वो हैं तो एक मामूली वित्तीय परामर्शदाता मगर उनकी हैसियत किसी राजा से कम की नहीं है। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन में बस एसके अग्रवाल का नाम लेकर देखिए आपको उनके जलवे का अंदाजा हो जायेगा। जिन खराब ट्रांसफार्मरों को समाजवादी पार्टी ने चुनावी मुद्दा बनाया था, उन्हें सप्लाई करने वाली कंपनियों के कर्ताधर्ता जेल में चक्की पीसने की जगह करोड़ों की कमाई कर रहे हैं क्योंकि इनकी खामियां पकड़ने वाले फाइनेंस कंट्रोलर ही उनके आका बन गये हैं। अगर विस्तार से पड़ताल करें तो पावर कॉरपोरेशन के हजारों करोड़ के इस घोटाले में बड़े-बड़े लोगों के ऐसे काले चिट्ठे खुलेंगे कि पूरा तंत्र ही हिल जायेगा। मगर न कोई ऐसा करना चाहेगा और न कोई ऐसा कर रहा है क्योंकि अब एसके अग्रवाल कोई मामूली आदमी नहीं रह गये हैं।
यह सिलसिला 6 अप्रैल 2001 से शुरू हुआ। जब एसके अग्रवाल को प्रतिनियुक्ति के आधार पर पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड में निदेशक वित्त के पद पर तैनात किया गया। श्री अग्रवाल इससे पहले राजकीय निर्माण निगम में वित्तीय परामर्शदाता थे। मगर वहां पर आर्थिक सुविधाओं का इतना बड़ा साम्राज्य नहीं खड़ा किया जा सकता था क्योंकि वर्ष 2002 में निर्माण निगम बहुत मजबूत हालत में नहीं था। एसके अग्रवाल ने पॉवर कॉरपोरेशन में तैनाती को लेकर दिन-रात एक कर दिये और आखिर वर्ष 2002 में उन्होंने अपनी प्रतिनियुक्ति पावर कॉरपोरेशन में करवा ली।
पॉवर कॉरपोरेशन में आते ही इन्होंने अपना साम्राज्य बढ़ाना शुरू कर दिया। अग्रवाल को पता था कि सिर्फ एक पद पर रहने से कुछ विशेष हासिल नहीं होने वाला। लिहाजा उन्होंने धीरे-धीरे ऊर्जा क्षेत्र के लगभग सभी निगमों और कंपनियों पर कब्जा कर लिया। वर्ष 2002 से वर्ष 2007 तक तमाम ऐसी कंपनियां जिनका बेहद घटिया दर्जे का सामान दस गुने से भी अधिक कीमत पर खरीदा गया। इन पांच सालों में एसके अग्रवाल का इतना जलवा हो गया था कि बिना उनकी मर्जी के विभाग में पत्ता भी नहीं हिलता था। इन पांच सालों में ट्रांसफार्मर से लेकर तमाम ऐसी चीजें कॉरपोरेशन ने खरीदीं जो मिट्टी के मोल थीं। पावर कॉरपोरेशन को सैकड़ों करोड़ का घाटा हुआ। मगर यहां तैनात अफसर मालामाल होते चले गये। उनकी दौलत में दिन दोगुनी रात चैगुनी बढ़ती चली गयी। कुछ अफसरों के नाकारापन और पैसों की हवस प्रदेश के आम आदमी को भुगतनी पड़ी और ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश लगातार पिछड़ता चला गया।
भ्रष्टाचार का यह सिलसिला और भी चलता रहता मगर तभी पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के रूप में वर्ष 2007 में अवनीश अवस्थी की यहां तैनाती हो गयी। अवनीश अवस्थी की सामान्य ख्याति एक ईमानदार अफसर की रही है। स्वभाव से भी वह बेहद तेज़तर्रार हैं। अपनी तैनाती के बाद पावर कॉरपोरेशन का हाल देखकर वो भी हैरानी में पड़ गये। थोड़ी पड़ताल में ही यह बात साबित हो गयी कि एसके अग्रवाल ने किस तरह कुछ कंपनियों को हजारों करोड़ का फायदा पहुंचा कर अपने आर्थिक हित मजबूत साधे हैं। यह बात साबित होते ही अवनीश अवस्थी ने 14 अगस्त 2007 को एसके अग्रवाल को उनके मूल विभाग निर्माण निगम में वापस भेज दिया। इस वापसी से एसके अग्रवाल बौखला गये और उन्होंने अवनीश अवस्थी को ही पद से हटाने के लिए और पावर कॉरपोरेशन में बने रहने के लिए दिन-रात एक कर दिये। आखिर उन्हें सफलता मिल गयी और अग्रवाल फिर से इस पद पर तैनात होने में सफल हो गये।
