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उत्तर प्रदेश

भ्रष्टाचार का तीसरा इंजिन बेगानी शादी में अब्दुल्ला को बनायेगा दीवाना

कृष्ण पाल सिंह-

उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव पहली बार बडी राजनीतिक रणभूमि में तब्दील नजर आ रहे है। योगी पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह नगर निकाय चुनाव में भी प्रत्यक्ष तौर पर प्रचार अभियान में कूद पडे हैं। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में ट्रिपल इंजन की सरकार बन जाने से धरातल पर विकास में और तेजी आयेगी। यह बात नारेबाजी के तौर पर बहुत सुहावनी लगती है लेकिन वास्तव में चर्तु खम्भीय शासन में विकास कार्य के बजट के ईमानदारी से इस्तेमाल के लिए सम्बन्धित सरकारे गम्भीर हो पर क्या ऐसा हो रहा है?

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चर्तुखम्भीय शासन से तात्पर्य है केन्द्र की सरकार और राज्य की सरकारों के अलावा नगरीय निकायों व ग्राम पंचायतों में की गयी स्वशासन की व्यवस्थायें जिसके तहत नगरीय निकायों व पंचायती राज संस्थाओं को विकास के लिए अपने स्तर पर नियोजन करने का दिया गया अधिकार और उनके लिए इस प्रयोजन हेतु बजट की पर्याप्त व्यवस्था। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की सरकारों द्वारा बजट के विकास मंे अधिकांश हिस्सा अधिकारियों और मंत्रियों आदि को हडपने की छूट दिये जाने की लम्बी परम्परा लोगों ने झेली है और इसकी बडी कीमत चुकायी है।

विकास के पैसे में भ्रष्टाचार से दो बाते होती हैं। एक तो गुणवत्ता पूर्ण कार्य न हो पाने से बार-बार एक ही काम के लिए बजट की व्यवस्था करनी पड़ती है। दूसरे विकास के लिए संसाधनों की व्यवस्था करने हेतु लोगों पर अधिक से अधिक टैक्स लगाने की जरूरत पड़ती है। लोगों ने पिछली सरकारों की असाध्य हो चुकी उक्त करतूतों से आजिज आकर ही उन्हें पलटने का मन बनाया। इस तरह भाजपा के केन्द्र और प्रदेश में सत्ता में आने के पीछे जो कारक रहे उनमें एक बडा कारक विकास की कार्यवाहियों में भ्रष्टाचार के न्यून हो जाने की आशा थी जिससे लोग उम्मीद करते थे कि नये रिजीम में करों में कम से कम बढोत्तरी का बोझा भविष्य में उन पर डाला जायेगा। लेकिन ऐसा तो नहीं हुआ।

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भाजपा केवल एक बात का श्रेय ले सकती है कि उसके प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ज्यादा स्मार्ट हैं इसलिए विकास को उनके कार्यकाल में नयी ऊचंाइयां दी जाना सम्भव हुआ है। पिछले कुछ वर्षो में इससे देश और प्रदेश का स्वरूप ही बदल गया है। हर जगह नयी भव्यता या चकाचैंध के दर्शन हो रहे है लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने की जरूरत इन सरकारों ने अपने एजेन्डे से अलहदा कर दी हैं। इसके चलते महत्वाकांक्षी विकास की कीमत आम लोगों से उनकी सामथ्र्य से ज्यादा वसूली जा रही है। लोगों में प्रतिशोध का उन्माद, एक कौम का दूसरे कौम पर प्रभुत्व जमाने का उन्माद ऐसी प्रवृत्तियों को जगाया गया है जिससे यह हुआ है कि जहां पहले रोडवेज, रेल किराया हो या डीजल पेट्रोल और रसोई गैस आदि की कीमतें एक रूपया ज्यादा बढता था तो भीड सड़कों पर उतर आती थी। लेकिन आज लोग जबाव दे रहे है कि अगर पेट्रोल 500रूपया लीटर पर पहुंच जाये तो भी उन्हें वर्तमान सरकार का विरोध करना मंजूर नहीं है।

पर लोग कितने दिनों तक किसी जुनून से आवेशित रह सकते हैं। एक दिन तो हरारत उतरनी ही है तब लोग अन्धाधुन्ध कराधान का हिसाब किताब मांगेगे तो क्या जबाव दिया जायेगा। आज हालत यह हो गयी है कि एक ओर कर और शुल्क में बेतहाशा बढोत्तरी की जाती है और इसके बावजूद सरकार की पूर्ति नहीं होती इसलिए जनसाधारण जनसाधारण पर लगाये जाने वाले यातायात नियमों के उल्लघंन जैसे जुर्माने जो कि लोगों की आदत में सुधार लाने के लिए होने से प्रतीकात्मक रखे जातेे थे आज उसकी कमाई की जरूरत बना दिये गये है जिससे उनकी कोई सीमा नहीं रह गयी है।

