Yashwant Singh-
आज काफ़ी दिन बाद माताजी को फ़ोन लगाया और हालचाल पूछा। उन्होंने बताया कि दस बारह दिन से केवल उन चार घरों में बिजली नहीं है जहां कोई नौजवान नहीं है। जिस खंभे से बिजली ख़राब हुई वहाँ से बाक़ी लोगों ने कनेक्शन हटा कर दूसरे खंभे पर कटिया मार दिया पर जिन घरों में केवल बुजुर्ग हैं वो बिचारे करें क्या…
मुझे दुख हुआ। माँ पिता के जीवन में रोशनी लाने की कौन कहे, उनके घर तक में रोशनी नहीं पहुँचा पा रहा मैं!
मैंने फ़ौरन एक वॉट्सअप संदेश लिखा और लखनऊ में वरिष्ठ पदों पर आसीन चार-पाँच परिचित लोगों को भेज दिया।
इकलौता रिस्पांस आया वरिष्ठ पत्रकार और यूपीडा मीडिया एडवाइज़र Durgesh Upadhyay जी का। उन्होंने फ़ौरन ऊर्जा विभाग के वरिष्ठतम अफ़सरों में से एक तक मेरा संदेश फॉरवर्ड किया और अपनी तरफ़ से अनुरोध भी किया। पलट कर मुझे बताया भी कि संदेश पहुँच गया है, संज्ञान में ले लिया गया है और कार्यवाही शुरू हो चुकी है।
दुर्गेश जी के अलावा किसी अन्य ने संदेश पावती के जवाब में “ओके” टाइप औपचारिक एक शब्द तक नहीं लिखा।
थोड़ी देर बाद ग़ाज़ीपुर से बिजली विभाग के इंजीनियरों के फ़ोन आने लगे, माताजी को भी अफ़सरों ने फ़ोन किया। शाम तक संबंधित खंभे पर बिजली फाल्ट दुरुस्त कर दिया गया। माताजी के घर में बत्ती जल गई।
समस्या का निदान पूरी तरह से हो गया, ये कन्फर्म करने के लिए भी बिजली विभाग से फ़ोन आए।
शुक्रिया भाई दुर्गेश जी …
सोचिए, दुर्गेश जी सक्रिय न होते तो मैं अपने ही माँ के घर की बिगड़ी बिजली न बनवा पाता।
कभी कभी लगता है इस जगत में अपन नितांत अकेले हैं। मैं लोगों का दुःख कम करने की कोशिश तो करता रहता हूँ और ये सब करते तीन दशक हो गये लेकिन मेरे निजी दुःख के दौरान बमुश्किल कोई काम आता है।
ईश्वर ने मुझे इस संसार से मोह न लगाने को कहा है ताकि कुछ भी निजी न रहे, सब दुख अपना सा लगे, सब सुख अपना बने!
जै जै…
भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.
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