नियमानुसार अगर वित्त निदेशक की नियुक्ति की जाती है तो उनके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना जरूरी होता है। इस प्रक्रिया में पहले इस पद के लिए विज्ञापन निकालने की प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए थी। जिसके बाद साक्षात्कार करके ही योग्य व्यक्ति का चयन किया जाना था। मगर जब बात एसके अग्रवाल जैसे रुतबे वाले आदमी की हो तो सारे नियम-कायदे ताक पर रख दिये जाते हैं। 9 जनवरी को आदेश जारी कर दिया गया कि एसके अग्रवाल वित्तीय परामर्शदाता के रूप में चयनित किये जाते हैं और नियमित चयन की कार्यवाही संपन्न होने पर चयन की दिशा में यह आगे भी कार्य करते रहेंगे। यह बात दीगर है कि इसके बाद नियमित चयन की प्रक्रिया लागू ही नहीं की गयी।
सामाजिक कार्यकर्ता देवेन्द्र कुमार दीक्षित ने इस पूरे घोटाले की शिकायत मुख्यमंत्री और राज्यपाल से भी की है। मगर एसके अग्रवाल के रुतबे के कारण यह शिकायत फाइलों में ही दबकर रह गयी। इस शिकायत में उन्होंने लिखा है कि एसके अग्रवाल मूलतः समाज कल्याण निर्माण निगम के कर्मचारी हैं, जो एक वर्ष के लिए राजकीय निर्माण निगम में गये थे। मगर एक वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले ही उन्होंने अपना विलय राजकीय निर्माण निगम में करवा लिया। इस तैनाती के बाद से ही वह पावर कॉरपोरेशन में भ्रष्टाचार की गंगा बहाने में जुट गये। अवनीश अवस्थी ने अपने कार्यकाल में कई ऐसी कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड किया था जिन्होंने ट्रांसफार्मर क्रय करने में भारी गोलमाल किया था और खराब ट्रांसफार्मर सप्लाई किये थे।
पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया था। सपा ने तब बिजली समस्या के लिए पावर कॉरपोरेशन को ही जिम्मेदार ठहराया था। तब सपा नेताओं ने कहा था कि सत्ता में आते ही इन कंपनियों के मालिकों को और ऐसे खराब ट्रांसफार्मर लगवाने वाले अफसरों को जेल भेजेंगे। मगर सत्ता बदलते ही फिर एसके अग्रवाल ने अपना हुनर दिखाना शुरू कर दिया। यह बात सभी जानते हैं कि वित्तीय विभाग की सहमति के बिना कोई भी चीज नहीं खरीदी जा सकती। जाहिर है जिस ट्रांसफार्मर को सपा नेता घटिया बता रहे थे उसे खरीदने की अनुमति भी एसके अग्रवाल ने दी थी। उन पर कार्यवाही होती उससे पहले ही उन्होंने मौजूदा सरकार में भी इन दागी कंपनियों के लिए खासी जगह बनवा दी।
इसके बाद एसके अग्रवाल ने हजारों करोड़ की हेराफेरी का एक दांव और खेला। उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम ने 30 नवम्बर 2013 को प्रबंध निदेशक पावर कॉरपोरेशन को पत्र लिखकर कहा कि जल विद्युत निगम द्वारा सितंबर माह तक एक हजार सात सौ सत्तर करोड़ रुपये के विद्युत बिल भेजे गये हैं। इसके विरुद्घ मात्र पांच सौ पिन्चानबे करोड़ का भुगतान किया गया है। इस प्रकार एक हजार एक सौ पच्छत्तर करोड़ शेष है जिसका अविलंब भुगतान करवाया जाए। इसकी प्रति प्रमुख सचिव ऊर्जा के साथ बाकी अधिकारियों को भी भेजी गयी।
