मेरी लड़ाई पत्रकारों या अखबारों से नहीं, कंपनियों की शोषक नीतियों से लड़ रहा हूं
मित्रों,
दस साल हो गए पत्रकारिता में। इस दरम्यान टीवी, रेडियो, कई दैनिक सांध्य अखबारों, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान जैसे कार्पोरेट अखबारों, साप्ताहिक अखबारों, डिजीटल मीडिया और मैगजीन में सेवाएं दीं। स्वतंत्र पत्रकार के रूप में डिजीटल मीडिया व एक सांध्य दैनिक अखबार में लेखन और रेडियो पत्रकारिता अभी भी जारी है। एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं। मेरी लड़ाई न किसी अखबार से है और न ही किसी पत्रकार से। मैं उन कंपनियों से लड़ रहा हूं जो अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों के साथ धोखा कर रही हैं। उनका आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण कर रही हैं। इस लड़ाई में शोषित सभी पत्रकार साथी मेरे साथ हैं। बस चंद ऐसे पत्रकार मेरे विरोधी हैं जो कंपनियों द्वारा गुमराह किये जा रहे हैं। ऐसे विरोधी साथियों के प्रति भी मेरी पूरी हमदर्दी है। भरोसा है कि एक न एक दिन वह भी मेरे साथ जरूर आएंगे।
आज उप श्रमायुक्त गोरखपुर के यहां मेरी, हिंदुस्तान के सीनियर कापी एडिटर सुरेंद्र बहादुर सिंह और आशीष बिंदलकर की सुनवाई थी। हम डेट पर पहुंचे तो उप श्रमायुक्त मौजूद नहीं थे। अगली तारीख 16.11.2016 की मिली है। हम प्रत्येक तारीख का मजबूती से मुकाबला करेंगे। एक तथ्य हमे निराश कर रहा है। गोरखपुर में हिंदुस्तान अखबार चलाने वाली कंपनी हिंदुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड ने 11.11.2011 से लेकर अब तक किसी को मजीठिया वेज बोर्ड का एरियर नहीं दिया है। जबकि माननीय सुप्रिम कोर्ट के आदेशानुसार 7 फरवरी 2015 तक चार बराबर किश्तों में समूचे एरियर का भुगतान कंपनी को स्वयं करना था। कंपनी ने ऐसा नहीं किया। इसके बावजूद यूनिट से सिर्फ दो साथियों ने बगावत किया। यानी गोरखपुर में कंपनी के अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले सिर्फ तीन हैं। बाकी दो दर्जन से ज्यादा वर्तमान और एक दर्जन पूर्व साथी चुप हैं। शायद इसलिये भी की, बोलेंगे तो पेट पर लात पड़ेगी। पूर्व साथियों के चुप्पी के कारण अलग-अलग हैं। वर्तमान साथियों ने एरियर मांगा तो फौरी तौर पर वे पैदल हो जाएंगे और उनकी रोजी-रोटी की रक्षा का त्वरित संवैधानिक समाधान भी नहीं है।
कहना यह चाहता हूं कि कानून, कंपनी के सामने असहाय नजर आ रहा है। हालात ने एक बुद्धिजीवी कौम को मौन रहने के लिये अभिशप्त कर दिया है। जो लोग हमारी इस दशा के बारे में सुनते हैं वे या तो तंज कसते हैं या फिर दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। लोग भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि पत्रकार और अखबारों में काम करने वाले भी इतने असहाय और शोषण के शिकार हो सकते हैं। कड़वा सच, समाज के गले नहीं उतर पा रहा है। लेकिन सच तो सच है और उसकी स्वीकारोक्ति के अलावा कोई विकल्प नहीं है। और उसे स्वीकार करना ही होगा।
सबसे ज्यादा नाराजगी मेरी उन साथियों से है जो कंपनी से बाहर हैं, लेकिन “छपास सुख” के लाभ की निरंतरता के लिये अपने एरियर का वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17(1) में क्लेम नहीं नहीं लगा रहे हैं। एक और आंकड़ा निराश करने वाला है। पूरे देश में अकेले हिंदुस्तान अखबार और हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़े लगभग 1000-5000 के बीच कर्मचारी/पूर्व कर्मचारी (पत्रकार/गैर पत्रकार कर्मचारी) हैं जो वेज बोर्ड के लाभार्थी हो सकते हैं, लेकिन दावा सिर्फ 27 ने किया है। जिन्होंने दावा किया है उन्हें अब किसी प्राइवेट मीडिया हाउस में एंट्री नहीं मिलेगी। शायद यह डर भी एक बड़ा कारण हैं क्लेम न करने के पीछे।
मैं देश के सभी हिंदुस्तानी साथियों (वर्तमान/पूर्व) से अपील करता हूं कि वे आय के वैकल्पिक स्रोतों का इंतजाम कर, ऐसे कंपनियों की चाकरी छोड़ दें। मजबूत विरोध करें। कंपनी पर क्लेम करें और दमदारी से लड़कर अपना हक लें। हम सभी को ऐसी रक्तहीन संवैधानिक क्रांति करनी चाहिये कि हालात बदलें और आने वाली पीढ़ियों को इस बदलाव का लाभ मिले। यकीन मानें आपकी यह लड़ाई न अखबारों के खिलाफ होगी, न पत्रकारिता के विरोध में और न ही पत्रकारों के विरूद्ध। आपका मोर्चा स्वच्छ, स्वस्थ और भयमुक्त निष्पक्ष पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
“मजीठिया क्रांति की जय”
आपका साथी
वेद प्रकाश पाठक “मजीठिया क्रांतिकारी”
स्वतंत्र पत्रकार, कवि, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट
संयोजक-हेलमेट सम्मान अभियान गोरखपुर 2016
पता-ग्राम रिठिया, टोला पटखौली, पोस्ट पिपराईच
जिला गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, पिन कोड-273152
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