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बढ़िया रेटिंग (TRP) आने से जो पैसा आया उससे कितने रिपोर्टर रखे गए?

-Ravish Kumar-

TRP को अपने हित में समझिए न कि चैनलों के युद्ध के हित में

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TRP के नाम पर टेलिविज़न माध्यम के प्रभाव को ख़त्म किया। टीवी की ख़बरों का व्यापक और तुरंत असर होता था। चैनलों के मालिक और सरकार दोनों को पता था कि अगर इस माध्यम में पत्रकारिता की संस्था विकसित होगी तो खेल करना मुश्किल होगा। क्योंकि आप जो करते हैं वो दिख जाता है। जैसे ही रिपोर्टिंग का ढाँचा चैनलों में जमने लगा वैसे ही ये ख़तरा मालिकों और सरकारों को दिखने लगा।

इसलिए 2014 के कई साल पहले से ही न्यूज़ चैनलों से अच्छे रिपोर्टर निकाले जाने लगे थे। लोगों को ख़बर के नाम पर मनोरंजन दिखाया जाने लगा। ठीक है कि 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की आड़ में इन चैनलों ने यह काम किसी और तरीक़े से खुल कर किया और उन्हें मोदी के विराट समर्थक जगत का साथ मिला। मोदी समर्थकों को दिख रहा था कि ये पत्रकारिता नहीं है लेकिन वे अपने मोदी को देख ख़ुश हो रहे थे। जो दर्शक थे वो मोदी समर्थक बन रहे थे।इन चैनलों को सिर्फ़ मोदी के कारण झेल रहे थे। उसी के दंभ पर न्यूज़ चैनल वाले पत्रकारिता छोड़ मदारी का खेल दिखा रहे हैं। वरना तमाम सरकारी और राजनीतक दबाव के बाद भी इन्हें पत्रकारिता करनी पड़ती।

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मेरी राय में इस खेल को सबने अपने तरीक़े से खेला है। कोई महात्मा नहीं है। नाम लेकर किसी को अलग करने का कोई फ़ायदा नहीं। रिपोर्टरों और स्ट्रिंगरों का नेटवर्क ध्वस्त होते ही एंकर को लाया गया। संवाददाताओं की जगह एक एंकर होने लगा। एंकर के ज़रिए खेल शुरू हुआ। डिबेट शो लाया गया जिसे ख़बरों के विकल्प में ख़बर बनाकर पेश किया गया। सभी ने सूचना संग्रह का काम छोड़ दिया।

आपसे कहा गया कि रेटिंग के लिए कर रहे हैं। कोई तो बताए कि रेटिंग से जो पैसा आया उससे कितने रिपोर्टर रखे गए। नए रिपोर्टरों की भर्ती बंद हो गई है। यह बेहद गंभीर मामला है। इसे एक चैनल के ख़िलाफ़ बाक़ी चैनलों की लामबंदी से न देखें। एक चैनल पर ऐसे हमला हो रहा है जैसे TRP की मशीन ठीक होते ही तो बाक़ी पत्रकारिता करने लगेंगे।

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आप किसी भी दल के समर्थक हों लेकिन भारत से कुछ तो प्यार करते होंगे। इसे लेकर कोई भ्रम न रखें कि चैनलों ने मिलकर इस देश के ख़ूबसूरत लोकतंत्र की हत्या की है। आज आपकी आवाज़ के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए TRP की बहस ने एक मौक़ा दिया है कि आप इन हत्यारों के तौर तरीक़ों को गहराई से समझें। बाक़ी मर्ज़ी आपकी और देश आपका। मैं प्यार करता हूँ इसलिए बार बार कहता हूँ। न्यूज़ चैनलों ने बहुत बर्बादी की है। इस महान मुल्क की जनता की पीठ पर छुरा भोंका है। बहुत हद तक आप भी एक दर्शक के रूप में शामिल हैं। जाने और अनजाने में।

एनडीटीवी के संपादक रवीश कुमार की एफबी वॉल से.

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