसी ने बता दिया था कि रेखा आंटी ने उनके पापा के गाल को काट लिया है और इस एक कहानी की वजह से सोनाक्षी बहुत दिनों तक रेखा से नाराज़ रहती थीं।

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बचपन की कहानियों के ऐसे सच कई बार बहुत दिलचस्प होते हैं। और मेरे लिए वो पल और दिलचस्प हो गया जब शत्रुघन सिन्हा ने मुझसे पूछा कि सत्तू का शर्बत पीओगे? लो जी एकदम बिहारी बॉर्नविटा। मैंने हां कहा, और उनके ठहाकों और कहानियों के बीच सत्तू पी पी कर अपनी बहन की कल्पना की उड़ान पर हंसता रहा। बुहत दिनों से सोच रहा था कि बहन को पूरी कहानी सुनाउंगा। आज यहां फेसबुक पर सुना रहा हूं, उसके बहाने आप सबको भी।

टीवी टुडे ग्रुप में वरिष्ठ पद पर कार्यरत संजय सिन्हा के फेसबुक वॉल से साभार.

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