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विकास के बजट का कितना उपयोग विकास के लिए हो पा रहा है यह गौरतलब होना चाहिए। नगर निकाय के संदर्भ में हर भुक्तभोगी नागरिक यह जान चुका है कि कुल बजट का ज्यादा से ज्यादा 30 प्रतिशत कार्य या आपूर्ति में लगता है और शेष 70 प्रतिशत अंश की बंदरबाट अधिकारियों और सभापति, सभासद आदि कर लेते है। इस व्यवस्था ने एक अनिवार्य बुरायी का रूप ले लिया है। इसलिए आज जब कुछ महीने से नगर निकायों में जन प्रतिनिधि नहीं है तो इस बटवारें पर अधिकारियों की इजारेदारी हो गयी। अगर वर्तमान सरकार की मंशा विकास में भ्रष्टाचार को कम से कम अनुपात तक सीमित कर देने की होती तो ट्रिपल इंजन की सरकार का औचित्य निश्चित रूप से होता। पर जब सरकार ने जता दिया है कि विकास में भ्रष्टाचार के खुले खेल पर रोक का उसका कोई इरादा नहीं है तो नगर निकाय में चाहे नागनाथ बैठे या सांपनाथ क्या फर्क पडता है।

अगर सत्तापक्ष का अध्यक्ष होने से सुदर्शन विकास सम्भव होने की बात भी की जाये तो आम लोगों के लिए सुदर्शन विकास बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह है। रेलवे के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। आरक्षित टिकट के यात्रियों को घण्टों बाद आने वाली ट्रेन का सुकून से इन्तजार करने के लिए रेलवे की ओर से पहले निःशुल्क प्रतीक्षालय प्लेटफार्म के अन्दर बने होते थे। आज स्टेशन भव्य हो रहे है तो उनमें प्रवेश तक की बडी कीमत तय होती जा रही है और प्रतीक्षालय का आलम तो और ज्यादा तकलीफदेह है। रेलवे ने प्रतीक्षालय की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड लिया है। निजी हाथों में प्रतीक्षालय की व्यवस्थायें सौप दी गयी है जो प्रति घण्टे के हिसाब से होटल जैसा किराया यात्रियों से मांगते है। आम आदमी के लिए क्या हवाई अड्डों की तरह रेलवे प्लेटफार्म में प्रवेश भी सपना हो जायेगा। विकास के नाम पर हर सार्वजनिक सुविधा का मुनाफा आधारित शुल्क निर्धारित करने की नीति आम लोगों को उनका सुख लेने से दूर कर देती है। क्या यह उसके लिए बेगाने अब्दुल्ला की नियति का निर्धारण नहीं कहा जाना चाहिए।

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ट्रिपल इंजन की सरकार के लिए लोग तब लालायित हो सकते है जब विकास में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार कटिबद्ध हो जाये। भ्रष्टाचार नहीं होगा तो एक करोड़ की विकास योजना का स्टीमेट 30-35 लाख का रह जायेगा। यानी विकास के लिए बहुत कम बजट की जरूरत रह जायेगी तो कुछ वर्षों तक करवृद्धि की जरूरत क्यों होगी। अन्यथा चाहे जितना टैक्स लगा दिया जाये सरकार के संसाधन सुरसा की तरह मुंह फैलाते भ्रष्टाचार में समाते रहने को अभिशप्त रहेगें।

नगर निकायों में हर पार्टी बगावत को झेल रही है। मुख्यमंत्री के चुनाव मैदान में उतर पडने के बावजूद भाजपा में भी टिकट से वंचित लोग पार्टी का लिहाज करने को तैयार नहीं है। चेयरमैन बनना मतलब कुबेर के खजाने की चाबी हासिल करना है। लालच का पलीता नीव में लगते रहने पर भाजपा का दुनिया के सबसे बडी पार्टी के दावे को कितना खोखला कर सकता है इसका अनुमान होना चाहिए। नगर निकाय चुनाव में भाजपा में हो रहा भितरघात साबित करता है कि आयतन में उसका बडा होना कोई काम की बात नहीं है। उसका चरित्र भी दूसरी पार्टियों की तरह स्वार्थी और अवसरवादी लोगों के जमावडे जैसा ही है। यानी भाजपा में सत्ता का शहद जब तक है तभी तक वह मजबूत है यह शहद खत्म हुआ कि इसकी लालची भीड दूसरा ठिकाना तलाशने के लिए दौड पडेगी। मोदी को इस बारे में सोचने की जरूरत भले ही न हो लेकिन योगी को अभी लम्बी पारी खेलनी है। उन्हें तो सोचना पडेगा। तात्कालिक जीत के लिए अगर वे पार्टी के स्थायित्व के आवश्यक तत्वों को नजर अंदाज करेगें तो भविष्य में जब उनकी बारी आनी है तब तक कहीं भाजपा की नाव अपने खोखलेपन के कारण मझधार में डूबने को अभिशप्त न हो जाये।

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