इतनी बड़ी रकम को अदा करने की जगह एक नायाब तरीका एसके अग्रवाल ने सुझाया। उन्होंने बताया कि अगर जल विद्युत निगम का राज्य विद्युत उत्पादन निगम में विलय करा दिये जाये तो यह सारा मामला ही बिखर जायेगा। यह एक बहुत बड़ा फैसला था, जिसे शीर्ष अफसरों द्वारा ही लिया जाना चाहिए था। मगर जब एसके अग्रवाल जैसे अफसर सलाह देने के लिए मौजूद हों तो फिर नियम कायदे कोई मायने नहीं रखते। दिनांक 3 जून को इसी सलाह को मानकर संयुक्त सचिव एनएच रिजवी ने राज्य विद्युत उत्पादन निगम के अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा कि उ.प्र. जल विद्युत निगम का राज्य विद्युत उत्पादन निगम में विलय कराने के लिए विशेष सचिव ऊर्जा की अध्यक्षता में 5 जून को बैठक बुलायी गयी है। इस बैठक में शायद विलय का यह प्रस्ताव मंजूर भी हो जाता और हजार करोड़ से अधिक की धनराशि वसूल भी न हो पाती तभी यह खबर इंडिया न्यूज को लग गयी और प्रमुखता से इस चैनल ने इस मुद्दे को उछाल दिया। और यह मामला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है।
सारे नियमों को ताक पर रखकर एसके अग्रवाल जिस तरह पॉवर कॉरपोरेशन का वित्त नियंत्रक बनाया गया। वह हैरान करने वाला था। समाज कल्याण से निर्माण निगम और वहां से पॉवर कॉरपोरेशन में आकर एसके अग्रवाल ने भ्रष्टाचार की वो गाथाएं लिखीं जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। पॉवर कारपोरेशन के अध्यक्ष अवनीश अवस्थी ने जब इस घोटालेबाज के कारनामें पकड़े तो इसको वापस भेज दिया, मगर जल्दी ही इसने अवनीश अवस्थी की ही पॉवर कारपोरेशन से छुट्टी करा दी और वापस आ गए। बताया जाता है कि अग्रवाल ने पॉवर कारपोरेशन में ऐसी कई ब्लैक लिस्टेड कंपनियों की एंट्री करवा दी जिनके कर्ताधार्ताओं को जेल के भीतर होना चाहिए था। पॉवर कॉरपोरेशन की कमान संभाल रहे एपी मिश्रा भी अग्रवाल को सब कुछ करने की छूट दिए हुए हैं। जिसका नतीजा है कि यह विवाद अब भ्रष्टाचार की नई कथाएं लिखने में व्यस्त हैं। कारपोरेशन में तैनात बड़े से बड़े लोग जानते हैं कि एसके अग्रवाल की हैसियत अब बहुत बड़ी हो चुकी है और उनसे टकराने का मतलब नुकसान उठाना है। जिस व्यक्ति ने इनके खिलाफ सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी उसे ही जान से मारने की धमकी दे दी गयी।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई का मानना है कि पॉवर कॉरपोरेशन में हुए करोड़ों के घोटालों की जांच तत्काल सीबीआई से कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह एक मामूली वित्त नियंत्रक पूरे विभाग को ठेंगे पर रखा हुआ है उससे पता चलता है कि इस विभाग में भ्रष्टाचार कितने निचले स्तर तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि तत्काल वित्त नियंत्रक को उसके मूल विभाग में भेजा जाना चाहिए।
कांग्रेस के विधान परिषद सदस्य एवं नेता विधान परिषद नसीब पठान ने तत्काल पॉवर कॉरपोरेशन के भ्रष्ट अधिकारियों को निलंबित करने और यहां के करोड़ों के घोटालों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि जिस वित्त नियंत्रक ने खराब ट्रांसफार्मर को खरीदने की अनुमति दी उसके खिलाफ तो तत्काल कार्रवाई होनी ही चाहिए कि आखिर ऐसी क्या परिस्थिति थी जिसके चलते यह सारा घोटाला होता रहा और अफसर खामोश बैठे रहे।
लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और वीकएंड टाइम्स के संपादक हैं।